निजी एजेंसी को निगम टैक्स वसूली से रोकने के सरकार के फैसले ने आम आदमी को बड़ा सुकून दिया है। दरअसल, चंद लोगों के निजी स्वार्थ की पूर्ति के लिए यह सब नेटवर्क बिछाया गया था। बिना किसी मजबूत पृष्ठभूमि और संसाधन के कुछ एजेंसी काम कर रही थीं, बदले में उन्हें बतौर कमीशन मोटी रकम दी जा रही थी। तर्क यह दिया गया था कि आम आदमी से इन एजेंसियों के माध्यम से निगम का संपर्क सघन होगा और जो लोग अपनी व्यस्तता के कारण होल्डिंग टैक्स आदि जमा करने निगम कार्यालय तक नहीं आ सकते हैं, एजेंसी के वर्कर उनके घर आकर टैक्स जमा करा लेंगे। लेकिन, व्यवहार में हुआ इसका उल्टा। इन एजेंसी के जिम्मे होल्डिंग टैक्स के मूल्यांकन का काम भी दिया गया। मूल्यांकन ऑनस्पॅाट करना था। एजेंसी ने इसमें कोताही बरती। लोगों के बीच फार्म बांट दिया और मनमाने तरीके से मूल्यांकन भी कर दिया। धनबाद में तो स्थिति यह बनी कि लोगों को एजेंसी ने निगम में कतार में खड़ा करवा दिया। अधिकतर घरों का गलत मूल्यांकन किया गया। निगम की व्यवस्था यह थी कि केवल कारपेट एरिया के अनुसार ही टैक्स की दर निर्धारित करनी है। ऐसा हो न सका। एजेंसी ने जिन चीजों को होल्डिंग टैक्स के दायरे से मुक्तरखा था, उन पर भी टैक्स जोड़ लिया। इससे आम आदमी की परेशानी बढ़ गई। एक तो नई दर ज्यादा हो गई और दूसरा अब उसे ठीक कराने के लिए लोग निगम का चक्कर लगा रहे हैं। देवघर, चास व अन्य निगम क्षेत्र में भी कमोबेश ऐसी ही स्थिति थी। देवघर नगर निगम में टैक्स वसूली के लिए जो कंपनी अधिकृत थी, उसकी पृष्ठभूमि में कोई ठोस आर्थिक आधार नहीं था। इस पूरे खेल में कमीशन का बड़ा खेल था। इन कंपनियों ने अपनी पहुंच के बल पर लंबी अवधि का अनुबंध अपने नाम करा लिया था। 12 से 16 फीसद कमीशन की दर भी तय कर ली गई। सिर्फ रांची में संबंधित एजेंसी को इस एवज में 6.80 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया। अफसरशाही के साथ साठगांठ का यह बेजोड़ नमूना था कि स्टैंडिंग काउंसिल की बैठक में प्रस्ताव पारित कर जब इन कंपनियों को हटाने के बात तय हुई तो तर्क यह दिया गया कि केवल सरकार ही उन्हें हटा सकती है। पूरे प्रकरण में अंत अच्छा हुआ। सरकार की नजर खुली और यह निर्णय लिया कि वार्ड स्तर पर स्वयंसेवक बहाल कर टैक्स की वसूली होगी। इस निर्णय से राजस्व भी बढ़ेगा। लोगों की सुविधा भी बढ़ेगी और अफसरशाही संग निजी कंपनी के गठजोड़ की कड़ी भी ध्वस्त हो गई। सरकार के प्रति आम आदमी की धारणा भी फिर से मजबूत हो सकेगी।
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हाइलाइटर
वार्ड स्तर पर स्वयंसेवक बहाल कर निगम के टैक्स की वसूली होगी। इस निर्णय से राजस्व भी बढ़ेगा। लोगों की सुविधा भी बढ़ेगी और अफसरशाही संग निजी कंपनी के गठजोड़ की कड़ी भी ध्वस्त होगी।

[ स्थानीय संपादकीय : झारखंड ]