संस्कृति

कितने खोखले हैं हम लोग? कितने भोथरे हैं हमारे वादे-इरादे? कैसी है यह विडंबना? जिस देश, संस्कृति और समाज में नारी को शक्ति, ऊर्जा और देवी का रूप माना जाता हो, वहां उसके सशक्तीकरण की बात करना बड़े विरोधाभास से कम नहीं है? यह आज की हकीकत है। 'यत्र नार्यस्तु पूज्यते, रमंते तत्र देवता' सूक्ति सबकी जुबान पर है लेकिन क्या इसे अपने मन, कर्म और वचन में हम आत्मसात कर सके हैं? प्राचीन काल में हमारे मनीषियों द्वारा तैयार पौराणिक ग्रंथों में कहीं भी महिला को दोयम दर्जा नहीं दिया गया है। उत्तरोत्तर यह संस्कृति और विधान जारी रहा।

विकृति

समाज में इनके सबलापन के अनेक उदाहरण मौजूद रहे। राधेश्याम, सीताराम और उमाशंकर जैसे अनेकानेक नाम महिला श्रेष्ठ समाज की तस्वीर उकेरते रहे हैं। फिर आज ये विकृति सोच पैदा कैसे हुई? महिलाओं का रुतबा समाज में गौण कैसे हुआ? दरअसल प्रकृति ने ही महिलाओं को सुकुमार और कोमल बनाया है। अपवाद को छोड़ दें तो उनके आचार, विचार और व्यवहार में ये शालीनता और सुकुमारपन झलकता रहा है। योग्यतम की उतरजीविता का सिद्धांत देने वाले प्राणि विज्ञानी चाल्र्स डार्विन का नियम कहता है कि इस समाज और दुनिया में वही जीवित रह सकता है जिसमें योग्यता और उस परिस्थिति में खुद को प्रकृति के अनुरूप ढालने की क्षमता होती।

आकृति

नि:संदेह भारतीय महिलाओं में योग्यता की कमी कभी नहीं रही लेकिन दूसरे गुण के मामले में वह या तो पीछे रही या फिर उसे पीछे धकेल दिया गया। कालांतर में अस्तित्व में आई सामाजिक रूढिय़ों, सींखचों और नियम-कानूनों से बंधकर वे समाज में गौण बनती गई। समाज के अन्य लोग अपनी सुविधानुसार उन्हें पीछे धकेलते गए और आधी आबादी का दायरा सिमटता गया। अब पानी सिर से ऊपर चढ़ गया है। समाज गाड़ी के एक पुरुष पहिए से चल पाने में असमर्थ हो रहा है। लिहाजा दूसरे महिला पहिए को भी पुरुष जितना सशक्त बनाने की जरूरत आन पड़ी है। लिहाजा देश के कल्याण के लिए महिलाओं को सशक्त बनाने की जरूरत है। तो आओ, राज-काज और समाज, हम सब मिलकर प्रकृति प्रदत्त कोमल स्वभाव वाली महिलाओं को हर क्षेत्र में सबला बनाने का संकल्प लें।

जनमत

क्या नौकरियों में आरक्षण आदि प्रयासों के बल पर नारी सशक्तीकरण संभव है?

हां 72 फीसद

नहीं 28 फीसद

क्या नारी सशक्तीकरण का लक्ष्य केंद्र और राज्य सरकारों का उत्तरदायित्व है?

हां 89 फीसद

नहीं 11 फीसद

क्या भारतीय महिलाओं में नारी सशक्तीकरण के लिए अपेक्षित जागरूकता है?

हां 80 फीसद

नहीं 20 फीसद

आपकी आवाज

उम्मीद जगी है। शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में इनकी बढ़ती सहभागिता से सशक्तीकरण बढ़ रहा है। -रामदास मिश्र देवरिया

आज की महिलाएं काफी शक्तिशाली हो गई हैं। वे सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधा मिलाकर काम करना चाहती हैं। -रेखा श्रीवास्तव

नारियों के सशक्तीकरण के लिए अधिकार, सम्मान, स्वतंत्रता देकर भेदभाव खत्म करके उनमें आत्मविश्वास जगाने की जरूरत है। -बजरंगबली श्रीवास्तव

महिलाएं देश की आबादी का आधा हिस्सा हैं। इसलिए राष्ट्र के समग्र विकास के इस महान कार्य में महिलाओं की भूमिका और योगदान को पूरी तरह और सही परिप्रेक्ष्य में रखकर ही राष्ट्र निर्माण के कार्य को समझा जा सकता है।- सूरजभान सिंह चांदसारा

नारी सशक्तीकरण तभी संभव है जब समाज के सभी वर्गों, सभी उम्र और सभी स्तरों की सोच व दृष्टिकोण में मौलिक परिवर्तन हो। -मनीषा श्रीवास्तव

क्या पैसा कमाने वाली सभी महिलाएं अपने घरों तथा समाजों में बराबरी का दर्जा पा लेती हैं? शायद नहीं। परंतु नारी सशक्तीकरण के कुछेक प्रयासों में आरक्षण का प्रयास भी शामिल किया जा सकता है। - चंदन कुमार सिंह

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