जबसे भारतीय सेना के विशेष जवानों ने उड़ी हमले के जवाब में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में स्थित संदिग्ध आतंकी कैंपों पर कार्रवाई की है तबसे विपक्षी पार्टियां इस मुद्दे पर एक बेजा और अरुचिकर बहस में घिरी हुई हैं। खासकर कांग्रेस पार्टी इस पर एक स्पष्ट प्रतिक्रिया देने में विफल साबित हुई है। पाकिस्तान के छद्म युद्ध का भारत ने बहुत सोच समझकर जवाब दिया है। उड़ी हमले के 11 दिन बाद भारतीय सेना के विशेष बल ने इस सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया। इसके साथ-साथ मोदी सरकार ने पाकिस्तान पर चौतरफा दबाव बनाने के लिए कई कूटनीतिक कदम भी उठाने के संकेत दिए। पाकिस्तान लंबे समय से आतंकवाद और छद्म युद्ध के जरिये भारत के लिए चुनौती पेश करता रहा है और उनका फायदा उठा रहा है। पहली बार भारत ने पाकिस्तान के इन हथकंडों का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए कमर कसी है। इसी की कड़ी के तहत क्षेत्रीय स्तर पर मोदी सरकार ने नवंबर में इस्लामाबाद में होने वाले दक्षेस सम्मेलन को स्थगित करवाकर पहली सफलता हासिल की। पाकिस्तान के अलावा दक्षेस के सभी सदस्य देशों ने आतंकवाद पर भारत के रुख का समर्थन किया। यह एक दुर्लभ अवसर है जब पड़ोसी देशों ने पाकिस्तानी आतंकवाद का एक स्वर में विरोध किया है। इसके साथ ही नई दिल्ली ने सिंधु जलसंधि और पाकिस्तान को दिए गए मोस्ट फेवर्ड नेशन के दर्जे की स्थिति पर भी पुनर्विचार किया है। हालांकि अभी इस विषय पर आगे बढ़ने का फैसला नहीं हुआ है। दरअसल ऐसा भारत ने पाकिस्तान को यह जताने के लिए किया कि उसे दबाव में लाने के लिए उसके पास कई विकल्प हैं और जरूरत पड़ने पर इनके प्रयोग से भारत हिचकिचाएगा नहीं।
एक तरफ जब पाकिस्तान इन कूटनीतिक दबावों से दो चार हो रहा था तो दूसरी ओर मोदी सरकार ने उसके खिलाफ सैन्य ताकत का प्रयोग करने का भी फैसला किया। यह एक ऐसा साधन है जिसेप्रयोग करने से भारत लंबे समय तक बचता रहा। सवाल यह है कि आखिर बीते दिनों ऐसा क्या हुआ कि भारत ने न सिर्फ नियंत्रण रेखा को पार किया, बल्कि उस दौरान हुई कार्रवाई को सार्वजनिक भी करने का फैसला किया। दरअसल यह भारत की बदली हुई कूटनीति की देन है।
भारतीय सेना की सर्जिकल स्ट्राइक पर पाकिस्तान की प्रतिक्रिया विरोधाभासी थी। एक तरफ पाकिस्तानी सेना ने भारत के दावे को सिरे से नकार दिया और कहा कि भारत की ओर से सिर्फ सीमापार गोलीबारी हुई थी। वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने भारत की खुली आक्रामकता की निंदा की और इस पर चर्चा के लिए संसद का संयुक्त सत्र बुलाया। वास्तव में भारत की कार्रवाई ने पाकिस्तान में नागरिक सरकार और सेना के बीच की खाई को और चौड़ा कर दिया है। हालांकि अपने हालिया कदम के बाद भी भारत ने सामरिक संयम की नीति को खारिज नहीं किया है, लेकिन पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की शर्तों को नए सिरे से तय जरूर कर दिया है। सालों से पाकिस्तान परमाणु बम का हौवा दिखाकर भारत को सामरिक रूप से दुविधा की स्थिति में रख रहा था। सर्जिकल स्ट्राइक के बाद भारत ने पाकिस्तान और दूसरे देशों को दिखा दिया है कि पाकिस्तान की परमाणु युद्ध की धमकी खोखली है और भारतीय सेना के पास सीमित हमला करने की भी क्षमता है। दरअसल पाकिस्तान के खिलाफ जवाबी कार्रवाई नहीं करने के निर्णय से नई दिल्ली अपनी सैन्य विश्वसनीयता खो रही थी, जिसकी वजह से पाकिस्तान के दुस्साहस में इजाफा हो रहा था।
मोदी की पहल की सफलता इस बात में निहित है कि भारत के सर्जिकल स्ट्राइक की किसी देश ने आलोचना नहीं की। पाकिस्तान के दोस्त चीन ने भी एक घिसा-पिटा मुहावरा दोहराया कि आशा है कि भारत और पाकिस्तान अपने द्विपक्षीय विवादों को सुलझाने के लिए वार्ता करेंगे और क्षेत्रीय शांति और स्थिरता बरकरार रखेंगे। अमेरिका और पाकिस्तान के रिश्ते भी मुसीबत में घिर गए हैं। गत महीने अमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने पाकिस्तान को मिलने वाली 300 करोड़ डॉलर की मदद रोक दी, क्योंकि वह अमेरिका के लिए परेशानी का सबब बने हक्कानी नेटवर्क के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है। हक्कानी नेटवर्क अभी भी पाकिस्तान और अफगानिस्तान से अपनी गतिविधियों को अंजाम दे रहा है। ऐसे में यह महत्वपूर्ण है कि सर्जिकल स्ट्राइक के बाद अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सुसेन राइस ने अपने भारतीय समकक्ष अजित डोभाल को फोन किया और कहा कि वाशिंगटन सीमापार आतंकवाद पर कार्रवाई के लिए भारत का समर्थन करता है। साथ ही उन्होंने दोहराया कि उम्मीद है कि पाकिस्तान लश्कर, जैश और उनसे संबद्ध संगठनों सहित संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित आतंकवादियों और संगठनों के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई करेगा। मोदी सरकार अपनी पाकिस्तान नीति को इस तरह रूप दे रही है, ताकि उसका पूर्वानुमान लगाना मुश्किल हो जाए। मोदी सरकार की नीति पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंच पर अलग-थलग करने की भी है। लेकिन एक बात पूरी तरह साफ है कि भारत अब पाकिस्तान को उसके दुस्साहस के लिए सबक सिखाने से हिचकिचाएगा नहीं और साथ ही सुनिश्चित करेगा कि पाकिस्तान को आतंकवादी संगठनों के जरिये चलाए जा रहे छद्म युद्ध की कीमत चुकानी पड़े। हालांकि भारत की सर्जिकल स्ट्राइक के बाद भी पाकिस्तान से सीमापार आतंकवाद का अंत होने नहीं जा रहा है, लेकिन यदि पाकिस्तान अपनी आतंकवादी नीति को जारी रखता है तो भारत का पक्ष और मजबूत होगा और पाकिस्तान के अलग-थलग पड़ने की कवायद और तीव्र होगी।
इन दिनों पाकिस्तान घरेलू दबावों से भी जूझ रहा है और मोदी की नीतियों ने उसकी समस्याओं को सतह पर ला दिया है। माना जा रहा है कि चीन की बढ़ती जरूरतों ने पाकिस्तान को स्वयं के प्रति और असावधान कर दिया है। पाकिस्तान की ओर से मिलने वाली चुनौतियां भारत की दीर्घकालिक क्षमताओं को और मजबूती प्रदान करेंगी। इसमें कोई दो राय नहीं कि मोदी द्वारा भारत-पाकिस्तान रिश्तों में एक नया अध्याय शुरू किया गया है। उन्होंने संकेत दिया है कि अब ‘चलता है’ का दौर खत्म हो गया है। लंबे समय से नई दिल्ली ने पाकिस्तान के साथ संबंधों में यथास्थिति बनाए रखी और पाकिस्तान उसे चुनौती देता रहा। अब मोदी ने बाजी पलट दी है। पाकिस्तान के लिए उनका संदेश है-यदि पाकिस्तान ने अपना रवैया नहीं बदला तो भारत उस आधार को ही समाप्त कर देगा जिस पर दक्षिण एशिया की सामरिक स्थिरता टिकी है। इस संदेश का परिणाम अभी अनिश्चित है, लेकिन दक्षिण एशिया में अच्छे या बुरे हालात अब इसी पर निर्भर हैं।
[ लेखक हर्ष वी. पंत, लंदन स्थित किंग्स कॉलेज में इंटरनेशनल रिलेशन के प्रोफेसर हैं ]