सितंबर 2000 में दुनिया के 189 देशों के नेताओं ने संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय में मिल बैठकर विश्व से गरीबी, भूख, लैंगिक असमानता मिटाने और बच्चों में मृत्यु दर कम करने के लिए आठ ऐतिहासिक सहस्नाब्दि विकास लक्ष्यों (मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स) पर समझौता किया था। सितंबर 2015 में इनकी अवधि पूरी होने पर इन लक्ष्यों को और विस्तार देते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा में अगले 15 वर्षों यानी 2030 तक के लिए एक नया एजेंडा सतत विकास लक्ष्यों (सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स) का तय किया गया, जिनमें विश्व की बेहतरी के लिए 17 सतत विकास लक्ष्यों को सम्मिलित किया गया। ये विकास लक्ष्य इस प्रकार हैं-गरीबी उन्मूलन, भूख की समाप्ति, बेहतर स्वास्थ्य, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, लैंगिक समानता, शुद्ध जल की उपलब्धता एवं स्वच्छता, सस्ती स्वच्छ ऊर्जा, उचित रोजगार एवं आर्थिक विकास, उद्योग, नई खोजें, पद्धतियां एवं बुनियादी ढांचा, असमानता में कमी, टिकाऊ शहर और समाज, उत्तरदायित्वपूर्ण उपभोग एवं उत्पादन, जलवायु परिवर्तन का सामना करने के त्वरित उपाय, महासागरों और समुद्री स्नोतों का संरक्षण, धरती तथा जंगलों आदि का संरक्षण, शांतिपूर्ण एवं समावेशी समाजों का निर्माण तथा इन लक्ष्यों की पूर्ति के लिए वैश्विक साझेदारी बढ़ाना। भारत ने सतत विकास लक्ष्यों का यह एजेंडा एक जनवरी, 2016 से अगले 15 सालों (2030) तक के लिए लागू किया है।
गत दिनों विकासशील देशों की अनुसंधान एवं सूचना प्रणाली, नीति आयोग तथा संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में सतत विकास लक्ष्यों पर व्यापक विचार-विमर्श करने के लिए देश में कई संगोष्ठियों का आयोजन किया गया, जिनमें प्रबुद्ध विचारकों के अलावा विभिन्न राज्यों के प्रतिनिधि भी शामिल हुए। इन संगोष्ठियों में भारत के संदर्भ में एक बात खुलकर सामने आई कि अभी देश में सेवा क्षेत्र के मुकाबले मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र काफी पीछे है। अत: इस क्षेत्र में क्रांति लाने के लिए मेक इन इंडिया की पहल की गई है ताकि भारत को डिजाइन एवं मैन्युफैक्चरिंग का केंद्र बनाया जा सके। इसके अलावा उद्योग धंधों को बढ़ावा देने और रोजगार के नए अवसर पैदा करने के लिए स्किल इंडिया, स्टार्ट-अप इंडिया और डिजिटल इंडिया जैसी सरकारी रणनीतियां अपनाई जा रही हैं। सरकार आर्थिक गतिविधियों और बुनियादी ढांचों के विकास में निवेश को बढ़ावा देने के लिए अनुकूल माहौल भी तैयार करने में जुटी है। सरकार की स्मार्ट सिटी बनाने की परियोजनाएं भी अनेक उद्योगों को जन्म देंगी। टिकाऊ विकास के लिए जरूरी है कि भारत में आधारभूत ढांचे में सुधार लाया जाए। चर्चा के दौरान कई विशेषज्ञों ने महसूस किया कि उन्नत प्रौद्योगिकी केवल उद्योगों की ही जरूरत नहीं है, बल्कि जलवायु, कृषि, शहरी विकास आदि की दृष्टि से भी विकसित और नई प्रौद्योगिकी एक अनिवार्यता है। इसलिए सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए इनोवेशन यानी नई पद्धतियों की खोज और नई प्रक्रियाओं को अपनाने की बड़ी भारी अनिवार्यता महसूस की जा रही है। इसके साथ ही लोगों को समुचित और अच्छा रोजगार मुहैया कराने के लिए उनकी कार्य कुशलता को बढ़ाने के भी विभिन्न तरह के उपाय किए जा रहे हैं। अटल इनोवेशन मिशन, स्वरोजगार और प्रतिभा पहचान आदि ऐसी ही योजनाएं हैं। स्वच्छ भारत मिशन, स्मार्ट सिटी, अमृत आदि आधारभूत संरचनाओं के विकास की योजनाएं हैं। इसी प्रकार ग्रामीण क्षेत्रों के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं चलाई गई हैं, जैसे-अटल पेंशन योजना, दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, प्रधानमंत्री आवास विकास योजना आदि।
विमर्श के दौरान पता चला कि महाराष्ट्र में सतत विकास के कुछ लक्ष्यों को आपस में जोड़ते हुए लोगों को समुचित रोजगार उपलब्ध कराने के प्रयास किए जा रहे हैं। यहां उद्योग जगत के साथ कुछ समझौते किए गए हैं, जिनके तहत 2020 तक उद्योगों को सात लाख कुशल युवा कामगार उपलब्ध कराए जाएंगे। इसी तरह झारखंड में महिला केंद्रित रोजगार विकसित किए जा रहे हैं। युवाओं को रोजगार से जोड़ने के लिए बड़े पैमाने पर तरह-तरह के हुनर का प्रशिक्षण दिया जा रहा है और स्व-सहायता समूहों के द्वारा उनका सशक्तीकरण किया जा रहा है। असम ने सतत विकास लक्ष्यों के तहत सभी को 2030 तक रोजगार मुहैया कराने का लक्ष्य रखा है। इसी तरह से अन्य राज्य भी अपने-अपने स्तर पर सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने के लिए प्रयास कर रहे हैं। दरअसल भारत के लिए विशिष्ट लक्ष्य है-गरीबी उन्मूलन। गरीबी को दूर करने के प्रयासों के साथ ही स्वास्थ्य, शिक्षा, विकास आदि के मुद्दे भी सुलझ जाते हैं। सतत विकास लक्ष्यों की सफलता भी इन मोर्चे पर सफलता के साथ जुड़ी हुई है। वहीं ठोस बुनियादी ढांचे के विकास को मौजूदा सरकार को अपनी प्राथमिकताओं में शामिल करना होगा ताकि देश में आपसी जुड़ाव बढ़ सके। यह व्यापार और जीडीपी बढ़ाने और अंतत: गरीबी कम करने में मददगार साबित होगा। इसमें भारी निवेश चाहिए होगा, जो पीपीपी अर्थात सरकारी निजी भागीदारी द्वारा ही संभव है। जल एवं स्वच्छता का लक्ष्य इन सभी के साथ जुड़ा है। कृषि, उद्योग, ऊर्जा, पर्यावरण, घरेलू जरूरतें-सभी को जल चाहिए और 2030 तक पानी की हमारी मांग 40 प्रतिशत तक बढ़ने वाली है। अत: जल से जुड़े सतत विकास लक्ष्य के अंतर्गत कुछ विशेष प्रावधान अपनाने होंगे। जैसे-जल स्नोतों की पहचान करना, लोगों को जल के महत्व से परिचित कराना, जल पर सभी का समान अधिकार सुनिश्चित करना, जल संरक्षण के समुचित उपाय करना, जल से जुड़ी नई तकनीकों और नई खोजों को बढ़ावा देना, पानी की बर्बादी रोकना, प्रयोग किए गए पानी का फिर से प्रयोग करना, नदियों की सफाई और उन्हें आपस में जोड़ना, जल के पारंपरिक स्नोतों का पुनरुद्धार आदि।
स्वच्छता और जल का आपसी नाता है। जल स्नोतों में गंदगी मिलने से नदियों का और भूतल का जल प्रदूषित होता है। आज भी हमारे यहां 50-60 करोड़ लोग खुले में शौच जाते हैं। दो अक्टूबर, 2014 को शुरू किए गए स्वच्छ भारत अभियान का लक्ष्य रखा गया है कि महात्मा गांधी की 150वीं जयंती दो अक्टूबर, 2019 तक यह स्थिति एकदम समाप्त हो जाएगी। इस अभियान के तहत ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में करोड़ों शौचालय बनाए जाएंगे। इस प्रकार देखा जाए तो केंद्र और राज्य स्तर पर सरकारें बहुत ही भरोसे के साथ सतत विकास के विभिन्न लक्ष्यों पर आगे बढ़ रही हैं। हालांकि इनके सामने कुछ चुनौतियां भी हैं। यदि इनका सामना सफलतापूर्वक किया गया तो बहुत संभव है कि भारत 2030 तक इन सभी लक्ष्यों को हासिल कर लेगा।
[ लेखिका उषा महाजन, साहित्यकार और स्तंभकार हैं ]