नसों में नशा
जिस मानव संसाधन के बूते हम दुनिया पर अपना परचम फहराने के मंसूबे पाले हुए हैं, उसमें जंग लग रहा है। उसकी धार कुंद हो रही है। उसकी आभा मलीन और कांति क्षीण हो रही है। नशे के काले कारोबारी उसकी नसों में नीला जहर उड़ेल रहे हैं और हम
परिणाम
जिस मानव संसाधन के बूते हम दुनिया पर अपना परचम फहराने के मंसूबे पाले हुए हैं, उसमें जंग लग रहा है। उसकी धार कुंद हो रही है। उसकी आभा मलीन और कांति क्षीण हो रही है। नशे के काले कारोबारी उसकी नसों में नीला जहर उड़ेल रहे हैं और हम सब या तो इससे अनभिज्ञ होने का आडंबर कर रहे हैं या फिर बेबस होकर मूकदर्शक बने हुए हैं। रफ्ता-रफ्ता नशाखोरी युवाओं को अपनी गिरफ्त में लेती जा रही है।
परिमाण
भारत जैसे विकासशील देश के लिए यह एक गंभीर है। इसका दुष्परिणाम भयावह है। बीमारियों, हिंसा, अपराध, खून-खराबे आदि की बढ़ोतरी में योगदान करने वाली इस समस्या की अगर आर्थिक और सामाजिक कीमत आंकी जाए तो अरबों, खरबों में है। देश की अर्थव्यवस्था पर इसका गंभीर प्रतिकूल प्रभाव सहज देखा जा सकता है। इस समस्या का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अपने अनमोल मानव संसाधनों के बूते कुछ भी कर गुजर जाने की बात करने वाले हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगली बार मन की बात के तहत इस मुद्दे को जनता के समक्ष रखेंगे। यह केवल उनकी ही पीड़ा नहीं होनी चाहिए बल्कि राज, काज और समाज सबका दर्द इस समस्या से निपटने के लिए छलकना चाहिए।
पड़ताल
हमारे युवाओं के लिए खेलने को प्रांगण नहीं हैं। विकास में भागीदारी के लिए उन्हें उचित और उपयुक्त मौके नहीं सुलभ हो पा रहे हैं। आयु के इस पड़ाव पर चलायमान युवा मन को भटकाने के लिए तमाम सौदागर आंखें गड़ाए हुए हैं। सीमा के बाहर और अंदर से तस्करी और तमाम स्रोतों से पहुंचने वाली नशीली दवाओं की खेप देश की धमनियों में दौडऩे वाले रक्त को दूषित कर रहा है। नशाखोरी के खिलाफ प्रधानमंत्री की यह पहल निश्चित रूप से रंग लाएगी लेकिन एक नागरिक के नाते हम सबका भी फर्ज है कि राह से भटके युवाओं को सही रास्ता दिखाकर उन्हें देश के विकास में भागीदार बनाएं। ऐसे में देश के भीतर नशाखोरी की बढ़ती और बदलती प्रवृत्ति के कारण और निवारण की पड़ताल आज हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है।
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मैं अगली मन की बात जब करूंगा, मैं जरूर ये नशाखोरी, ये ड्रग्स, ये ड्रग माफिया और उसके कारण भारत के युवा धन को कितना बड़ा संकट आ सकता है, उसकी चर्चा अगली बार मैं जरूर करूंगा। इस विषय में आपके भी कुछ अनुभव हों, आपको कुछ जानकारियां हों, इस नशे की आदत वाले बच्चों को अगर आपने बचाया हो, बचाने के अगर आपके कुछ तौर-तरीके हों, किसी सरकारी मुलाजिम ने अगर कोई अच्छी भूमिका निभाई हो, अगर ऐसी कोई जानकारी आप मुझे देंगे, तो देशवासियों के सामने, इन अच्छे प्रयासों की बात पहुंचाऊंगा और हम सब मिलकर हर परिवार में एक माहौल बनायेंगे कि फ्रस्टेशन के कारण कोई बच्चा इस रास्ते पर न चला जाये, जरूर हम इसकी विस्तार से चर्चा करेंगे। नरेंद्र मोदी (दो नवंबर को अपने मन की बात उद्बोधन के दौरान)
समस्या
नशाखोरी से जुड़ी समस्याओं के चलते हर साल आत्महत्या करने वाले लोगों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। 2004 से 2013 के बीच में यह वृद्धि 149 फीसद देखी गई। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि देश में नशाखोरी की समस्या व्यापक रूप अख्तियार कर चुकी है।
34 लाख: नशाखोरी के पीडि़त लोग (इस आंकड़े में शराब पीने वाले 1.1 करोड़ लोगों को शामिल नहीं किया गया है।)
25426 नशे की लत से जुड़ी समस्या के चलते पिछले दस साल के दौरान आत्महत्या करने वाले लोगों की संख्या।
संसाधन
नशाखोरी से लडऩे के लिए सरकार ने इंटीग्रेटेड रिहैबलिटेशन सेंटर फॉर एडिक्ट (आइआरसीए) के इंतजाम किए हैं। इन केंद्रों पर नशाखोरी पीडि़तों को काउंसिलिंग, उपचार और पुनर्वास जैसी सेवाएं मुहैया कराई जाती है। हालांकि देश भर में ऐसे केंद्रों की संख्या अपर्याप्त या कहें बहुत ही कम है।
401: 34 लाख नशाखोरी से पीडि़तों के लिए आइआरसीए केंद्रों की संख्या।
3 लाख: 34 लाख पीडि़तों में से आइआरसीए केंद्रों में पंजीकृत पीडि़त
1.5 लाख: महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, ओडिशा और मणिपुर के पंजीकृत पीडि़त।
भारत में नशाखोरी की बढ़ती-बदलती प्रवृत्ति
देश में गांजा, भांग जैसे प्राकृतिक मादक पदार्थों का सेवन सदियों से होता आ रहा है। कुछ क्षेत्रों में तो परंपरागत रूप से लोगों को और खासकर मेहमानों को इसका सेवन कराने का रिवाज रहा है, लेकिन आर्थिक समृद्धि और संसाधन बढऩे के साथ भारत में भी रसायनिक और संश्लेषित नशीली दवाओं के इस्तेमाल में तेज वृद्धि देखी जा रही है। नशे का यह प्रकार प्राकृतिक नशीले पदार्थों के मुकाबले न केवल ज्यादा लत पैदा करने वाला है बल्कि स्वास्थ्य के लिहाज से हानिकारक भी है। देश के पंजाब सहित कई राज्य नशाखोरी की इस गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं। देश का अनमोल और युवा मानव संसाधन नशे के इस जहर का शिकार बन रहा है। जहर के काले कारोबारी इससे मोटा मुनाफा कमा रहे हैं।
250 फीसद: 2009-12 के चार साल के बीच कोकीन और इफेड्रिन (मेथमफेटामाइन बनाने में इस्तेमाल) की तस्करी और खपत में हुई वृद्धि।
4200 फीसद: इसी समयावधि के दौरान मेथाक्वालोन (मैनड्रैक्स) की तस्करी और खपत में हुई वृद्धि।
64 फीसद: इन चार साल के दौरान चरस के इस्तेमाल में हुई गिरावट।
23 फीसद: इसी अवधि के दौरान भांग, गांजा के इस्तेमाल में आई कमी।
500 फीसद: हालांकि अफीम के इस्तेमाल में यह वृद्धि अप्रत्याशित है।
250 फीसद: 2009-12 के चार साल के बीच कोकीन और इफेड्रिन (मेथमफेटामाइन बनाने में इस्तेमाल) की तस्करी और खपत में हुई वृद्धि।
4200 फीसद: इसी समयावधि के दौरान मेथाक्वालोन (मैनड्रैक्स) की तस्करी और खपत में हुई वृद्धि।
64 फीसद: इन चार साल के दौरान चरस के इस्तेमाल में हुई गिरावट।
23 फीसद: इसी अवधि के दौरान भांग, गांजा के इस्तेमाल में आई कमी।
500 फीसद: हालांकि अफीम के इस्तेमाल में यह वृद्धि अप्रत्याशित है।
नशीले पदार्थों का जखीरा
देश में नारकोटिक्स विभाग द्वारा चार साल के दौरान पकड़े गए मादक पदार्थ (किग्र्रा में) *सितंबर तक
पदार्थ -- 2009 -- 2010 -- 2011 -- 2012 -- 2013*
अफीम -- 42 -- 25 -- 53 -- 263 -- 3
कोकीन -- 12 -- 23 -- 14 -- 44 -- 28
इफेड्रिन -- 1244 -- 2207 -- 7208 -- 4393 -- 1862
मैनड्रेक्स -- 5 -- 20 -- 72 -- 216 -- 274
गांजा -- 208764 -- 173128 -- 122711 -- 77149 -- 45000
चरस (हशीश) -- 3549 -- 4300 -- 3872 -- 3338 -- 2000
हेरोइन -- 1047 -- 766 -- 528 -- 1028 -- 863
पोस्त दाना -- 1732 -- 1829 -- 2348 -- 3625 -- 116
जनमत
क्या नशे की लत हमारे युवा और अनमोल मानव संसाधन को खोखला कर रही है?
हां 97 फीसद
नहीं 3 फीसद
क्या नशाखोरी समस्या की रोकथाम को लेकर प्रधानमंत्री की पहल प्रभावी साबित होगी?
हां 90 फीसद
नहीं 10 फीसद
आपकी आवाज
आधुनिक दौर में युवा पश्चिम सभ्यता से प्रेरित होकर पहले शौक में नशा करते हैं और फिर इसके आदी हो जाते है। नशे की लत लाइलाज बीमारियां पैदा करती है। हमें मिलकर इस मुहिम में हिस्सा लेना चाहिए, क्योंकि हमारे युवा ही कल का भविष्य है। -मनीषा श्रीवास्तव
युवाओं में नशा दूषित प्रभाव सिर्फ एक व्यक्ति, परिवार को नहीं बल्कि हमारे पूरे समाज और देश को खराब करता है। -शुभम गुप्ता
प्रधानमंत्री द्वारा किसी भी प्रकार के नशे पर अकुंश लगाने कि पहल ज्यादा तो नहीं पर आंशिक तौर पर जरूर कामयाब होगी, क्योंकि वे ऐसे राजनेता हैं जो अपने सोच को कार्यरूप देने के लिए पूरे समर्पण के साथ सक्रिय हो जाते हैं। -प्रवीण सिन्हा23@जीमेल.कॉम
नशा, नाश का दूसरा नाम है। नशा करने वाला अपने शरीर का तो नाश करता ही है, साथ ही वह अपने घर परिवार के विनाश का कारण भी बनता है। -राजू09023@जीमेल.कॉम
नशाखोरी आज की बहुत बड़ी समस्या है, इस नशाखोरी में लिप्त लोग किसी भी अनैतिक कार्य को अंजाम दे देते हैं। ऐसे लोग समाज के लिए बोझ बनते जा रहे हैं। -सुंदरश्याम098@जीमेल.कॉम