तसलीमा नसरीन

शेख हसीना जी, सुना है आप रोहिंग्या मुसलमानों के दुख से दुखी हैं। जब पूरे विश्व का कोई भी देश इस धरती के सबसे अधिक प्रताड़ित जनसमूह को आश्रय नहीं देना चाहता तब आप उन्हें शरण दे रही हैं। इसी कारण आपकी तुलना जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल के साथ होने लगी है। भारत में 40 हजार रोहिंग्या मुसलमानों ने प्रवेश किया है। भारत सरकार का कहना है कि वे उसकी सुरक्षा के लिए खतरा हैैं, इसलिए वह उन्हें बाहर करना चाहती है। रोहिंग्या को पाकिस्तान भी शरण देने को तैयार नहीं है। अमीर मुस्लिम देश भी उन्हें शरण नहीं दे रहे। जो देश मुसलमानों के लिए मातम मनाते हैं उन्होंने भी उनसे मुंह फेर लिया है। मुस्लिम कट्टरपंथी देश रोहिंग्या को लेकर शोर तो मचा रहे हैं, पर वे उन्हें शरण नहीं दे रहे। बांग्लादेश जैसे गरीब देश को अंतिम घड़ी में आगे आना पड़ा। शेख हसीन जी आपको नोबेल पुरस्कार देने की मांग उठी है। वैसे नोबेल पुरस्कार मुझे मुग्ध नहीं करता। कई अयोग्य व्यक्तियों को नोबेल पुरस्कार दिया गया है। हेनरी किसिंग्जर जैसे अशांतिप्रिय को भी नोबेल दिया गया और आंग सान सू जैसी मानवाधिकार में विश्वास न करने वाली महिला को भी। पुरस्कार पाने के उद्देश्य से कोई अच्छा कार्य करना और पुरस्कार पाने की अभिलाषा के बिना असहाय लोगों के साथ नि:स्वार्थ भाव से खड़ा होना, दोनों अलग बातें हैं। हम लोगों को विश्वास है कि आप पुरस्कार की उम्मीद लिए पीड़ित लोगों का साथ नहीं दे रही हैं। सच कहूं तो लोगों का प्रेम ही आपका सबसे बड़ा पुरस्कार है। धरती के सबसे उत्पीड़ित और निराश्रित लोगों का जो प्रेम आपको मिला है उसके सामने नोबेल जैसा पुरस्कार भी तुच्छ है।
आप कहती हैं, ‘देश की 16 करोड़ जनता को खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा चुकी है और म्यांमार से आए लाखों रोहिंग्या मुसलमानों को भी बांग्लादेश भोजन दे सकता है। विपदा में फंसे पांच-सात लाख लोगों को खाना देने की क्षमता हममें है।’ ऐसी बातें विश्व के अमीर देश अब तक नहीं बोल सके हैं। ये बातें एक दरिद्र देश बांग्लादेश ने बोली हैं। आपने यह भी कहा कि ‘म्यांमार के शरणार्थियों की तब तक हर संभव मदद करेंगे जब तक वे अपने देश नहीं लौट जाते।’ ऐसी बातें आज कौन बोलता है! रोहिंग्या में से कइयों के इस्लामिक आतंकी होने की बातें कही जा रही हैं। उन पर कोई विश्वास नहीं कर रहा। यहां तक कि मुसलमानों के लिए बना देश पाकिस्तान भी उन्हें नहीं चाहता। रोहिंग्या को आतंकी बनाने की मंशा लिए आतंकी आका बांग्लादेश में ही भूमिगत हैं, परंतु आपने कहा है कि यदि इन तत्वों ने मौके का फायदा उठाने का प्रयास किया तो उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। आपकी सहनशीलता का जवाब नहीं। जहां हर देश रोहिंग्या को दूर से ही भगा रहे हैं वहीं आप उन्हें सीने से लगा रही हैं। मुस्लिम देश आम तौर पर शरणार्थियों को शरण नहीं देते। अरब के लाखों असहाय शरणार्थियों के लिए अरब देशों के ही दरवाजे बंद होने पर वे यूरोप के देशों में शरण ले रहे हैं। मुस्लिम शरणार्थियों को आश्रय गैर इस्लामिक देश देते हैं, परंतु एक मुस्लिम देश की ओर से सिर्फ आपने ही यह दिखाया कि एक मुस्लिम देश भी लाखों प्रताड़ित मुसलमानों को आश्रय दे सकता है। आप कह रही हैं कि म्यांमार रोहिंग्या को वापस ले और उन्हें नागरिकता और सुरक्षा दे, परंतु आप भी जानती हैं कि कितनी भी कोशिश क्यों न कर लें, म्यांमार रोहिंग्या को वापस नहीं लेगा। वे लोग बांग्लादेश में ही रहते हुए अपने वंश का विस्तार करेंगे। अभाव से जूझने वाला एक विशाल जनसमूह चोरी, डकैती, छिनतई और मादक पदार्थों की बिक्री करेगा या फिर आतंकी समूहों से जु़ड़ जाएगा। ऐसी घटनाएं पहले भी हुई हैं और आने वाले वक्त में भी बदस्तूर होती रहेंगी।
आप कहती हैं कि 1975 में शरणार्थी के रूप में आपको विदेश में रहना पड़ा था इसीलिए आप शरणार्थियों का दुख समझती हैं, किंतु मैं नहीं समझती कि आप मेरा दुख समझती हैं। मुझे आपने शरणार्थी बनाकर रखा है। 24 वर्षों से मैं एक देश से दूसरे देश में जीवन बिता रही हूं। मेरा अपना देश है, परंतु मुझे अपने देश में प्रवेश नहीं करने दिया जा रहा। मेरी किताब पर प्रतिबंध है। आप किताब पर भी प्रतिबंध समाप्त नहीं कर रही हैं। मैं अपनी बहन को पावर ऑफ एटार्नी देना चाहती हूं, लेकिन उस पर भी आपके विदेश सेवा के अधिकारी अडंगा डाल रहे हैैं। एक जीवन में कोई व्यक्ति कितने अपमान, निषेधाज्ञा और अधिकारों से वंचित रह सकता है? जो उदार है उसे तो सबके लिए उदार होना चाहिए। क्या आप सबके लिए उदार नहीं हो सकतीं? मैंने कोई जुर्म नहीं किया। किसी की हत्या नहीं की। कोई गड़बड़ी नहीं की। मैं तो मानवता और मानवाधिकार की ही बातें लंबे समय से कहती आ रही हूं। मुझे क्यों अछूत बना दिया? मानवता को किस ताक पर रखकर मेरे मुंह पर देश का दरवाजा बंद कर दिया गया? आप अभिव्यक्ति की आजादी में भी विश्वास नहीं करतीं? राजीव हैदर की हत्या का विरोध आपने किया था, परंतु आपने जब जाना कि राजीव नास्तिक था तो चुप हो गईं। देश में एक के बाद एक स्वतंत्र अभिव्यक्ति और धर्मनिरपेक्षता में विश्वास रखने वाले प्रगतिशील ब्लॉगरों की हत्या हुई। आपने किसी की मौत पर शोक नहीं प्रकट किया। विदेश से आए मुस्लिमों के लिए आपकी आंखों में आंसू है, परंतु देश में प्रगतिशील और प्रतिभावान युवकों की हत्या होने के बाद भी आपकी आंखों में आंसू नहीं। आपने भयावह हत्याकांडों के खिलाफ एक भी शब्द नहीं बोला। वे लोग नास्तिक थे इसीलिए आपने हत्याकांड की निंदा तक नहीं की। माननीय प्रधानमंत्री, आप बार-बार भूल जा रही हैं कि आप आस्तिक और नास्तिक, दोनों की प्रधानमंत्री हैं। धनी-गरीब, नारी-पुरुष, हिंदू-मुस्लिम, नास्तिक-आस्तिक सभी के प्रति आपका समान दायित्व है। आपको सबको समान आंखों से देखना चाहिए।
कुछ लोग कह रहे हैं कि आप वोट के लिए रोहिंग्या को शरण दे रही हैं। मुस्लिम वोट पाने का औजार हैं भी। रोहिंग्या यदि हिंदू या बौद्ध होते तो क्या आप उन्हें शरण देतीं? संभवत: नहीं। देश के भीतर ही हिंदू नागरिकों पर अत्याचार हो रहे हैं और वे अपनी जमीन से ही बेदखल हो रहे हैं। उनके घर-बार जलाकर उन्हें देश छोड़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है। क्या आप इन हिंदुओं के पास गईं और आंखों से आंसू का एक कतरा भी बहाया? मुझे पता है कि बहुसंख्यकों का वोट पाने के लिए ही आप मुझे अपने देश में प्रवेश नहीं करने दे रही हैं और इसी कारण हिंदू अल्पसंख्यकों के प्रति सहानुभूति तक नहीं दिखाती हैं। आप ब्लॉगरों की हत्या पर संवेदना भी व्यक्त नहीं करतीं, लेकिन दूसरे देश से आए शरणार्थियों के लिए पूरा प्रेम छलका रही हैं। वे मुसलमान हैं इसीलिए ऐसा कर रही हैं। सिर्फ चुनाव जीतना चाहती हैं। सिर्फ शासन करना चाहती हैं। जो छल-बल से सिर्फ अपना स्वार्थ सिद्ध करना चाहते हैं, उन्हें मुक्त स्वर में मानवतावादी कैसे बोला जाए।
[ लेखिका जानी-मानी साहित्यकार हैं ]