दीनानाथ ठाकुर। एक-दूसरे का हाथ थाम कर आगे बढ़ने वाली सहकारिता के लिए यह दौर किसी क्रांति से कम नहीं है। सहकारिता क्षेत्र में विश्वास और समर्पण का जो संकट पैदा हुआ था, आज उसका काफी कुछ निवारण होने लगा है। यह संभव हुआ है सहकारिता क्षेत्र में बहुप्रतीक्षित कानूनी सुधार और आधुनिक तकनीक के उपयोग से। इन सुधारों से सीमित दायरे में सिमटे सहकारिता क्षेत्र को खुला आसमान मिल गया है। किसानों, गरीबों, वंचितों, महिलाओं और युवाओं के लिए यह क्षेत्र सबसे उपयोगी साबित हो रहा है।

फसलों के बीज, आर्गेनिक खेती और सहकारी उत्पादों के निर्यात के लिए गठित राष्ट्रीय सहकारी सोसायटियां अब कारपोरेट सेक्टर का मुकाबला करने को तत्पर हैं। इस प्रकार ग्रामीण विकास के रास्ते अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में इस क्षेत्र का योगदान सबसे अधिक होने वाला है। दुग्ध क्षेत्र की सहकारी सोसायटी अमूल और फर्टिलाइजर क्षेत्र की सहकारी सोसायटी इफ्को विश्वस्तर पर चर्चित ब्रांड बन चुके हैं। देश के कुल फर्टिलाइजर उत्पादन और वितरण में इसकी भूमिका अहम है।

चीनी उद्योग में भी सहकारी क्षेत्र ने अपनी धाक जमाई है। चीनी उद्योग क्षेत्र मुट्ठीभर लोगों के हाथों में सिमट गया, जिनका दखल देश की राजनीति में भी अच्छा खासा रहा। लिहाजा सुधार के बारे में कभी विचार नहीं किया गया। उत्तर भारत की सहकारी चीनी मिलें लगभग बंद हो चुकी हैं। सीमित क्षेत्रों के अलावा सहकारिता का प्रसार अन्य क्षेत्रों में नहीं हो सका, जबकि बैंकिंग से लेकर छोटे-बड़े तमाम क्षेत्रों में इसका प्रभाव था। यह सच है कि बीते 60-65 वर्षों में सहकारिता की क्षमता को आंकने का प्रयास ही नहीं किया गया। इस क्षेत्र को प्रोत्साहित करने वाली नीतियों के निर्माण को लेकर भी पिछली सरकारें उदासीन रहीं, परंतु अब स्थितियों में परिवर्तन हुआ है।

मोदी सरकार ने सहकारी क्षेत्र के लिए सबसे महत्वपूर्ण पहल अलग से सहकारिता मंत्रालय की स्थापना करके की। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को इसका दायित्व मिलने के बाद इस क्षेत्र ने तेजी पकड़ी है। कभी मुट्ठीभर लोगों के हाथों में सिमटने वाली सहकारी सोसायटियों को विकास करने का अवसर मिला है। राज्य स्तर पर निचली इकाई प्राथमिक कृषि ऋण सोसायटी (पैक्स) से संबंधित नियम बदले गए, ताकि इसका दरवाजा सबके लिए खुले। राज्यों ने इसे हाथोंहाथ लिया। सदस्यता अभियान चलाया गया।

डिजिटल क्रांति का लाभ लेने के लिए सहकारिता क्षेत्र में कंप्यूटर और इंटरनेट का खुलकर उपयोग शुरू हुआ। ग्राम पंचायत स्तर की सोसायटियां सीधे जिला, राज्य और केंद्रीय सहकारी संस्थाओं से जुड़ गईं। चिट्ठी की जगह ई-मेल और बटन दबाते ही सहकारी सदस्यों के खाते में उनका हिस्सा पहुंचने लगा। सहकारिता क्षेत्र में किए गए सुधार से सहकारी इकाइयों के कारोबारी कार्यक्षेत्रों का विस्तार भी हो गया है। आज उन्हें रसोई गैस, पेट्रोल पंप, बैंकिंग मित्र, राशन की दुकान (पीडीएस) चलाने, कामन सर्विस सेंटर (सीएससी) और जन औषधि केंद्र चलाने जैसे दो दर्जन से अधिक क्षेत्रों में प्राथमिकता दी जाने लगी है।

सहकारी संस्थाओं के दरवाजे सबके लिए खुलने से उनका सदस्य बनने में लोगों का उत्साह बढ़ने लगा है। इससे लोगों को स्थानीय स्तर पर रोजगार मिल रहा है। और तो और सहकारी संस्थाओं को वित्तीय सहायता का रास्ता भी खुल गया है। आज राष्ट्रीय सहकारिता विकास निगम (एनसीडीसी) की ऋण प्रदान करने की क्षमता 25 हजार करोड़ रुपये से बढ़कर सवा लाख करोड़ रुपये पहुंच चुकी है। सहकारी बैंकों के दिन भी बहुरने लगे हैं। उन पर लगाए प्रतिबंधों को हटाने के साथ उनके नियमन की व्यवस्था कर दी गई है। नई शाखाएं खोलने के साथ वन टाइम सेटलमेंट जैसी सुविधाएं उन्हें मिल गई हैं।

सहकारिता क्षेत्र में कानूनी सुधार के अतिरिक्त नियमों में सुधार और कार्यप्रणाली में सुधार के साथ उनके व्यवसाय की सबसे बड़ी चुनौती को दूर करने की भी व्यवस्था की गई है। स्थानीय स्तर की सहकारी सोसायटियों के उत्पाद को बाजार मुहैया कराना भी इसमें शामिल है। इसके लिए तीन ऐसी सहकारी सोसायटियां स्थापित की गई हैं, जिनका प्रभाव पैक्स स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक देखने को मिलेगा।

खाद्य सुरक्षा की दिशा में सहकारी क्षेत्र खेती के प्रमुख इनपुट उपलब्ध कराने से लेकर उपज के भंडारण के लिए गोदाम बनाने और अतिरिक्त उत्पादन के निर्यात की भी योजना सिरे चढ़ने लगी है। एक लाख करोड़ रुपये की लागत वाली दुनिया की सबसे बड़ी भंडारण योजना के तहत सहकारिता क्षेत्र गांव-गांव गोदाम बना रहा है। इससे फसल कटाई के बाद 27 प्रतिशत तक होने वाले नुकसान को रोकने में मदद मिलेगी।

कृषि क्षेत्र की विकास दर स्थिर होने के मद्देनजर सहकारिता क्षेत्र मत्स्य पालन, पशु पालन और डेयरी क्षेत्र को भी आगे बढ़ा रहा है। मछुआरों और पशुपालकों को किसान मानते हुए उन्हें किसान क्रेडिट कार्ड दिया जा रहा है। उनके लिए दो लाख प्राथमिक स्तर की सोसायटी के गठन का प्रविधान किया गया है, ताकि उन्हें कारोबार करने के लिए रियायती ऋण की सुविधा मिल सके।

देश में लगभग आठ लाख सहकारी सोसायटियां है, जिनके 29 करोड़ से अधिक सहकार सदस्य हैं। कुल 11 तरह की सहकारी समितियां हैं, जिनमें प्राथमिक समितियों के अलावा ब्लाक, तहसील, जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर के फेडरेशन के साथ जिला और राज्य स्तरीय सहकारी बैंक शामिल हैं। इस प्रकार प्रजातांत्रिक अर्थव्यवस्था के माध्यम से दुनिया का सबसे बड़ा प्रजातांत्रिक देश विकास की नई गाथा लिख रहा है। यह जन-जन को विकास की मुख्यधारा से जोड़कर विकसित भारत की उपलब्धि के मार्ग प्रशस्त करेगा।

(लेखक राष्ट्रीय सहकार भारती के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं)