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GLOBAL WARMING: आज हिमालय खतरे में तो कल होगी पूरी दुनिया

हिमालय में पिछले कुछ सालों से लगातार दुर्घटनाएं हुई हैं जो संकेत कर रही हैं कि पारिस्थितिकीय असंतुलन के कारण हिमालय का हृास हो रहा है। हिमालय आज खतरे में है। यदि हिमालय प्रभावित होगा तो दुनिया प्रभावित होगी।

By JP YadavEdited By: Published: Thu, 10 Sep 2015 09:04 AM (IST)Updated: Thu, 10 Sep 2015 03:13 PM (IST)

नई दिल्ली। हिमालय में पिछले कुछ सालों से लगातार दुर्घटनाएं हुई हैं जो संकेत कर रही हैं कि पारिस्थितिकीय असंतुलन के कारण हिमालय का हृास हो रहा है। हिमालय आज खतरे में है। यदि आज हिमालय प्रभावित होगा तो कल पूरी दुनिया इससे प्रभावित होगी।

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ग्लोबल वार्मिग के कारण कई तरह के असंतुलन सामने आए हैं और आगे भी भयावह परिणाम आ सकते हैं। ये विचार दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के कांफ्रेंस सेंटर में आयोजित पहले हिमालय सम्मेलन में डीयू के प्राध्यापक व इंस्टीट्यूट ऑफ बॉयोरिसोर्सेज एंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट के निदेशक प्रो. दीनबंधु साहू ने व्यक्त किए।

उन्होंने कहा कि आज कश्मीर, असम, नेपाल सहित अन्य स्थानों पर आईं प्राकृतिक आपदाएं संकेत दे रही हैं, क्योंकि हिमालय में लगातार जैव विविधता का हृास हो रहा है। ग्लोबल वार्मिग से सीधा नुकसान हो रहा है। उन्होंने कहा कि हमारा मकसद सबको एक मंच पर लाना है।

हम इसमें वैज्ञानिकों, एनजीओ और सोशल सोसायटी को एक साथ मंच पर लाए हैं। हम यहां पर हिमालय की समस्या के समाधान में विज्ञान और तकनीकी के प्रयोग पर भी विचार कर रहे हैं। मुख्य अतिथि केंद्र सरकार के बॉयोटेक्नोलॉजी विभाग के सचिव प्रो. विजयराघवन ने कहा कि साइंस एंड टेक्नोलॉजी एक माध्यम है।

हिमालय की भलाई के लिए इसके इस्तेमाल पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। कार्यक्रम में हिमालयन एन्वायरमेंट स्टडीज एंड कंजर्वेशन आर्गनाइजेशन के निदेशक डॉ. अनिल पी. जोशी ने कहा कि हिमालय की हालत बेहद गंभीर हैं। इसके लिए और लोग भी दोषी हैं।

हिमालय को बचाने की लड़ाई वहां के लोगों की ही नहीं, बल्कि उनकी भी है जो हिमालय को भोग रहे हैं। हिमालय के सात फीसद से अधिक लोग अपने संसाधनों का उपयोग नहीं करते, इसका उपयोग मैदानी इलाके के लोग ही करते हैं।

यमुना पूरी दिल्ली को पानी पिला रही है, लेकिन यहां की सरकार पानी पर बहस कर रही है, जबकि वह कहां से आ रहा है, इसको लेकर चिंता करनी चाहिए। हमारा मानना है कि जो भोगे वह उसे बचाने के लिए प्रयास भी करे, लेकिन मैदान के लोगों ने हिमालय को बचाने के लिए अब तक कोई योगदान नहीं दिया है।


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