सीरियल किलर चंद्रकांत को नहीं मिलेगी फांसी
दिल्ली को दहला देने वाले सीरियल किलर चंद्रकांत झा को दिल्ली हाईकोर्ट से राहत मिली है। कोर्ट ने आज सुनवाई के दौरान दो मामले में फांसी की सजा को उम्रकैद में बदला है और एक मामले में उम्रक़ैद की सजा को बहाल रखा है। कोर्ट ने फैसला सुनाते हुआ किो
नई दिल्ली। तिहाड़ जेल के सामने सिरकटी लाशें फेंककर सनसनी फैलाने वाले चंद्रकांत झा को फांसी नहीं मिलेगी। हाई कोर्ट ने उसे राहत प्रदान की है। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना व आरके गाबा की खंडपीठ ने उसे दो मामलों में मिली फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया है।
हत्या के एक अन्य मामले में मिली उम्रकैद की सजा को बहाल रखा है। खंडपीठ ने कहा कि आजीवन कारावास की सजा उसकी मृत्यु होने तक प्रभावी रहेगी। उसे पूरी जिंदगी जेल में काटनी पड़ेगी। अदालत ने कहा कि मामले में कोई भी चश्मदीद गवाह नहीं है और पूरा मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित है।
अभियोजन पक्ष अपराध ठोस साक्ष्यों पर साबित करने में असफल रहा। उसे न्यायिक दृष्टि से मृत्युदंड नहीं दिया जाना चाहिए। मामले की गंभीरता को देखते हुए उसे बरी भी नहीं किया जा सकता। मूल रूप से मधेपुरा (बिहार) व दिल्ली में अलीपुर निवासी चंद्रकांत झा के खिलाफ आदर्श नगर थाने में आठ मामले दर्ज थे।
पुलिस ने उसे नवंबर 2003 में उसके साथी उमेश की हत्या के मामले में गिरफ्तार किया था। सुबूत न मिलने पर जांच अधिकारी ने अदालत में उसके पक्ष में गवाही दी थी। 6 दिसंबर, 2007 को वह आरोपमुक्त हो गया था। कई अन्य मामलों में भी उसका हाथ साबित नहीं हो पाया था।
अभियोजन पक्ष के मुताबिक चंद्रकांत झा ने अमित, उपेंद्र व दलीप की हत्या इसलिए की थी, क्योंकि वह इन लोगों के शराब पीने, मीट खाने व औरतों के पास जाने की आदत से परेशान था।1वर्ष 2006-07 में तिहाड़ जेल के सामनेकई लोगों की सिरकटी लाश बरामद हुई थी।
चंद्रकांत शव को तिहाड़ जेल के समक्ष फेंक देता था। अन्य अंगों को दिल्ली के अलग-अलग क्षेत्रों में फेंकता था। पत्र लिखकर पुलिस को पकड़ने की चुनौती भी देता था। उसने 19-20 अक्टूबर 2006 की रात अनिल मंडल की हत्या करने के बाद उसकी सिरकटी लाश बोरी में डालकर तिहाड़ जेल के गेट नंबर तीन के सामने फेंक दिया था। चंद्रकांत ने शव से सिर, हाथ-पैर अलग कर दिए थे।
निचली अदालत ने माना था कि चंद्रकांत का उद्देश्य सिस्टम व पुलिस को चुनौती देना था। वह ऐसा इसलिए कर रहा था, क्योंकि उसे पुलिस ने झूठे मामलों में फंसाया था। वह पुलिस को सबक सिखाना चाहता था।रोहिणी जिला अदालत की अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश कामिनी लॉ ने 4 फरवरी 2013 को चंद्रकांत झा को अनिल मंडल उर्फ अमित व उपेन्द्र की हत्या में फांसी की सजा सुनाई थी।
अदालत ने शव के अंगों को जगह-जगह फेंकने व साक्ष्य मिटाने के आरोप में उस पर दस हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया था। 18 मई 2007 को युवक दलीप की हत्या के आरोप में उम्रकैद की सजा सुनाई थी। अदालत ने टिप्पणी की थी कि दूसरे के बच्चों के सिर से साया उठाने वाले को माफ नहीं किया जा सकता है।
उसने एक के बाद एक निर्मम हत्याएं की हैं। उसने पत्र लिखकर खुद हत्या करने की बात स्वीकार करते हुए पुलिस को पकड़ने की चुनौती दी थी। समाज के हित में दोषी के प्रति नरम रुख नहीं अपनाना चाहिए।
गौरतलब है कि सीरियल किलर चंद्रकांत झा को रोहिणी कोर्ट ने हत्या के मामले को दुर्लभतम बताते हुए कहा है, कि आरोपी ने जिस तरह की बर्बरता दर्शाई है, उसे देखकर नहीं लगता, कि वह सुधर सकता है। इसके साथ ही सबूत मिटाने का दोषी करार देते हुए उसे सात साल सश्रम कैद की भी सजा सुनाई थी और उस पर 20 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया था।
चंद्रकांत झा के खिलाफ हरिनगर थाने में 20 अक्टूबर 2006 और 25 अप्रैल व 18 मई 2007 को हत्या के तीन मामले दर्ज किए गए थे। उस पर अपने सहयोगियों अनिल मंडल उर्फ अमित, दलीप व उपेंद्र राठौर की हत्या कर उनकी सिरकटी लाशों को तिहाड़ जेल के बाहर फेंकने का आरोप था।
वह उनके हाथ, पैर व संवेदनशील अंगों को दिल्ली के विभिन्न स्थानों पर फेंक देता था। पुलिस के अनुसार चंद्रकांत ने उपेंद्र की हत्या 24 अप्रैल 2007 में की थी। उसने उपेंद्र का सिर कटा शव 25 अप्रैल की सुबह तिहाड़ जेल के गेट नंबर तीन के पास बोरे में भर कर फेंक दिया था।
सूचना मिलने पर मौके पर पहुंची पुलिस ने बोरे को खोला तो उसमें 28-30 साल के युवक का कटा हुआ सिर, हाथ व पैर थे। वहीं 25 अप्रैल की सुबह पुलिस को हैदरपुर नहर के निकट बाबा रामदेव मंदिर के पास किसी व्यक्ति का पैर पड़ा होने की सूचना मिली।
पुलिस दोनों मामले में जांच कर ही रही थी कि गाजियाबाद पुलिस को सब्जी मंडी लोनी में दो संदिग्ध कार्टन मिलने की सूचना मिली। मौके पर पहुंची यूपी पुलिस ने कार्टन खोला तो उसमें एक व्यक्ति के कटे हाथ और दूसरे में संवेदनशील अंग थे। इन सभी हत्याओं को खुलासा उसकी गिरफ्तारी के बाद हो सका।