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चुग रहे दाना-दाना, बुन रहे पाप-पुण्य का ताना-बाना

मेरे ग्रह का स्वामी बृहस्पति है वो खराब चल रहा है इसलिए कबूतरों को दाना डालता हूं ताकि कुछ अच्छा हो सके।

By Amit MishraEdited By: Published: Sun, 24 Sep 2017 03:57 PM (IST)Updated: Sun, 24 Sep 2017 07:22 PM (IST)
चुग रहे दाना-दाना, बुन रहे पाप-पुण्य का ताना-बाना

नई दिल्ली [मनोज कुमार दुबे]। नवरात्र चल रहे हैं तो सोचा कालकाजी के दर्शन कर आऊं। अमूमन नवरात्र में श्रद्धालुओं की लंबी कतार मंदिर में दिखती है, इसलिए सुबह 6 बजे ही वहां पहुंच गया था, ताकि मां के जल्द दर्शन हो जाएं, लेकिन एक बात समझ नहीं आई जिस मां के दर्शन के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं वो उसके सामने जाते ही आंखे क्यों मूंद लेते हैं। खैर, आंखें बंद और जुबां खामोश होती है, यही वो पल है जब अंतरआत्मा परमेश्वर से बात करती है।

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मंदिर से मां के दर्शन कर निकला तो देखा आगे कुछ दूरी पर (नेहरू प्लेस से कालकाजी जाने वाला मार्ग) लोग कबूतरों को दाना डाल रहे थे। मैंने भी दाना बेचने वाले से बाजरा खरीदा और डालने लगा। यह देखकर बहुत अच्छा लगा कि कबूतर मेरे पास आने से डर नहीं रहे। मैंने दाना बेचने वाले से कहा, भैया ये तो डर ही नहीं रहे, वर्ना अपने घर के आसपास जब भी दो चार कबूतरों को देखता हूं एक छोटी सी आहट पर ही उड़ जाते हैं। उस व्यक्ति ने मुस्कराते हुए कहा, भाई इनको पता चल गया है कि इंसान सिर्फ उन्हें दाना-पानी देने आते हैं, कोई नुकसान नहीं पहुंचाएंगे।

अभी हमारी बातचीत हो ही रही थी कि एक मुस्लिम युवक आया और बगल में बैठी एक औरत से मक्के का दाना खरीदकर कबूतरों को डालने लगा। यह देख अच्छा लगा कि चलो कम से कम पक्षियों का तो मजहब नहीं। मैंने दाना बेच रहे उस व्यक्ति से पूछा, मुन्नवर राना का नाम सुने हो, वो बोला नहीं, कौन हैं? मैंने कहा, कोई बात नहीं, ये बहुत मशहूर शायर हैं, उन्होंने समाज पर चोट करते हुए लिखा है, यह देखकर पतंगें भी हैरान हो गईं, छतें भी अब हिंदू-मुसलमान हो गईं। चलो सही है, इन कबूतरों और पतंगों में इंसान ने कहीं तो अंतर छोड़ा, वर्ना उड़ते तो दोनों आसमान में ही हैं और कटती दोनों की जान भी है। यहां कम से कम इंसानों से ये सुरक्षित तो हैं।

उसने हंसते हुए कहा, भाई अगर बिगड़े हुए ग्रह नक्षत्रों को ठीक ना करना हो तो ये यहां भी सुरक्षित न रह पाएं। उसकी बातों ने मेरे अंदर एक कौतुहल पैदा कर दिया, पुण्य अर्जित करने के लिए परिंदों को दाना-पानी देने की बात तो सुनी थी, पर ग्रह नक्षत्र...।

मैंने उससे तुरंत पूछा, भैया ग्रह नक्षत्रों का इन कबूतरों से क्या वास्ता। ग्रह नक्षत्रों के लिए तो व्रत, पूजापाठ, हवन और अंगूठियों के बारे में सुना है, इन कबूतरों को इंसानों ने कब से मंगल, बृहस्पति और शनि पर भेजना शुरू कर दिया। वो हंस पड़ा, कुछ देर मेरी तरफ देखा फिर बोला, भाई पंडित और एस्ट्रोलोजर बताते हैं कि कबूतरों को दाना-पानी देने से कौन से ग्रह शांत होंगे और किस समस्या से उनको मुक्ति मिलेगी।

मैंने कहा, आपको कैसे पता तो उसने बताया कि यहां आने वाले कुछ लोगों से जान पहचान हो गई है, वही बताते हैं। बढ़िया है, इससे लोगों की बाधाएं दूर होती हैं और हमारे घर रोटी की जरूरत पूरी होती है। खैर, समय काफी हो चुका था वहां से कनॉट प्लेस शॉपिंग के लिए भी जाना था उधर निकल गया। दोपहर हो चुकी थी कनॉट प्लेस के गलियारों में घूमते। जैसे ही रीगल की तरफ से गुजर रहा था तो वहां भी कबूतरों का झुंड दाना चुग रहा था। और आगे बढ़ा तो कई जगह ऐसा ही नज़ारा दिखा।

मैं थक चुका था, इसलिए एक जगह कबूतरों के झुंड के पास जाकर बैठ गया और उन्हें देखने लगा। कितने खुशनसीब हैं ये कबूतर, दूसरे पक्षियों और इंसानों की तरह इन्हें अपना और अपने बच्चों का पेट भरने के लिए घोसले और घर से कहीं दूर नहीं जाना पड़ता, न ही इधर-उधर भटकना पड़ता।

मेरी सोच बेख्याली के सागर में अभी गोते लगा ही रही थी कि देखा एक खूबसूरत मोहतरमा कबूतरों के पास आ रहीं थीं। उसी वक्त एक युवक भी आया और उनके साथ वो भी कबूतरों को दाना डालने लगा। करीब पांच मिनट के बाद वो युवक मेरे पास आया और पूछा, भाई साहब बड़ी गौर से आप कबूतरों को देख रहे हैं। मैंने कहा, हां भाई सही कहा, न जाने ये इसरो वाले मंगल और शनि पर कब जाएंगे।

पंडितों और एस्ट्रोलोजर की चली तो ये इन दोनों को यहीं जमीन पर उतार लाएंगे। मुस्कराकर उसने कहा, सही कह रहे हैं आप। जानते हैं, लंदन में प्रदूषण की जांच में इन कबूतरों का इस्तेमाल होता है और हमारे यहां जब जरूरत हो तो गधा भी बाप होता है। यह कहकर वह हंसने लगा।

मैंने कहा क्या करते हैं आप, उसने बोला कलाकार हूं। हम दोनों एनएसडी के स्टूडेंट हैं। मैंने पूछा कौन, वो लड़की जो कबूतरों को आपके साथ दाना डाल रही थी। उसने कहा हां। कुछ देर रुककर फिर बोला, हमारे पेशे में बहुत स्ट्रगल है जल्दी किसी फिल्म में काम नहीं मिलता। मेरे ग्रह का स्वामी बृहस्पति है वो खराब चल रहा है इसलिए कबूतरों को दाना डालता हूं ताकि कुछ अच्छा हो सके। हमसे अच्छे तो ये कबूतर हैं जिन्हें बिना किसी थियेटर के फिल्मों में काम मिल जाता है। कभी फिल्मों में पोस्टमैन की भूमिका में नजर आते हैं तो कभी किसी गाने में हीरो-हीरोइन के आसपास उड़ते। उसकी बात सुन और चेहरे की उदासी देखकर मुझे मशहूर शायर निदा फाजली की वो चंद पंक्तियां याद आ गईं...
हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी
फिर भी तनहाइयों का शिकार आदमी
हर तरफ भागते दौड़ते रास्ते
हर तरफ आदमी का शिकार आदमी
रोज जीता हुआ रोज मरता हुआ
हर नए दिन नया इंतजार आदमी
जिंदगी का मुकद्दर सफर दर सफर
आखिरी सांस तक बेकरार आदमी। कुछ देर बात करने के बाद मैं वहां से घर के लिए निकल पड़ा।

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*40 साल पहले हुई थी शुरुआत* 

दिल्ली के जाने माने इतिहासकार विवेक शुक्ला बताते हैं, अब से तकरीबन 40 साल पहले आसफ अली रोड पर उनकी मूर्ति के नीचे कबूतरों का झुंड देखा था। वहीं पर पहली बार जैन और वैश्य समाज के लोगों ने कबूतरों के दाना-पानी रखना शुरू किया था। दिल्ली के लिए ये कुछ नया था। अब तो धीरे-धीरे सैकड़ों ठिकाने बन गए हैं जहां लोग कबूतरों के लिए दाना-पानी रखते हैं। कनॉट प्लेस में ही चार-पांच जगह मिल जाएंगी जहां जिनावरों के लिए दाना-पानी रखा रहता है।

रीगल बिल्डिंग के आसपास भी करीब तीन दशक से जिनावरों को दान चुगते देख रहा हूं। पंडितों व ज्योतिषों के कहने पर लोग कबूतरों को बाजरा, मक्के का दाना व पानी दे रहे हैं। कालकाजी, कड़कड़ी मोड़, शाहदरा, आइपी एक्सटेंशन, पुरानी और बाहरी दिल्ली सहित कई जगहों पर अब ऐसे ठिकाने देखे जा सकते हैं। 


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