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जानिये- कौन था दिल्ली का पहला कोतवाल, दूसरे कोतवाल से था अलाउद्दीन खिलजी का लिंक

दिल्ली के इतिहास के बारे में काफी कुछ लिखा गया है, लेकिन कम लोगों को पता होगा कि यहां के पहले कोतवाल कौन थे।

By JP YadavEdited By: Published: Thu, 23 Nov 2017 02:03 PM (IST)Updated: Fri, 24 Nov 2017 07:21 AM (IST)
जानिये- कौन था दिल्ली का पहला कोतवाल, दूसरे कोतवाल से था अलाउद्दीन खिलजी का लिंक

नई दिल्ली (अभिनव उपाध्याय)। दिल्ली के इतिहास के बारे में काफी कुछ लिखा गया है, लेकिन शायद यह बहुत कम लोगों को पता होगा कि दिल्ली के पहले कोतवाल कौन थे। प्रगति मैदान में चल रहे व्यापार मेले में दिल्ली पुलिस ने भी अपना अस्थायी कार्यालय बनाया है। यहां लगी प्रदर्शनी दिल्ली पुलिस के इतिहास को तो दर्शाती ही है, सही ही महत्वपूर्ण तथ्यों की भी जानकारी देती है।

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प्रदर्शनी में लगी एक तस्वीर दिल्ली के पहले कोतवाल मलिक उल उमरा फकरुद्दीन की है। तस्वीर के नीचे उनका परिचय दिया गया है कि ये सुल्तान बलबन के निजी सहायक थे और वर्ष 1237 में जब उनकी उम्र 40 साल से भी कम थी, वह दिल्ली के पहले कोतवाल बने।

उनकी मृत्यु 1294 में हुई। वर्ष 1648 में शाहजहां के समय की कोतवाली का भी चित्र है। ऐतिहासिक दरियागंज की कोतवाली का भी चित्र है। यहां वर्ष 1912 से 1948 तक के दिल्ली पुलिस के 28 प्रमुखों के बारे में भी जानकारी दी गई है।

यहीं तुगलक रोड थाने की भी ऐतिहासिक फोटो लगाई गई है। महात्मा गांधी की हत्या की प्राथमिकी यहीं दर्ज हुई थी। पंजाब के फिल्लौरी का भी दृश्य है, जहां दिल्ली पुलिस के कर्मी प्रशिक्षण लेते थे।

दिल्ली के पहले कोतवाल मलिक उल उमरा फखरूद्दीन सन् 1237 ईसवी में 40 की उम्र में कोतवाल बने। कोतवाल के साथ उन्हें नायब ए गिब्त (रीजेंट की गैरहाजिरी में )भी नियुक्त किया गया था। अपनी ईमानदारी के कारण ही वह तीन सुलतानों के राज-काल में लंबे अर्से तक इस पद पर रहे।

आज भले ही दिल्ली पुलिस की छवि कुछ दागदार है, पहले के कोतवालों की ईमानदारी के अनेक किस्से इतिहास में दर्ज हैं। एक बार तुर्की के कुछ अमीर उमराओं की संपत्ति सुलतान बलवन के आदेश से जब्त कर ली गई। इन लोगों ने सुलतान के आदेश को फेरने के लिए कोतवाल फखरूद्दीन को रिश्वत की पेशकश की। कोतवाल ने कहा ‘यदि मैं रिश्वत ले लूंगा तो मेरी बात का कोई वजन नहीं रह जाएग।'

कोतवाल का पुलिस मुख्यालय उन दिनों किला राय पिथौरा यानी आज की महरौली में था। इतिहास में इसके बाद कोतवाल मलिक अलाउल मल्क का नाम दर्ज है। जिसे सुलतान अलाउद्दीन खिलजी ने 1297 में कोतवाल तैनात किया था। सुलतान खिलजी ने एक बार मलिक के बारे में कहा था कि इनको कोतवाल नियुक्त कर रहा हूं जबकि यह है वजीर (प्रधानमंत्री ) पद के योग्य है।

इतिहास में जिक्र है कि एक बार जंग को जाते समय सुलतान खिलजी कोतवाल मलिक को शहर की चाबी सौंप गए थे। सुलतान ने कोतवाल से कहा था कि जंग में जीतने वाले विजेता को वह यह चाबी सौंप दें और इसी तरह वफादारी से उसके साथ भी काम करें।

मुगल बादशाह शाहजहां ने 1648 में दिल्ली को अपनी राजधानी बनाने के साथ ही गजनफर खान को नए शहर शाहजहांनाबाद का पहला कोतवाल बनाया था। गजनफर खान को बाद में कोतवाल के साथ ही मीर-ए-आतिश (चीफ ऑफ आर्टिलरी भी बना दिया गया।

कोतवाल व्यवस्था खत्म

1857 की क्रांति के बाद फिंरंगियों ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया और उसी के साथ दिल्ली में कोतवाल व्यवस्था भी खत्म हो गई। उस समय पंडित जवाहर लाल नेहरू के दादा और पंडित मोती लाल नेहरू के पिता पंडित गंगाधर नेहरू दिल्ली के कोतवाल थे।

आइने अकबरी के अनुसार जब शाही दरबार लगा होता था तब कोतवाल को भी दरबार में मौजूद रहना पड़ता था। वह रोजाना शहर की गतिविधियों की सूचनाएं चौकीदारों और अपने मुखबिरों के जरिए प्राप्त करता था।

अंग्रेजों ने पुलिस को संगठित रूप दिया

1857 में अंग्रेजों ने पुलिस को संगठित रूप दिया। उस समय दिल्ली पंजाब का हिस्सा हुआ करती थी। 1912 में राजधानी बनने के बाद तक भी दिल्ली में पुलिस व्यवस्था पंजाब पुलिस की देखरेख में चलती रही। उसी समय दिल्ली का पहला मुख्य आयुक्त नियुक्त किया गया था। जिसे पुलिस महानिरीक्षक यानी आईजी के अधिकार दिए गए थे उसका मुख्यालय अंबाला में था।

1912 के गजट के अनुसार उस समय दिल्ली की पुलिस का नियत्रंण एक डीआईजी रैंक के अधिकारी के हाथ में होता था। दिल्ली में पुलिस की कमान एक सुपरिटेंडेंट(एसपी)और डिप्टीएसपी के हाथों में थी।


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