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फिल्म विवादः महज कल्पना नहीं गौरवशाली इतिहास की नायिका थीं रानी पद्मावती

फिल्में संचार का बड़ा माध्यम होती हैं, इसलिए ऐसी फिल्में न बनाई जाएं, जिनसे भावनाएं आहत और इतिहास विकृत हो।

By JP YadavEdited By: Published: Wed, 22 Nov 2017 02:11 PM (IST)Updated: Thu, 23 Nov 2017 12:20 PM (IST)
फिल्म विवादः महज कल्पना नहीं गौरवशाली इतिहास की नायिका थीं रानी पद्मावती
फिल्म विवादः महज कल्पना नहीं गौरवशाली इतिहास की नायिका थीं रानी पद्मावती

नई दिल्ली (सुधीर कुमार पांडेय)। एक रानी का राज्य के राजा की सुरक्षा, आक्रांता से लोहा लेने के लिए उसके शिविर तक जाना और उसके बाद जौहर करना, सामान्य घटना नहीं है। यह राष्ट्रीय अस्मिता और नारी सम्मान से जुड़ी घटना है। गौरवशाली इतिहास में नारियों के अतुलनीय योगदान की गाथा है। राज्य की सुरक्षा के लिए अपने जीवन का बलिदान देने की गौरवगाथा है।

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चित्तौडग़ढ़ की रानी पद्मिनी, जिन्हें सूफी कवि मलिक मोहम्मद जायसी ने करीब दो सौ साल बाद पद्मावती कहा और प्रेमाख्यान पद्मावत की रचना की। इसमें उन्होंने चित्तौडग़ढ़ के राजा रतनसेन को नायक, पद्मावती को नायिका और अलाउद्दीन खिलजी को खलनायक बताया है।

जायसी ने तो अध्यात्म की बात की

यहां यह भी जानना चाहिए कि सूफी कवि लोक पात्रों के माध्यम से कल्पना की उड़ान भरते हुए अध्यात्म की बात करते हैं। जायसी ने भी ऐसा ही किया। पद्मावत में चित्तौड़ मानव शरीर का प्रतीक है, रतनसेन मन, पद्मावती बुद्धि, सुग्गा (तोता) हीरामन गुरु, राघव शैतान और खिलजी माया या भ्रम का प्रतीक है।

उन्होंने इस रचना के माध्यम से मेवाड़ की मर्यादा व सम्मान को कहीं से भी ठेस नहीं पहुंचाई। उन्होंने खिलजी के प्रेम नहीं बल्कि उसकी आसक्ति और छल के बारे में चर्चा की। जायसी ने पद्मावती की सुंदरता के साथ उनकी बुद्धि कौशल और साहस को भी रेखांकित किया है। उनकी यह रचना आध्यात्मिक संदेश देती है।

भावनाएं आहत करना कहां तक उचित

इतिहास पर फिल्म बननी चाहिए, लेकिन तथ्यों के साथ छेड़छाड़ उचित नहीं है। इससे भावनाएं आहत होती हैं। राजस्थान में करणी सेना ने फिल्म में इतिहास के साथ छेड़छाड़ का आरोप लगाया है। उसका कहना है कि फिल्म में अलाउद्दीन खिलजी और पद्मावती के बीच इंटीमेट सीन दर्शाए गए हैं।

हालांकि फिल्म के निर्देशक संजय लीला भंसाली यह बात नकार रहे हैं। उनका कहना है कि तथ्यों से छेड़छाड़ नहीं की गई है। यह बात सही है कि अभिव्यक्ति और सोचने व कल्पना की ऊंचाइयों तक जाने की स्वतंत्रता है। लेकिन, ऐसी अभिव्यक्ति को मूर्त रूप देना, लोगों के सामने रखना कहां तक जायज है, जिससे भावनाएं आहत हों।

फिल्में संचार का बड़ा माध्यम होती हैं। जनता को सीधे प्रभावित करती हैं। इसलिए ऐसी फिल्में न बनाई जाएं, जिनसे भावनाएं आहत और इतिहास विकृत हो।

अमीर खुसरो ने भी नहीं किया जिक्र

खिलजी के समकालीन अमीर खुसरो ने तारीखे अलाई में इस बात का जिक्र नहीं किया कि खिलजी ने रानी पद्मावती की सुंदरता पर मोहित होकर चित्तौड़ पर आक्रमण किया, जबकि उस समय लड़ाई में खुसरो भी खिलजी के साथ थे।

फरिश्ता ने पद्मावत के आधार पर वर्ष 1610 में इस बात का जिक्र किया, जोकि विश्वसनीय नहीं कहा जा सकता है। आगे चलकर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी कर्नल टॉड ने भी इस बात की चर्चा की।

इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा (1862-1947) ने राजस्थान के बारे में गहराई से लिखा है। उनके अनुसार पद्मावत, तारीखे फरिश्ता और टॉड के संकलनों में तथ्य बस इतना ही है कि खिलजी ने चित्तौडग़ढ़ को विजित किया, वहां का राजा मारा गया और रानी ने राजपूत वीरांगनाओं के साथ जौहर किया।


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