दिल्ली में मौजूद हैं 3 कल्पवृक्ष, समुंद्र मंथन से भी जुड़ी है इनकी कहानी
लोगों को जैसे ही पता लगा कि यह कल्पवृक्ष है, लोगों ने इनकी छाल, पत्तों, फूल, टहनियों को तोड़ना शुरू कर दिया। हिंदू मान्यता के अनुसार कल्पवृक्ष समुंद्र मंथन के समय प्रकट हुआ था।
नई दिल्ली [राकेश प्रजापति]। कल्पवृक्ष, अधिकतर लोग इसे बस नाम से ही जानते होंगे लेकिन दिल्ली के चिड़ियाघर में इसे देखा भी जा सकता है। यह वृक्ष अपनी अनूठी वन्य संपदा के चलते बेहद खास होता है। अलबत्ता, संरक्षण के मद्देनजर प्रशासन ने इसकी पहचान छुपाई है। प्रशासन का कहना है कि लोग इसको नुकसान न पहुंचाएं इसलिए ऐसा किया गया है। ऐसे में लोगो की भी जिम्मेदारी बनती है कि वे इसको निहारें मगर नुकसान न पहुंचाएं।
जानकारी के मुताबिक दिल्ली में मात्र तीन कल्पवृक्ष हैं, जिनमें से दो चिड़ियाघर में हैं। इनके बारे में वर्ष 2008 में एक सर्वे के दौरान पता चला था। इसका उल्लेख बाद में सर्वे पर आधारित किताब में किया गया था। उस समय यहां पर तीन कल्पवृक्ष थे, लेकिन एक सूख चुका है। बताया जाता है कि सर्वे के बाद इन वृक्षों पर नेमप्लेट लगा दी गई थी, लेकिन कुछ समय बाद इसे हटा दिया गया।
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लोगों को जैसे ही पता लगा कि यह कल्पवृक्ष है, लोगों ने इनकी छाल, पत्तों, फूल, टहनियों आदि को तोड़ना शुरू कर दिया। बात यहां तक तो ठीक थी लेकिन लोगो ने यहां पूजा पाठ तक शूरू कर दी। वृक्षों को नुकसान होता देख प्रशासन ने इनके सरंक्षण के लिए नेमप्लेट हटा दी और वृक्ष के इर्द गिर्द तार से घेराबंदी कर दी।
चिड़ियाघर प्रशासन का कहना है कि लोगों को वृक्षों को नुकसान पहुंचाने से काफी रोका गया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ जिसके बाद यह कदम उठाया गया। इनमें से एक वृक्ष चिड़ियाघर में गोरल के बाड़े के पास है, जिसे तारों से घेर दिया गया है, जबकि दूसरा जिराफ के बाड़े में होने के कारण कुछ सुरक्षित है।
यहां से रोजाना हजारों लोग गुजरते हैं, लेकिन किसी का ध्यान इनपर नहीं जाता। यही नहीं चि़ड़ियाघर में विनगेड कालाबाश (विलायती बेल), जिनके दिल्ली में कुल चार वृक्ष है उनमें से दो यहां हैं। चिड़ियाघर में देश विदेश की अलग-अलग प्रजाति के सैकड़ों वृक्ष है, जो यहां की वन संपदा को समृद्ध बनाते हैं।
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इसलिए खास है कल्पवृक्ष
हिंदू मान्यता के अनुसार कल्पवृक्ष समुंद्र मंथन के समय प्रकट हुआ था, जिसके कारण यह लोगों की आस्था का प्रतीक है। यह वृक्ष अपने औषधीय गुणों के लिए भी काफी प्रसिद्ध है। यह धरती पर सबसे ज्यादा वर्षों तक जिंदा रहने वाले वृक्षों में से एक होता है। इसे बओबाब वृक्ष या मंकी ब्रेड वृक्ष भी कहते है।
अफ्रीका में तो यह काफी संख्या में मिलते हैं, लेकिन भारत में इनकी संख्या काफी कम है। ये दिल्ली के अलाव कर्नाटक, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु में सीमित मात्रा में हैं।
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उल्लेखनीय है कि भारत समेत विश्व के अन्य हिस्सों में पाए जाने वाले इस वृक्ष पर लुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। इसलिए इनको बचाने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी कई प्रयास हो रहे हैं। इस नजरिए से अगर दिल्ली में इस वृक्ष के दर्शन हो जाएं तो यह सांस्कृतिक और वन संपदा की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है।