दिल्ली में खतरनाक स्तर पर प्रदूषण, चार साल में ढाई गुना जहरीली हुई हवा
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) से प्राप्त 2012 से 2016 के सालाना आंकड़े दिल्ली की भयावह तस्वीर प्रस्तुत कर रहे हैं।
नई दिल्ली (संजीव गुप्ता)। तमाम दावों से इतर पिछले चार सालों में दिल्ली की आबोहवा बद से बदतर हुई है। वायु प्रदूषण भी दोनों स्तरों पर ही बढ़ा है। चाहे वह वाहनों से निकलने वाला धुआं हो अथवा सड़क पर उड़ने वाली धूल। सूक्ष्म और अतिसूक्ष्म कणों की बढ़ती संख्या ने आबोहवा में ढाई गुना तक जहर घोल दिया है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) से प्राप्त 2012 से 2016 के सालाना आंकड़े दिल्ली की भयावह तस्वीर प्रस्तुत कर रहे हैं। पिछले चार साल के दौरान वायु प्रदूषण में लगातार बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
यह आंकडा भी पूर्वी, दक्षिणी, उत्तरी, पश्चिमी और केंद्रीय दिल्ली सहित सभी जगहों पर देखने को मिला है। बढ़ोतरी पीएम 10 और पीएम 2.5 दोनों ही प्रदूषक तत्वों में दर्ज की गई है।
यह हैं मानक
वातावरण में प्रदूषक तत्व पीएम 2.5 का इंडेक्स 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक सामान्य होता है। इसी तरह पीएम 10 का इंडेक्स 101 से 250 के बीच हो तो स्थिति सामान्य मानी जाती है।
यहां यह भी गौरतलब है कि पीएम 10 का इंडेक्स भवन निर्माण से उड़ने वाली धूल और सड़क पर वाहनों के चलने से उड़ने वाली धूल की वजह से बढ़ता है। जबकि पीएम 2.5 का इंडेक्स वाहनों से निकलने वाले धुएं से बढ़ता है।
साल दर साल दिल्ली की आबोहवा का और ज्यादा बिगड़ना चिंताजनक है। इसकी एक नहीं, कई वजह हैं। सबसे बड़ी बात यह कि दिल्ली में वाहनों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। ऐसे में उनका धुआं बढ़ना भी तय है। दूसरी तरफ कड़वा सच यह भी है कि दिल्ली में वायु प्रदूषण कम करने के लिए बातें तमाम होती हैं, बैठकें भी होती हैं और एक्शन प्लान भी बन जाते हैं, लेकिन उन पर गंभीरता से काम नहीं हो पाता। - विवेक चट्टोपाध्याय, प्रोग्राम मैनेजर, एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग विंग, सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट
मेरा मानना है कि दिल्ली की आबोहवा को बेहतर बनाने के लिए स्थानीय स्तर पर एक्शन प्लान लागू करना चाहिए। दिल्ली के अलग-अलग हिस्सों की स्थिति एक-दूसरे से अलग है। जनकपुरी और सीरीफोर्ट में प्रदूषण बढ़ने की वजह एक नहीं अलग-अलग है। ऐसे में जब वजहें ही अलग हों तो उपाय भी एक-सा नहीं हो सकता। जहां की जो समस्या हो, वहां का समाधान भी उसी के अनुरूप ढूंढना होगा। ऐसा करने पर ही हालात में बदलाव आ पाएगा।- डॉ. दीपांकर साहा, अतिरिक्त निदेशक, सीपीसीबी