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JNU परिपाटी के उजले और धुंधले अश्‍क - पढ़ें, पूरी रिपोर्ट

सर्वदा से यह माना जाता है कि जेएनयू कैंपस से निकली आवाज बौद्ध्कि लोगों की होगी। यह विचार देश को एक नई दिशा की ओर ले जाने में समर्थ होगा। दूसरी ओर यह भी कहा गया कि यह सर्वदा 'इस्टैब्लिशमेंट' का विरोधी रहा है।जेएनयू की इस परिपाटी के उजले और

By Ramesh MishraEdited By: Published: Tue, 16 Feb 2016 01:58 PM (IST)Updated: Wed, 17 Feb 2016 05:29 PM (IST)

नई दिल्ली [ रमेश मिश्र ]। दुनियाभर में अपनी शिक्षा की उम्दा गुणवत्ता के लिए जगजाहिर जवाहरलाल नेहरू विश्विद्यालय इन दिनों एक खास मामले को लेकर सुर्खियों में है। सर्वदा से यह माना जाता है कि जेएनयू कैंपस से निकली आवाज बौद्ध्कि लोगों की होगी। उसमें विचार होगा। दर्शन होगा। यह विचार देश को एक नई दिशा की ओर ले जाने में समर्थ होगा। उसके क्रियाकलपा पर लोगों की नजरें रहती हैं। इतना ही नहीं यहां से निकले लोग देश के प्रमुख पदों पर भी विराजमान रहे हैं। दूसरी ओर यह भी कहा गया कि यह सर्वदा 'इस्टैब्लिशमेंट' का विरोधी रहा है। कई बार यह भी आरोप लगे कि यहां अलगाववादियों का शरण मिली। जेएनयू की इस परिपाटी के उजले और धुंधले अश्क को कुरेदती एक रिपोर्ट।

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'इस्टैब्लिशमेंट' की भर्त्सना, सर्वदा बदलाव पर रहा जोर

जेएनयू की एक परिपाटी रही है कि उसने हमेशा से 'इस्टैब्लिशमेंट' की भर्त्सना की है। बदलाव पर अधिक जोर दिया गया है। अपने आधी सदी के इतिहास में जेएनयू कभी भी साधारण लोगों तक पहुंच बनाने में नाकाम रहा है। इसके चलते वहां से निकले विचारों की आवाज दूर तक नहीं पहुंच सकी। यहां से निकली आवाज आम जन की आवाज नहीं बन सकी। लोगों की बड़ी-बड़ी बातें यहां हवा में तैरती मिलेंगी, लोगों से सीधा संवाद नदारद रहता है। इतना ही नहीं जानकार बताते हैं कि यहां होने वाले शोध भी कुछ इस तरह से प्रबंधित किए जाते हैं कि लोगों से कम से कम संबंध रहे।

हालांकि जेएनयू से यह अपेक्षा रहती है कि वह लोक क्रांति में भी सबसे अग्रणी भूमिका में रहेगा। वह देश और दुनिया में लोक सम्मत वाम विचारधारा को फैलने में भी मदद करेगा। इसमें हो रहे शोध ज्ञान की रोशनी से देश और दुनिया उजागर होगी। यह उम्मीद कुछ इतनी प्रबल रही है कि लोग यह समझ ही नहीं पाते हैं कि जेएनयू मुख्यत: देश के 'इस्टैब्लिशमेंट' के लिए काम करता है, उसके विरोध में नहीं।

अभिव्यक्ति की आजादी में अग्रणी रहा जेएनयू

अजीब तरह के विचार और चालचलन जो साधारणत: समाज में छुपा लिए जाते हैं, यहां आसानी से अभिव्यक्ति पाते रहे हैं। जब पूरे देश में समलैंगिकता को लेकर हाहाकार मचा हुआ था तो यह उन बिरले परिसरों में था, जहां समलैंगिकता की स्वतंत्रता के बारे में लोगों को बहस नहीं करनी पड़ी।

जब देश में सिगरेट पीने पर प्रतिबंध लगा तो यहां ही सिगरेट पीने की परम्परा निर्बाध चलती रही। जब देश महिलाओं के लिए सामाजिक न्याय की बहस में निरर्थक बहस कर रहा था तब महिलाओं को जेएनयू परिसर में स्वछंद रहने और काम करने की आज़ादी रही। जब दिल्ली भर में कांग्रेस सरकार की आड़ में सिखों का क़त्ल हो रहा था तब जेएनयू ने ही सिखों को शरण दी।

भगोड़ों की शरणस्थली बना जेएनयू

अभिव्यक्ति की आजादी की आड़ लेकर देश के ख़िलाफ़ विचार तैयार करने के लिए यहां के वैचारिक खुलेपन का इस्तेमाल किया गया। यह भी आरोप है कि जेएनयू परिसर में अनेकानेक भगोड़ों ने शरण ली। कई उग्रवादी भी यहां से पकड़े जा चुके हैं।

जेएनयू छात्रों ने देश को दिखाई नई राह
वहां से निकलने वाले छात्र देश में बड़े-बड़े पदों पर विराजमान हैं। हाल के दिनों में मोदी सरकार के सबसे महत्वपूर्ण पदों पर भी जेएनयू से पढ़े लोग ही बैठे हैं।

- सीबीआई चीफ़, चीन में सबसे लम्बे समय तक रहने वाले भारत के राजदूत जो आजकल भारत के विदेश सचिव हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मेक इन इंडिया प्रोग्राम के प्रमुख कार्यकर्ता, ये सब जेएनयू के पढ़े हैं।

- देश के वाणिज्य और उद्योगों को बढ़ाने का बीड़ा उठाने वाली मंत्री निर्मला सीतारमन के अलावा राजनीति के अनेक बड़े नेता यहीं से निकले हैं।
- मीडिया और शिक्षण के क्षेत्र में तो जेएनयू में पढ़े लोगों की भरमार है।


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