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जानें, कैसे ढह गई मजहब की दीवार, एक साथ आए हिंदू और मुस्लिम

गाजियाबाद में मजहब की दीवार तोड़कर मुस्लिम बिरादरी के लोगों ने एक हिंदू परिवार की गाढ़े वक्‍त पर मदद की। उनकी यह मदद पढ़कर आप भी दंग रह जाएंगे।

By JP YadavEdited By: Published: Thu, 20 Oct 2016 10:15 AM (IST)Updated: Fri, 21 Oct 2016 08:36 AM (IST)

गाजियाबाद [ हसीन शाह ]। सहिष्णुता और असहिष्णुता पर बयानबाजी करके सुर्खियों में बने रहने की आदत डाल चुके राजनेताओं को मुरादनगर की नूरगंज कॉलोनी की इस घटना से सबक लेना चाहिए। यहां पिछले 20 वर्ष से मुस्लिम परिवार के साथ रह रही 60 वर्षीय संतोषी देवी की सोमवार को बुखार से मौत हो गई।

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उनकी इच्छानुसार मुस्लिम समुदाय के लोगों ने ना केवल बुजुर्ग महिला के शव का अंतिम संस्कार किया, बल्कि मृतका की अस्थि विसर्जन करने के लिए मुस्लिम समुदाय के लोग अब हरिद्वार के लिए बुधवार को रवाना हो गए हैं। इतना ही नहीं, मृतका की आत्मशांति के लिए गायत्री पाठ भी कराया जा रहा है।

मजबूत हुआ इंसानियत का रिश्ता

यहां बता दें कि अलीगढ़ निवासी संतोषी देवी को 20 वर्ष पूर्व पति ने मारपीट कर घर से निकाल दिया था। इसके बाद वह अलीगढ़ से गाजियाबाद आने वाली ट्रेन बैठ गईं। संतोषी देवी ट्रेन में बैठकर रो रही थीं। इस दौरान संतोष की मुलाकात नूरगंज कालोनी निवासी मुन्नी (मुस्लिम किन्नर) से हुई।

उसने उनसे रोने कारण पूछा। इसके बाद संतोषी ने उन्हें अपनी आपबीती सुनाई। महिला की आपबीती सुनने के बाद मुन्नी का दिल भर आया और उसे अपने साथ घर ले आई। संतोषी तब से मुन्नी के साथ ही रह रही थीं।

लगभग छह वर्ष पूर्व कालोनी के ही अब्दुल वाहिद और उसकी पत्नी मौसीना ने संतोषी देवी और मुन्नी की सेवा करनी शुरू कर दी। संतोषी देवी के कहने पर अब्दुल वाहिद ने उनके लिए अपने घर में एक मंदिर का भी प्रबंध कर दिया।

एक कमरे में संतोषी पूजा अर्चना करती थीं, वहीं दूसरे कमरे में अब्दुल वाहिद की पत्नी मौसीना नमाज अदा करती थीं। विगत दो-तीन महीनों से संतोषी की तबीयत ज्यादा खराब चल रही थी। डाक्टरों को दिखाने के बावजूद उसकी तबीयत में कोई सुधार नहीं हुआ।

समय निकट आते देख उन्होंने अब्दुल से हिंदू-रीति रिवाज के अनुसार ही अपने शव का अंतिम संस्कार करने की इच्छा जाहिर की थी। रविवार को संतोषी को तेज बुखार आया था। इसके बाद अब्दुल वाहिद और उनकी पत्नी ने रात भर संतोषी की देखभाल की।

उन्हें डाक्टर को भी दिखाया गया, लेकिन सुबह चार बजे संतोषी ने दम तोड़ दिया। उनकी मौत की खबर सुनकर कालोनी में मातम पसर गया। मुस्लिम समुदाय के सैकड़ों लोग उनकी अंतिम यात्रा में शामिल हुए।

संतोषी की इच्छानुसार हिंदू-रीति रिवाज से उनका अंतिम संस्कार सहबिस्वा स्थित शमशान घाट में किया गया। सिराज खान ने संतोषी की चिता को मुखाग्नि देकर उन्हें अंतिम विदाई दी।

बुधवार को सिराज खान, शाहिद खान और ताहिर मलिक शमशान से संतोषी की अस्थि एकत्र की। इतना ही नहीं, तीनों लोग अस्थि विसर्जन के लिए हरिद्वार रवाना हो गए।

मृतक महिला का मुस्लिम लोगों के अलावा कोई नहीं था। मुस्लिम लोगों ने बिना भेदभाव के हिंदू धर्म के अनुसार उसका अंतिम संस्कार किया। इन लोगों ने हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल कायम की है। इसका पुण्य इनको अवश्य मिलेगा। यहां रहने वाले अब्दुल वाहिद ने बताया कि उनकी इच्छानुसार ही उनके शव का अंतिम संस्कार किया गया है।


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