दिल्ली में हुकूमत को लेकर LG-केजरीवाल के बीच टकराव के अहम पड़ाव
केजरीवाल सरकार के गठन के बाद एलजी और सरकार के बीच कई मुद्दों पर दो-दो हाथ हुए हैं। आखिर वे मामले कौन से हैं, जहां दोनों पक्षों ने एक दूसरे पर अधिकारों के अतिक्रमण का अारोप लगाया।
नई दिल्ली (जेएनएन)। दिल्ली में केजरीवाल की सरकार बनने के बाद ऐसे कई मौके आए जब दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल आमने-सामने खड़े हो गए। हर बार लड़ाई अधिकारों की थी। दोनों एक दूसरे पर अधिकारोंं के अतिक्रमण का आरोप लगाते रहे। आखिर वे कौन से मामले हैं जिन पर दोनों पक्षों में दो-दो हाथ हुए ।
1-तबादलों पर भिड़े थे केजरीवाल-उपराज्यपाल
उपराज्यपाल नजीब जंग से केजरीवाल सरकार का विवाद तो पिछली आप की सरकार के ही समय से ही था। इस फैसले से अधिकारियों के तबादले आदि पर चला विवाद अब सुलझ गया है।
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2-ट्रांसफर-पोस्टिंग पर हुआ था जमकर विवाद
इसी साल मई महीने में दिल्ली हाईकोर्ट में केंद्र सरकार की तरफ से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल संजय जैन ने बहस की थी। केंद्र की दलील थी कि दिल्ली सरकार कोई ट्रान्सफर, पोस्टिंग नहीं कर सकती क्योंकि ये उनका अधिकार क्षेत्र नहीं है। कोर्ट ने कहा की कोर्ट के बाहर इस पर कुछ भी राजनीती करें हमें इसकी चिंता नहीं हम केवल कानूनी पक्ष देख रहे हैं। इस पर केजरीवाल सरकार की ओर से जवाब दाखिल किया गया था।
3-दो-दो एसीबी पर हुई थी भिड़ंत
आज के फैसले से दो-दो एसीबी (भ्रष्टाचार निरोधक शाखा) के प्रमुख का विवाद सुलझ गया है। यहां पर बता दें कि एक समय दिल्ली में दो-दो एसीबी बन गए थे। गौरतलब है कि एसएस यादव को दिल्ली सरकार ने और मुकेश मीणा को उप राज्यपाल नजीब जंग ने एसीबी प्रमुख बनाया था।
4-दिल्ली महिला आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति पर भी खिंची थी तलवार
दिल्ली महिला आयोग का विवाद चर्चा में रहा था। बिना उपराज्यपाल की मंजूरी के स्वाति मालीवाल को दिल्ली महिला आयोग के अध्यक्ष पर विवाद होने पर भी दो दिन बाद सरकार ने उप राज्यपाल की मंजूरी के लिए नाम भेजा था।
5-LG ने दिल्ली सरकार से एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड संबंधी अधिसूचना वापस लेने को कहा था
दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग ने दिल्ली सरकार से सुप्रीम कोर्ट के लिए एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड और जिरह करने वाले वकील के पैनल नियुक्त करने की अधिसूचना तत्काल वापस लेने के लिए कहा था। उप राज्यपाल के इस कदम से केंद्र और आप सरकार के बीच एक और टकराव शुरू हो गया था।
6-शकुंतला गैमलिन को नियुक्त करने पर आमने-सामने थे LG-CM
इसी साल मई महीने में दिल्ली के कार्यकारी मुख्य सचिव के रूप में शकुंतला गैमलिन को नियुक्त करने के मामले में दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के विवाद ने नया मोड़ ले लिया था। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने गैमलिन को यह पद नहीं संभालने को कहा था, लेकिन उसके बावजूद गैमलिन ने कार्यकारी मुख्य सचिव का चार्ज ले लिया था। इस पर दिल्ली सरकार ने बीजेपी पर उपराज्यपाल के जरिये 'तख्तापलट' करने का आरोप लगाया है। दरअसल दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव केके शर्मा 10 दिन की छुट्टी पर गए हैं, जिनके स्थान पर उपराज्यपाल ने गैमलिन को नियुक्त किया था।
क्याा है यक्ष सवाल
आजादी के बाद मार्च 1952 में महज दस विषयों के लिए 48 सदस्यों वाली दिल्ली को विधान सभा दी गई थी।1955 में राज्यपुर्नगठन आयोग बनने के बाद दिसल्ली की विधान सभा भंग कर दी गई। 1958 में दिल्ली नगर निगम अधिनियम के तहत दिल्ली में नगर निगम बनी।
प्रशासनिक सुधार आयोग की 1966 में रिपोर्ट आने के बाद 61 सदस्यों वाली महानगर परिषद बनी जिसे 1987 में भंग करके दिल्ली को नया प्रशासनिक ढ़ांचा देने के लिए बनी बालकृष्ण कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर 1993 में पुलिस और जमीन के बिना विधान सभा दी गई।
तभी इस पर गंभीरता से चर्चा होनी चाहिए थी कि आखिर चुनी हुई सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री के बजाए उप राज्यपाल का शासन क्यों होना चाहिए। जो लोग दिल्ली सरकार को बनाते हैं वे कुछ चीजों के लिए किसी और को जिम्मेदार क्यों मानें।