'सांसों की डोर' पर भारी पड़ रही बीमार सिगनल प्रणाली
प्रदीप कुमार सिंह, नई दिल्ली
राजधानी में सांसों की डोर पर बीमार सिगनल व्यवस्था भारी पड़ रही है। सभी जानते हैं कि किसी भी शहर की यातायात व्यवस्था में सिगनल प्रणाली का बेहद अहम रोल होता है, मगर यह देश की राजधानी में ही सिगनल प्रणाली दुरुस्त नहीं। शहर के अधिकतर सिगनल रात में यातायात पुलिस की गैरमौजूदगी में शोपीस बन जाते हैं और वाहन चालक इनकी परवाह किए बिना फर्राटे से निकल जाते हैं। वहीं बारिश या बिजली जाने की स्थिति में ये बिल्कुल दम तोड़ देते हैं। इसका कोई विकल्प तक नहीं है। नतीजा सामने है, तेजी से बढ़ रही दुर्घटनाएं और बेमौत मरते लोग।
दुर्घटनाओं को लेकर यातायात पुलिस के संयुक्त आयुक्त सत्येंद्र गर्ग चिंतित हैं। वह कहते हैं, सुधार की तत्काल जरूरत है। केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. एस वेलमुर्गन भी शहर में तेजी से फैलते फ्लाईओवरों के जाल को ध्यान में रखकर करीब पचास फीसद सिगनल और बढ़ाने की बात कह रहे हैं। दोनों की ही चिंता इसलिए भी लाजिमी है क्योंकि राजधानी में हर साल सड़क दुर्घटनाओं में मरने वाले दो हजार लोगों में पचास फीसद राहगीर होते हैं। जल्दी पहुंचने की आपाधापी में सड़क पर दौड़ते वाहनों के बीच से गुजरने वाले यह वह लोग हैं जो पैदल ही 11 किलोमीटर की रफ्तार से सड़क पार करते हैं।
सिगनल प्रणाली दुरुस्त न होने की अपनी-अपनी दलीलें हैं। यातायात पुलिस जहां अपने बहु-प्रतीक्षित इंटेलिजेंट ट्रैफिक सिस्टम के चलते सिगनल प्रणाली पर अधिक खर्च करने के मूड में नहीं है वहीं नागरिक एजेंसियां यातायात व्यवस्था सुधारने के नाम पर सड़कों को ज्यादा से ज्यादा सिगनल-फ्री करने पर जोर दे रही हैं। यातायात पुलिस अधिकारियों की मानें तो सिगनल-फ्री होने से जहां खाली सड़कों पर वाहनों की रफ्तार बढ़ने से पैदल व दोपहिया वाहन चालकों के लिए दुर्घटना का खतरा बढ़ जाता है वहीं गाड़ी खराब होने की स्थिति में दुर्घटना व जाम दोनों की आशंका बनी रहती है।
भ्रामक मार्गदर्शक साइन बोर्ड : राजधानी में कई स्थानों पर मार्गदर्शक साइन बोर्ड या तो पेड़ों के झुरमुट में छिप गए हैं या वह इस तरह लगे हैं कि वाहन चालक उन्हें देखकर भ्रमित हो जाए। कई महत्वपूर्ण सड़कों पर मार्गदर्शक न होने से कई बार मालवाहक वाहन गलत दिशा में चल पड़ते हैं जो दुर्घटना की बड़ी वजह बन जाते हैं।
नहीं हैं रात में काम करने वाले इंटरसेप्टर : वाहनों की गति सीमा चेक करने के लिए यातायात पुलिस के पास इंटरसेप्टर तो हैं लेकिन वह रात में काम नहीं करते। लिहाजा यातायात पुलिस अब रात में भी गाड़ी की स्पीड को दर्ज कर लेने वाले इंटरसेप्टरों की खरीद करने जा रही है।
250 सिगनलों की जरूरत : सीआरआरआइ
सीआरआरआइ में ट्रैफिक इंजीनियरिंग एवं सेफ्टी डिवीजन के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. एस. वेलमुर्गन बताते हैं कि राजधानी में अभी भी 250 नए सिगनल लगाने की जरूरत है। बेशक यातायात पुलिस ने कुछ सिगनलों की संख्या बढ़ाई है। लेकिन वाहनों के दबाव को देखते हुए और नए फ्लाईओवर बनाने के चलते इनकी जरूरत है। जिससे दुर्घटनाओं पर और नियंत्रण लगेगा। इसके अलावा कुछ जंक्शन ऐसे भी हैं, जहां सिगनल खराब हैं। उन्हें दुरुस्त किया जाए। बेवजह लगे सिगनलों को हटाने का काम चलता तो रहता है। लेकिन अक्सर समय पर यह काम पूरा न होने के कारण भी दुर्घटनाएं घटती हैं।
इंटेलिजेंट ट्रैफिक सिस्टम से ही सुधार संभव
'राजधानी में मौजूदा सिगनल प्रणाली से मैं संतुष्ट नहीं। इंटेलिजेंट ट्रैफिक सिस्टम लागू होने के बाद स्थिति में सुधार होगा। इस प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है, लेकिन इसमें तीन साल का समय लग सकता है। दुर्घटनाओं पर अंकुश के लिए हम लेन सिगनल प्रणाली तथा स्पीड कैमरे लगाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। नागरिक एजेंसियों से भी हम लगातार यह कह रहे हैं कि सड़कों पर एक निश्चित दूरी के बाद पैदल यात्रियों की सड़क पार करने की सुविधा का ध्यान रखा जाए। इसके लिए एस्केलेटर युक्त फुट ओवरब्रिज, अंडरपास एवं पेडस्ट्रियन सिगनल जो भी संभव हो, बनाए जाने चाहिए। सड़क पर निकलने वाले हर व्यक्ति से भी यातायात पुलिस अपील करती है कि यातायात नियमों का पालन करें। यह सोचकर वाहन ना चलाएं कि सड़क पर उन्हें देखने वाला कोई नहीं इसलिए जो चाहे करें, हमेशा यह सोचें कि जितनी आपकी जान कीमती है उतना ही महत्व दूसरे के जीवन का भी है।'
-सत्येंद्र गर्ग (संयुक्त पुलिस आयुक्त)
क्या है इंटेलिजेंट ट्रैफिक सिस्टम
- राजधानी की सभी सड़कों को अत्याधुनिक कैमरों की जद में लाया जाएगा। यातायात मुख्यालय से इसका कनेक्शन होगा। पूरी तरह से कंप्यूटराइज्ड इस सिस्टम में कंट्रोलरूम से ही यह पता चल जाएगा कि किस मार्ग पर जाम लगा है, कहां सिगनल खाली है कहां वाहनों का ज्यादा दबाव है। उस हिसाब से कंट्रोल रूम से ही यातायात रूट परिवर्तन व लाल या हरे सिगनल की व्यवस्था हो जाएगी। मसलन एक तरफ की हरी बत्ताी है और वहां कोई वाहन नहीं है जबकि लालबत्ताी की तरफ काफी वाहन है, ऐसे में कंट्रोल रूम से उस तरफ की लाइट हरी हो जाएगी। सड़क पर खराब खड़ी गाड़ी से यातायात में रुकावट आने पर कंट्रोल रूम से ही नजदीकी क्रेन पर तैनात स्टाफ और उस इलाके के ट्रैफिक इंस्पेक्टर को यह जानकारी दे दी जाएगी।
यातायात व्यवस्था से जुड़े तथ्य
-राजधानी में करीब 32 हजार किलोमीटर लंबे सड़क मागों पर केवल 130 स्थानों पर पैदल यात्रियों के लिए सड़क पार करने के लिए सिगनल लगाए गए हैं। यातायात पुलिस के अनुसार, यह संख्या करीब 500 होनी चाहिए।
-कई प्रमुख स्थानों पर ट्रैफिक सिगनल काम करना बंद कर देते हैं जो दुर्घटनाओं की वजह बनते हैं। यातायात पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि औसतन 50 सिगनल रोज खराब पड़े होते हैं।
-शहर के 790 सिगनल में कुछेक में ही सोलर सिस्टम है, जबकि अधिकतर सिर्फ बिजली से संचालित हैं। अचानक बिजली संकट आ जाए तो शहर के हर कोने में सिगनल प्रणाली ठप हो जाएगी।
-सबसे खतरनाक दस सड़कों में सिंघू बॉर्डर से जीटी करनाल रोड तक करीब 22 किलोमीटर लंबा मार्ग सर्वाधिक खतरनाक है। यहां वर्ष 2010 की तुलना में 2011 में सड़क दुर्घटनाओं में 59 फीसदी बढ़ोत्तारी हुई।
- वर्ष 2011 में सड़क दुर्घटनाओं में मारे गए 2044 लोगों में 946 पैदल यात्री थे।
सिगनल खराब दिखे तो सूचित करें
खराब सिगनल की सूचना देने के लिए यातायात पुलिस ने 25844444 फोन नंबर भी जारी किया है।
राजधानी की सड़कों पर सिगनल
वर्ष- सिगनल- ब्लिंकर
2010- 735- 384
2012-790- 394
पेडस्ट्रियन सिगनल
130
पेलिकन सिगनल
39
यातायात पुलिस की क्षमता
स्वीकृत पद- 5,372
वर्ष- कर्मचारी
2010- 4723
2012- 6118
बाइकर्स दस्ता- 610
राजधानी में दुर्घटनाओं का समयवार ब्योरा
समय- दुर्घटनाएं
6 से 9- 794
9 से 12-936
12 से 3- 963
3 से 6- 1087
6 से 9-1100
9 से 12- 1258
12 से 3- 607
3 से 6- 535
(प्रात: से शुरू)
कुल- 7280
दुर्घटनाओं में मृतकों की संख्या
वर्ष- मृतक
2010- 2153
2011- 2044
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