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मुश्किलों को चुनौती देकर बिटिया ने बढ़ाया माता-पिता का मान

सचिन त्रिवेदी, पूर्वी दिल्ली : सोनिया विहार जैसा पिछड़ा इलाका, जहां अधिकतर लोग बेहद सामान्य परिवार

By JagranEdited By: Published: Mon, 29 May 2017 01:00 AM (IST)Updated: Mon, 29 May 2017 01:00 AM (IST)
मुश्किलों को चुनौती देकर बिटिया ने बढ़ाया माता-पिता का मान
मुश्किलों को चुनौती देकर बिटिया ने बढ़ाया माता-पिता का मान

सचिन त्रिवेदी, पूर्वी दिल्ली : सोनिया विहार जैसा पिछड़ा इलाका, जहां अधिकतर लोग बेहद सामान्य परिवार या फिर मजदूर वर्ग से ताल्लुक रखते हैं। यहां ऐसे लोगों की संख्या अधिक है, जो आर्थिक रूप से कमजोर होने के चलते चाहते हुए भी अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा नहीं दिला पा रहे हैं। कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो स्कूल के अभाव की वजह से अपनी बेटियों को दूसरे इलाकों में पढ़ने भी नहीं भेजना चाहते। मगर यहीं की एक बेहद सामान्य परिवार की बेटी कविता कुमारी पाठक ने विपरीत आर्थिक एवं सामाजिक परिस्थितियों के बीच 12वीं के परीक्षा परिणामों में सर्वाधिक 91 प्रतिशत अंक लाकर दूसरों के सामने मिसाल पेश किया है। उसने ऐसे स्कूल में शिक्षा पाई जहां एक-एक कक्षा में आज भी 150-150 बच्चे बैठने को मजबूर हैं। यह कहानी सोनिया विहार स्थित राजकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की है, जहां घनी आबादी के बीच एकमात्र स्कूल होने के चलते इतनी भीड़ है कि रोजाना 1400 बच्चों को यमुना विहार के स्कूल में अतिरिक्त बि¨ल्डग बनवाकर शिक्षा दिलाने का काम किया जा रहा है।

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कविता पाठक आ‌र्ट्स स्ट्रीम की छात्रा हैं, यह ऐसे लोगों को प्रेरणा दे रही हैं, जो स्कूलों की अव्यवस्था और घरेलू परेशानियों का बहाना बनाकर पढ़ाई छूटने की बात करते हैं और बेटियों को शिक्षा दिलाना नहीं चाहते। कविता बताती हैं कि उनके पिता दीनानाथ पाठक खारी बावली में एक सामान्य की नौकरी करते हैं और माता सुशीला देवी पाठक गृहिणी हैं। पूरे घर की जिम्मेदारी को दोनों भरपूर तरीके से निभा रहे हैं। आर्थिक तंगी होने के बावजूद पिता ने कभी कविता को पढ़ाई करने से नहीं रोका, साथ ही दो बेटे व एक बेटी को भी शिक्षा दिला रहे हैं। कविता ने उपलब्धि का श्रेय पहले माता-पिता और फिर अपने स्कूल की प्रधानाचार्या राजेश्वरी कापरी सहित शिक्षकों को दिया। उनका कहना है कि पहले उनके स्कूल की हालत बहुत खराब थी और बच्चों को पढ़ाई के लिए उचित माहौल भी नहीं मिल पाता था, मगर नई प्रधानाचार्य के आने के बाद अतिरिक्त कक्षाओं सहित बहुत से ऐसे बदलाव हुए। कविता कहती हैं कि वह स्कूल से अलग पांच से छह घंटे पढ़ाई को देती थीं, उन्हें और उनके परिवार को अच्छे परीक्षा परिणाम की उम्मीद थी। वहीं जब अच्छे अंक आने की खबर माता पिता को मिली, तो उनके चेहरे की खुशी और तसल्ली देखने लायक थी।


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