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सियासत में आस्था पीछे, फायदा आगे

संतोष कुमार सिंह, नई दिल्ली साहब ये आज की सियासत है, यहां आस्था पीछे छूट जाती है और फायदे छलांग मा

By JagranEdited By: Published: Tue, 25 Apr 2017 01:00 AM (IST)Updated: Tue, 25 Apr 2017 01:00 AM (IST)
सियासत में आस्था पीछे, फायदा आगे
सियासत में आस्था पीछे, फायदा आगे

संतोष कुमार सिंह, नई दिल्ली

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साहब ये आज की सियासत है, यहां आस्था पीछे छूट जाती है और फायदे छलांग मारकर आगे आ जाते हैं। लोकसभा और विधानसभा चुनाव के बाद नगर निगम चुनाव ने भी अपनी-अपनी पार्टी के प्रति आस्था का दंभ भरने वाले सिपहसलारों के असली चेहरे सामने ला दिए। जहां कुछ अपने सहयोगियों को टिकट नहीं मिलने के कारण पार्टी छोड़कर गए तो कुछ को चुनावी माहौल में अपने साथ बदसुलूकी की याद आ गई। कुल मिलाकर इस खेल में भी भाजपा सबसे आगे रही जबकि आम आदमी पार्टी और कांग्रेस को इस सियासी खेल का नुकसान सहना पड़ा।

सबसे पहले भाजपा ने आम आदमी पार्टी (आप) को बड़ा झटका देते हुए उसके विधायक वेद प्रकाश को अपने साथ जोड़ा। वेद प्रकाश की आस्था अपनी पार्टी से ऐसी डगमगाई कि वह विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे बैठे। नगर निगम चुनाव में अपनी साख वापसी की तैयारी कर रही कांग्रेस को पूर्व विधायक अमरीश गौतम, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली और प्रदेश युवा कांग्रेस अध्यक्ष अमित मलिक के भाजपा जाने से झटका लगा तो मतदान के ठीक दो दिन पहले प्रदेश महिला अध्यक्ष बरखा सिंह ने कमल खिलाने की ठान ली। इससे पहले पार्षद हर्ष शर्मा भी भाजपा का दामन थाम चुके थे।

ऐसा नहीं है कि इस सियासी गणित से भाजपा बच गई। मौजूदा पार्षदों को टिकट नहीं देने के भाजपा नेतृत्व के फैसले से कई पार्षद व नेता नाराज हैं। भाजपा के पुराने नेता नंदराम बागड़ी ने इसका विरोध करते हुए आम आदमी पार्टी का दामन थाम लिया। उन्हें आप ने चुनाव मैदान में भी उतारा है। वहीं, उनकी बेटी और पार्षद सुशीला बागड़ी ने भी भाजपा से नाता तोड़ लिया है। पूर्व उपमहापौर और कांग्रेस नेता रजिया सुल्ताना ने भी हाथ का साथ छोड़कर झाड़ू थाम ली हैं।

वहीं, कुछ महीने पहले भाजपा से आप में गई पूनम झा आजाद एक बार फिर से पाला बदलते हुए कांग्रेस में चली गई हैं। पूनम भाजपा से निलंबित सांसद कीर्ति आजाद की पत्नी हैं। इनके साथ ही आप के टिकट पर पिछले वर्ष मई में निगम उपचुनाव जीतने वाले पार्षद अनिल मलिक ने भी कांग्रेस का दामन थाम लिया। इन प्रमुख नेताओं के साथ ही कई अन्य नेताओं व कार्यकर्ताओं ने भी अपनी पार्टी छोड़कर दूसरे के साथ खड़े हो गए हैं। अब इनकी बगावत क्या रंग दिखाती है यह चुनाव परिणाम आने के बाद ही स्पष्ट हो सकेगा।


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