इलाज के इंतजार में बढ़ जाती है कैंसर के मरीजों की बीमारी
रणविजय सिंह, नई दिल्ली : कैंसर के इलाज के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई तकनीक एवं चिकित्सा सुविधाएं उ
रणविजय सिंह, नई दिल्ली : कैंसर के इलाज के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई तकनीक एवं चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध हैं। नई थेरपी तो दूर दिल्ली सहित देश के कई अस्पतालों में रेडियोथेरपी की पर्याप्त सुविधा नहीं है। कैंसर के मरीजों की तुलना में यहां रेडियोथेरपी मशीने एवं डॉक्टरों की भारी कमी है। इस वजह से सरकारी अस्पतालों में 75 फीसद मरीजों को रेडिएशन थेरपी की सुविधा नहीं मिल पाती है। जांच के बाद इलाज के लिए मरीजों को महीनों इंतजार करना पड़ता है। इलाज के इंतजार में मरीजों की बीमारी और बढ़ जाती। हाल ही में यह रिपोर्ट एक अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल में प्रकाशित की गई है।
यह रिपोर्ट अमेरिका के कई संस्थानों के डॉक्टरों ने मुंबई, लखनऊ एवं दिल्ली स्थित एम्स के डॉक्टरों के साथ मिलकर तैयार की है। देश में हर साल 14.50 लाख लोग कैंसर से पीड़ित होते हैं और कैंसर से हर साल 7.36 लाख मरीजों की मौत हो जाती है। वर्ष 2020 तक कैंसर पीड़ितों की संख्या 17.20 लाख पहुंचने की आशंका है। भारत में स्तन, सर्वाइकल, फेफड़े, मुंह एवं गले के कैंसर से लोग अधिक पीड़ित होते हैं। उक्त अंगों के कैंसर के इलाज में रेडियोथेरपी जरूरी है। अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी की अनुसंशा के अनुसार ढाई लाख की आबादी पर एक रेडियोथेरपी मशीन उपलब्ध होनी चाहिए। इसके अलावा एक अन्य अंतरराष्ट्रीय एजेंसी निर्देश के मुताबिक, 1.20 लाख आबादी या 300 मरीजों पर रेडियोथेरपी की एक मशीन उपलब्ध होनी चाहिए। भारत में सवा अरब की आबादी पर रेडियोथेरपी की 559 मशीनें ही उपलब्ध हैं। इस तरह करीब 21 लाख की आबादी पर सिर्फ एक मशीन उपलब्ध है। इससे स्वास्थ्य सुविधाओं का अंदाजा लगाया जा सकता है। डॉक्टरों का अनुमान है कि कैंसर के मामले जिस तरह बढ़ रहे हैं उससे वर्ष 2020 तक देश में 1215 अतिरिक्त मशीनों की जरूरत पड़ेगी। यह चिंताजनक है कि कैंसर के चिकित्सा उपकरणों के साथ-साथ रेडियोथेरपी के डॉक्टरों एवं विशेषज्ञों की भी कमी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2020 तक रेडियोथेरपी के 9000 से अधिक विशेषज्ञों की जरूरत पड़ेगी। इसमें 2756 एवं 1533 मेडिकल फिजिसिस्ट के आंकड़े शामिल हैं।
मौजूदा समय में मरीजों के अधिक दबाव के चलते कई अस्पतालों में रेडियोथेरपी सेंटरों में 14 घंटे तक मरीजों को रेडिएशन का डोज दिया जाता है। एक-एक मशीन से 50 से 90 मरीजों को इलाज होता है। इससे इलाज में लापरवाही होने की आशंका रहती है। संपन्न मरीज तो निजी अस्पतालों में इलाज करा लेते हैं। कुछ निजी अस्पताल इलाज के खर्च पर मरीजों को छूट भी देते हैं। फिर भी मध्यम वर्गीय परिवार के लोग निजी अस्पतालों में इलाज का खर्च नहीं उठा सकते हैं। सुविधाओं की कमी के चलते सरकारी अस्पतालों में बीमारी की जांच के बावजूद मरीजों को इलाज के लिए दो महीने तक इंतजार करना पड़ता है। रिपोर्ट में कहा है कि सुविधाओं में सुधार के लिए सरकार एवं गैर सरकारी संस्थाएं इस बीमारी की रोकथाम कार्यक्रम के तहत नए कैंसर सेंटर बनवा रही हैं। इसके अलावा एम्स के हरियाणा के झज्जर स्थित परिसर में 2035 करोड़ की लागत से राष्ट्रीय कैंसर संस्थान का निर्माण कराया जा रहा है।