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हत्यारोपी पति से मिलते-मिलते बन गई हथियारों की सौदागर

विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली : देवबंद जेल में हत्या के मामले में बंद पति से मिलते-मिलते मुस्किन हथिया

By JagranEdited By: Published: Sat, 25 Mar 2017 01:09 AM (IST)Updated: Sat, 25 Mar 2017 01:09 AM (IST)
हत्यारोपी पति से मिलते-मिलते बन गई हथियारों की सौदागर

विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली :

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देवबंद जेल में हत्या के मामले में बंद पति से मिलते-मिलते मुस्किन हथियारों की सौदागर बन गई। शुरुआत में स्थानीय अपराधियों को हथियार की सप्लाई करने वाली मुस्किन ने दो साल में पश्चिमी उत्तर प्रदेश से लेकर दिल्ली-एनसीआर तक अपना नेटवर्क तैयार कर लिया। दो साल में अपने साथियों के साथ मिलकर पांच सौ से अधिक हथियारों की सप्लाई कर चुकी है।

स्पेशल सेल अधिकारियों के अनुसार पहले पति असर मोहम्मद से मुस्किन को एक बेटा व तीन लड़कियां थीं। बीमारी के कारण शादी के चार साल बाद ही असर की मौत हो गई और एक साल बाद मुस्किन ने सहारनपुर निवासी सलीम से शादी कर ली, जोकि आपराधिक प्रवृत्ति का था। सलीम हत्या के एक मामले में 2014 में गिरफ्तार हुआ था और देवबंद जेल में बंद था। मुस्किन उससे मिलने जेल जाती थी और इसी दौरान सलीम के माध्यम से उसकी मुलाकात जेल में ही कुछ बदमाशों व हथियार तस्करों से हुई। जिन्होंने मुस्किन को मध्य प्रदेश के कुछ हथियार बनाने वाले व सप्लायर के लिंक दिए। मुस्किन को यह काम भा गया और उसने मध्य प्रदेश भिवानी से हथियारों की तस्करी शुरू कर दी। बाद में उसने जबीर को अपने गिरोह में शामिल कर लिया। वहीं शाहपुर मध्य प्रदेश में हथियारों के सप्लायर प्यारेलाल उर्फ सिकंदर ने बालू को मुस्किन व जबीर की हथियारों की तस्करी के लिए ट्रांसपोर्टर में मदद करने को कहा। इसके बाद तीनों ने एक साथ तस्करी शुरू कर दी। शुरुआत में मुस्किन सहारनपुर, मुजफ्फरनगर के बदमाशों को हथियारों की सप्लाई करते थे और फिर उनका दायरा बढ़ता गया। मुस्किन ने मेरठ, बागपत, आगरा, बरेली के अलावा दिल्ली-एनसीआर के अपराधियों को हथियारों की सप्लाई शुरू कर दी। हर दो महीने के अंतराल पर मुस्किन जबीर व बालू के साथ मध्य प्रदेश जाती और फिर वहां से 40 से 50 हथियारों की खेप लेकर कभी ट्रक, कभी बस से उसे दिल्ली आती थी। यहां पर नफीस खान को सप्लाई देने के बाद वे मेरठ के रिसीवर को हथियार बेचते थे। जबीर व बालू के साथ मुस्किन के होने के कारण पुलिस को आसानी से उन पर शक नहीं होता था। साथ ही बैटरी में भी हथियारों की तस्करी हो सकती है इसका अंदाजा लगाना पुलिस के लिए आसान नहीं था।


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