जाग रहा ग्राहक पर सुस्त है उपभोक्ता फोरम
आरटीआइ का लोगो लगाएं अधिकार -आरटीआइ के जवाब में उपभोक्ता फोरम ने माना, तीन माह में सुनाना होता
आरटीआइ का लोगो लगाएं
अधिकार
-आरटीआइ के जवाब में उपभोक्ता फोरम ने माना, तीन माह में सुनाना होता है फैसला
-एमटीएनएल मामले में अप्रैल में किया था आर्डर रिजर्व, अब तक नहीं हुआ फैसला
स्वदेश कुमार, पूर्वी दिल्ली : किसी भी उत्पाद या सेवा में कमी होने पर उसकी शिकायत उपभोक्ता फोरम से करने के लिए लोगों को प्रेरित किया जाता है। इसके लिए सरकार की ओर से जागो ग्राहक जागो का नारा भी बुलंद किया जा रहा है लेकिन उपभोक्ता फोरम/अदालत में मामलों की सुनवाई इतनी सुस्त है कि लोग आजिज आ रहे हैं। यहां कानूनी अदालतों के मामलों को लंबा खींचा जा रहा है। इससे लोगों का भरोसा कम हो रहा है। इसका ताजा उदाहरण है राजेंद्र ¨सह तोमर द्वारा एमटीएनल के खिलाफ शिकायत। शिकायत करीब दो साल पहले की गई थी। गत वर्ष अप्रैल में फोरम ने आर्डर रिजर्व भी कर लिया लेकिन नौ माह बीतने के बावजूद इस पर कोई फैसला नहीं आया है। हालांकि शिकायतकर्ता की तरफ से लगाई गई आरटीआइ अर्जी के जवाब में कहा गया है कि आर्डर रिजर्व होने के बाद उपभोक्ता फोरम को तीन महीने में फैसला सुनाना होता है।
ब्रह्मपुरी निवासी राजेंद्र ¨सह तोमर ने बताया कि एमटीएनएल की सेवा में कमी के कारण उन्होंने 30 अप्रैल, 2015 को उत्तर पूर्वी जिले के उपभोक्ता फोरम में याचिका दी थी। करीब एक साल की सुनवाई के बाद 6 अप्रैल, 2016 को फोरम ने आर्डर रिजर्व (फैसला सुरक्षित) कर लिया था। इसके बाद से इस मामले में कोई तारीख नहीं दी गई। इस पर उन्होंने उपभोक्ता अदालत के अध्यक्ष, उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग और खाद्य आपूर्ति विभाग के प्रधान सचिव सहित अन्य अधिकारियों को शिकायत भेजी लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई। तत्पश्चात उन्होंने उपभोक्ता अदालत में आरटीआइ लगाकर पूछा कि आर्डर रिजर्व होने के बाद कितने समय में फोरम को फैसला सुनाना होता है। साथ ही उन्होंने अप्रैल से अक्टूबर के बीच कितनों मामलों में आर्डर रिजर्व होने और फैसला होने का आंकड़ा भी मांगा। इसके जवाब में उपभोक्ता अदालत ने बताया है कि तीन महीने में फैसला होता है। साथ ही यह भी बताया गया कि अप्रैल से अक्टूबर के बीच 54 मामलों में आर्डर रिजर्व हुए। इनमें 31 मामलों में फैसला सुना भी दिया गया। राजेंद्र ¨सह तोमर ने इस आरटीआइ के जवाब को आधार बनाते हुए उनके मामले में नौ महीने का समय लगने के कारण सरकार और उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग से दस हजार रुपये का हर्जाना देने की मांग की है।