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आस्था के रंग से संवारे जा रहे गणपति बप्पा

अरविंद कुमार द्विवेदी, दक्षिणी दिल्ली सरोजनी नगर बस डिपो के सामने से गुजरते हुए आजकल ताजा मिट्टी क

By Edited By: Published: Wed, 31 Aug 2016 07:25 PM (IST)Updated: Wed, 31 Aug 2016 07:25 PM (IST)

अरविंद कुमार द्विवेदी, दक्षिणी दिल्ली

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सरोजनी नगर बस डिपो के सामने से गुजरते हुए आजकल ताजा मिट्टी की सोंधी महक बरबस ही रुकने को मजबूर कर देती है। ये महक सिंधिया पोट्री कुम्हार गली में तैयार की जा रहीं भगवान श्रीगणेश की रंगबिरंगी मूर्तियों से आती है। इस गली में कई कलाकार गणपति बप्पा की मिट्टी की मूर्तियों में रंग भरते नजर आ जाते हैं। यहां करीब 40 दुकानें हैं। इन कलाकारों में ज्यादातर महिलाएं हैं। उनका कहना है कि पांच सितंबर को गणेश चतुर्थी को लेकर वे भगवान श्रीगणेश की मूर्तियां तैयार कर रहे हैं। भगवान की मूर्ति स्थापना के लिए प्रतिमा खरीदने पूरी दक्षिणी दिल्ली से लोग यहां पहुंचते हैं। ये कलाकार बनी-बनाई मूर्तियों में यहां रंग भरते हैं और उन्हें सजाते हैं।

एक कलाकार ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) की मूर्तियों को नदी में विसर्जित न करने की अपील की है। इसलिए हम लोग मिट्टी की मूर्तियों को प्राथमिकता दे रहे हैं। उम्मीद है ग्राहक भी इस बार पीएम की अपील पर ध्यान रखेंगे।

कई राज्यों से आती हैं मूर्तियां

पिछले करीब 10 सालों से इस काम से जुड़ीं गीता ने बताया कि वह लखनऊ, कोलकाता, पटना व जोधपुर से मिट्टी की बनी हुई मूर्तियां मंगवाती हैं, फिर उनमें रंग भरती हैं। घर के पुरुष सदस्य इन शहरों में जाकर आकार, डिजाइन व नए ट्रेंड की मूर्तियां पसंद कर ऑर्डर देते हैं, उन्हें लाने के लिए गाड़ी आदि की व्यवस्था करते हैं। वहीं, परिवार की महिला सदस्य इनमें रंग भरती हैं और सजाती हैं। कलाकार सुनीता ने बताया कि वह करीब 12 साल से यह काम कर रही हैं। मूर्ति देखकर ही बता सकती हैं कि उस पर कौन सा रंग फबेगा। किस रंग के वस्त्र पहनाए जाने चाहिए। वह मूर्तियों को रंगने में एक्सपर्ट तो हैं ही, ग्राहकों के सामने उनकी मार्केटिंग करना भी इन वर्षो के दौरान अच्छी तरह से सीख गई हैं। सुनीता कहती हैं कि गणेश चतुर्थी, दुर्गा पूजा, सरस्वती पूजा व विश्वकर्मा पूजा आदि के अवसर पर यहां बड़ी तादाद में ग्राहक आते हैं। इसलिए बिक्री में भी महिलाएं पुरुषों की सहायता करती हैं।

गली में रहते हैं करीब 140 परिवार

इस गली में करीब 140 कुम्हार परिवार रहते हैं। ज्यादातर संयुक्त परिवार हैं। मूर्तियां रंगने में व्यस्त सोनी ने बताया कि वह 12वीं पास हैं। डेढ़ साल पहले उनकी यहीं के एक परिवार में शादी हुई। वह कहती हैं कि यह काम उन्हें पहले से ही आता था, लेकिन यहां आकर परफेक्शन बढ़ा है। उनके संयुक्त परिवार में 15 लोग हैं। बड़ा परिवार होने के कारण काफी कुछ सीखने का मौका मिलता है। इससे काम में विविधता व खूबसूरती आती है। वहीं, 10वीं पास बबीता का कहना है कि यह काम भले ही उनकी रोजी-रोटी से जुड़ा है, लेकिन इसी बहाने उन्हे धार्मिक आस्था और ¨हदू रीति-रिवाज से गहराई से जुड़ने का मौका मिलता है। पूरे साल विभिन्न त्योहारों-उत्सवों के दौरान हर देवी-देवता की प्रतिमा में रंग भरने का मौका मिलता है। त्योहार से करीब एक माह पहले यहां तैयारियां शुरू कर दी जाती हैं।

पर्यावरण का भी खास ख्याल

यहां तमाम ऐसे लोग भी आते हैं जो गणपति बप्पा की आस्था के साथ ही दिल्ली की जीवनदायिनी यमुना मैया का भी पूरा ध्यान रखते हैं। ऐसे लोग मिट्टी की बिना रंगी हुई मूर्तियां ले जाते हैं, जिससे कि नदी प्रदूषित न हो। इन मूर्तियों को सिर्फ मोतियों से सजा दिया जाता है। वहीं, कलर की हुई मूर्तियों को सजाने के लिए जड़कन, स्टोन, मोती, गोठा, पन्ना का इस्तेमाल होता है।

ऐसे बनती हैं मूर्तियां

मूर्तियों को मिट्टी से तैयार किया जाता है। आकार व मजबूती देने के लिए इसमें नारियल का रेशा, धान की पुआल, बांस की फंटियां और रंगाई के लिए वाटर कलर का इस्तेमाल होता है। इन्हें रबर के सांचे में बनाया जाता है। जहां ये मूर्तियां बनती हैं वहां कलाकार सांचा किराये पर लाते हैं। एक मूर्ति बनाने के लिए सांचे का किराया दो हजार पड़ता है। छह इंच से लेकर दस फीट तक के आकार की मूर्तियां बनाई जाती हैं।


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