जासूसी मामले में पाकितानी उच्चायोग भी शक के घेरे में
दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच द्वारा गिरफ्तार पाकिस्तानी जासूसों के मामले में भारत स्थित पाकिस्तानी उच्चायोग के अधिकारियों की संलिप्तता सामने आई है। पुलिस मामले में उच्चायोग के अधिकारियों की भूमिका का पता लगाने की कोशिश कर रही है। कुछ अधिकारियों से पूछताछ भी की जा सकती है।
नई दिल्ली। दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच द्वारा गिरफ्तार पाकिस्तानी जासूसों के मामले में भारत स्थित पाकिस्तानी उच्चायोग के अधिकारियों की संलिप्तता सामने आई है। पुलिस मामले में उच्चायोग के अधिकारियों की भूमिका का पता लगाने की कोशिश कर रही है। कुछ अधिकारियों से पूछताछ भी की जा सकती है।
हालांकि कूटनीतिक कवच के तहत पुलिस उन्हें जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं कर सकती। दिल्ली पुलिस ने जासूस कफेतुल्ला के पास से उच्चायोग के अधिकारी के नाम सिफारिशी पत्र और पासपोर्ट बरामद किया है।
सिफारिशी पत्र उसे पाकिस्तान इंटेलिजेंस ऑपरेटिव (पीआइओ) ने पाकिस्तानी वीजा बनवाने के लिए उपलब्ध कराया था। कफेतुल्ला से कहा गया था कि दूतावास पहुंचते ही वहां उसे एक शख्स मिलेगा। वह उसे अपना
पासपोर्ट और दूतावास अधिकारी के नाम का सिफारिशी पत्र देगा तो काम हो जाएगा।
वह व्यक्ति ही उसे अन्य सहायता व जानकारी भी उपलब्ध कराएगा। पुलिस उस व्यक्ति की पहचान में लगी है। उसकी तलाशी के बाद बड़ा खुलासा होने की संभावना है। कश्मीर के राजौरी निवासी कफेतुल्ला खान को क्राइम ब्रांच ने 26 नवंबर को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार किया था।
वह जम्मू से भोपाल में सालाना धार्मिक कार्यक्रम में हिस्सा लेने जा रहा था। कफेतुल्ला ने बताया कि वह अपनी बुआ के लड़के अब्दुल राशिद से बीएसएफ और सेना की खुफिया जानकारी जुटाता था और व्हाट्स एप, वीबर के जरिये पाकिस्तान भेजता था।
पुलिस ने रविवार को राजौरी से राशिद को गिरफ्तार किया था। वह छह साल से सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के इंटेलीजेंस विंग में तैनात था। बीएसएफ और जम्मू-कश्मीर पुलिस में काम कर चुका कफेतुल्ला फिलहाल सरकारी स्कूल में लाइब्रेरी असिस्टेंट के पद पर था।
पुलिस रिमांड पर लेकर दोनों से पूछताछ कर रही है। पुलिस ने बताया कि आइएसआइ कफेतुल्ला के माध्यम से भारत में अपना नेटवर्क बढ़ाना चाहती थी। इसी मकसद से कफेतुल्ला भोपाल जा रहा था। भोपाल में 28 से 30 नवंबर तक आइजीटीआइएमए का धार्मिक जलसा था। कफेतुल्ला से पाकिस्तान का समर्थन करने वालों की पहचान के लिए कहा गया था, ताकि उनसे काम लिया जा सके।