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बीट व मुखबिरी तंत्र कमजोर होने से नहीं लग रही स्ट्रीट क्राइम पर लगाम

संतोष शर्मा/संदीप गुप्ता, नई दिल्ली राजधानी दिल्ली में बड़े अपराधों में जहां कमी आई है, वहीं छोटे अ

By Edited By: Published: Sun, 29 Nov 2015 01:00 AM (IST)Updated: Sun, 29 Nov 2015 01:00 AM (IST)

संतोष शर्मा/संदीप गुप्ता, नई दिल्ली

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राजधानी दिल्ली में बड़े अपराधों में जहां कमी आई है, वहीं छोटे अपराध (स्ट्रीट क्राइम) साल दर साल बढ़ रहे हैं। इसकी तस्दीक दिल्ली पुलिस के आंकड़े भी कर रहे हैं। गत वर्ष के मुकाबले इस वर्ष अब तक डकैती, हत्या व हत्या के प्रयास जैसे जघन्य मामले कम हुए, वहीं लूटपाट, झपटमारी जैसे छोटे अपराध बढ़े हैं। यह पुलिस की तमाम योजनाओं की कलई खोलने के लिए काफी है। जानकार बताते हैं कि पुलिस का ध्यान छोटे अपराध को रोकने पर कम है। पुलिस तभी तेजी दिखाती है जब मामला बड़ा व जघन्य हो। बीट स्तर पर लोगों से पुलिस का जुड़ाव और मुखबिरी तंत्र की कमजोरी भी स्ट्रीट क्राइम को बढ़ाने में सहायक है।

ठंड का मौसम शुरू हो गया है। अब शाम होते ही सड़कें सुनसान होंगी और रात में लोग जल्द घरों में चले जाएंगे। इस मौसम में छोटे अपराधों में बढ़ोतरी होती है। रास्ते सुनसान होते हैं और पुलिसकर्मी थाने व बीट कार्यालय में सिमटे होते हैं। इससे बदमाश वारदात को अंजाम देकर आसानी से फरार हो जाते हैं। सूचना मिलने और मुकदमा दर्ज होने के बावजूद पुलिस इन घटनाओं को सुलझाने में ज्यादा ताकत नहीं लगाती। घटना की सूचना मिलने पर पीड़ित को ही शिकायत करने के लिए थाने में बुलाया जाता है। मुकदमा दर्ज करने के बाद उसे अपने हाल पर छोड़ दिया जाता है। संयोग से अपराधी कहीं और अपराध करता पकड़ा गया तो पुलिस अन्य अपराधों को सुलझाने का भी श्रेय ले लेती है। नियमित पिकेट लगाकर जांच करने और मार्केट व क्षेत्र में औचक गश्त में कमी आई है। इससे बदमाशों का हौसला बढ़ा है। मुखबिरी तंत्र में भी कमजोरी देखी जा रही है।

पहले ज्यादातर बड़े मामलों के खुलासे मुखबिरों की सूचना पर होते थे। उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए पुलिस इनाम भी देती थी। अब इसमें कमी से अपराधियों पर लगाम लगाने में बाधा आ रही है। दिल्ली पुलिस के प्रवक्ता राजन भगत का कहना है कि पुलिस सभी तरह के अपराध को समान दृष्टि से देखती है। पुलिस से लोगों को जोड़ने के लिए आई एंड इयर स्कीम के अलावा नेबरहुड वाच स्कीम, बिजनेस एरिया वाच ग्रुप व युवा इत्यादि तरह के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। वरिष्ठ अधिकारी जन संपर्क अभियान के तहत कार्यक्रम आयोजित कर लोगों से अपराध के बारे में जानकारी जुटाते हैं। बीट और मुखबिर तंत्र को भी मजबूत किया जा रहा है।

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अपराधों की संख्या

अपराध वर्ष 2014-वर्ष 2015

लूटपाट-5315-6424

झपटमारी-5954-8235

सेंधमारी-8261-10686

घरों में चोरी-10902-13319

अन्य चोरी-33427-46647

वाहन चोरी-19101-26795

(अपराध की संख्या 2 नवंबर तक )

ये अपराध हुए कम

डकैती-70-67

हत्या-505-474

हत्या का प्रयोस-669-663

दंगा-142-115

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बड़े-बड़े सपने लेकर लोग दिल्ली में आते हैं। शहर की चकाचौंध देखकर उपभोक्ता संस्कृति का शिकार हो जाते हैं। सीमित साधनों में वह अपनी असीमित इच्छाएं पूरी नहीं कर पाते। ऐसे में अपराध का रास्ता ही उन्हें सबसे आसान नजर आता है। यहां आसपड़ोस के लोगों को एक-दूसरे के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होती। अकेले ही बड़े शहरों में आने वाले लोगों को यहां शर्म व लोकलाज की फिक्र नहीं होती, जिसके चलते वह अपराध करते हैं।

-विवेक कुमार, प्रोफेसर, समाज शास्त्र, जेएनयू

पहले अपराध होने पर पुलिस की मदद के लिए लोग स्वयं आगे बढ़कर हिस्सा लेते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। पुलिस अदालत में अपराधियों के खिलाफ मजबूत चार्जशीट दायर नहीं कर पाती। सुबूतों के अभाव में अदालत को अपराधी को मुक्त करना पड़ता है। लोग आगे आकर पुलिस की मदद करें, तभी अपराध करने वाले लोगों में कानून का भय होगा।

-संजीव नासिर, अध्यक्ष, दिल्ली बार एसोसिएशन


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