अग्रलेख दिल्ली : सेरोगेसी का सच
सेरोगेसी को लेकर डॉक्टरों के किसी भी हद तक जाने का खुलासा होना चिंता की बात है। यह खुलासा जवाहर लाल
सेरोगेसी को लेकर डॉक्टरों के किसी भी हद तक जाने का खुलासा होना चिंता की बात है। यह खुलासा जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) और दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के प्रोफेसरों द्वारा डेनमार्क के दो डॉक्टरों के साथ मिलकर किए गए अध्ययन में हुआ है। अध्ययन के मुताबिक, एक औलाद के लिए डॉक्टर दो से तीन सेरोगेट को गर्भधारण करा देते हैं और जिस सेरोगेट मां के गर्भ में बच्चे का बेहतर विकास हो रहा होता है उसे छोड़कर बाकियों का गर्भपात करा दिया जाता है। ऐसी घटनाएं वास्तव में इंसानियत को शर्मसार करती हैं। इससे यह बात साबित होती है कि डॉक्टरों ने भी अब अपनी नैतिकता को ताक पर रखना शुरू कर दिया है। वे भी सिर्फ और सिर्फ पैसा कमाने के लिए काम करते हैं। गौर करने वाली बात यह है कि व्यावसायिक हित साधने के लिए किसी को सहारा बनाना उचित नहीं होता लेकिन ये डॉक्टर किसी की जान और भावना तक की फिक्र नहीं करते। जिस डॉक्टर को लोग भगवान का दर्जा देते हैं अगर वही उनकी जिंदगी से खिलवाड़ करने लगे तो फिर और किसी की बात करना बेमानी है।
दरअसल, आजकल डॉक्टरी की डिग्री बीस-पच्चीस लाख रुपये खर्च कर आसानी से हासिल कर ली जा रही है। ऐसे में इन डिग्रीधारी डॉक्टरों का मकसद जल्द से जल्द अपनी शिक्षा पर खर्च की गई रकम को उगाहना होता है। इस क्रम में वे अनैतिक काम करने से भी नहीं चूकते। यही वजह है कि पिछले दिनों कई डॉक्टर लिवर, किडनी आदि चोरी करने की घटनाओं में भी पकड़े गए हैं। कुछ ऐसी घटनाएं भी सामने आई हैं जिसमें सर्जरी के वक्त डॉक्टरों ने तौलिया, कैंची, रुई आदि सामान पेट में ही छोड़ दिया। आखिर इन डॉक्टरों के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं होती। हर बार इनके खिलाफ जांच बैठा दी जाती है लेकिन कभी किसी को सजा नहीं मिलती। इसी तरह ये डॉक्टर भ्रूण परीक्षण भी करते हैं जो कानूनी रूप से गलत है। कभी-कभार इन डॉक्टरों को सजा भी मिलती है लेकिन सजा समाप्त होते ही ये कहीं और दुकान खोलकर बैठ जाते हैं। ऐसे में जरूरी है कि सरकार इन पर सख्ती से कार्रवाई करे और इस तरह की शिकायत मिलने पर जांच पूरी होने तक इनकी डॉक्टरी का लाइसेंस रद कर देना चाहिए। जब तक डॉक्टरों के दिल में कानूनी कार्रवाई का डर नहीं होगा तब तक वे ऐसे घृणित कार्य करते रहेंगे।