अति आत्मविश्वास की शिकार हुई कांग्रेस
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : दक्षिणी दिल्ली नगर निगम में महापौर और उप महापौर के पद पर जीत दर्ज करने
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : दक्षिणी दिल्ली नगर निगम में महापौर और उप महापौर के पद पर जीत दर्ज करने का दावा करने वाली कांग्रेस के दोनों उम्मीदवारों को हार का मुंह देखना पड़ा। भाजपा पार्षदों के वोट में सेंध लगाने की कांग्रेस की कोशिश कामयाब नहीं रही। इसके विपरीत कांग्रेस के ही पार्षदों ने चुनाव में जमकर क्रास वोटिंग की। हालांकि, इस हार का ठीकरा कांग्रेस ने भाजपा पर फोड़ा है और कहा है कि उसने पार्षदों को प्रलोभन दिया है।
उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष महापौर और उप महापौर पद का चुनाव कांटे का रहा था। महापौर की सीट पर भाजपा ने महज एक वोट से जीत दर्ज की थी। भाजपा प्रत्याशी खुशी राम को 52 वोट मिले थे जबकि कांग्रेस के उम्मीदवार धर्मवीर सिंह को 51 वोट मिले थे। वहीं, उप महापौर के चुनाव में कांग्रेस के प्रवीण राणा ने 16 वोटों से चुनाव जीता था। उन्हें 59 वोट मिले थे जबकि भाजपा के उम्मीदवार वीर सिंह को 43 वोट मिले थे।
कांग्रेस के पार्षद इस हार के लिए उम्मीदवारों के चयन को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। पार्षदों के अनुसार उप महापौर पद की उम्मीदवार इंदु के व्यवहार से सेंट्रल जोन के कई पार्षद नाखुश थे। इसी वजह से कांग्रेसी पार्षदों ने ही उन्हें वोट नहीं किया। कांग्रेस भी भाजपा के पार्षदों को अपने तरफ लाने में नाकामयाब रही। दक्षिणी दिल्ली नगर निगम में विपक्ष के नेता और महापौर पद के उम्मीदवार फरहाद सूरी ने बताया कि कांग्रेस के पास कुल 37 पार्षदों के वोट थे जबकि महापौर के चुनाव में हमें 41 वोट मिले हैं यानि कुल चार वोट ज्यादा मिले हैं। इसका मतलब साफ है कि भाजपा के कुछ पार्षदों ने भी उनका साथ दिया है। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा ने निर्दलीयों का वोट हासिल करने के लिए उन्हें समितियों के अध्यक्ष बनाने का प्रलोभन दिया। इसी तरह से उन्होंने बसपा के दो वोट भी अपनी तरफ कर लिए। उप महापौर के चुनाव में हार मिलने पर उन्होंने कहा कि पार्टी के लिए यह चिंता का विषय है। कांग्रेस के पास 37 वोट थे लेकिन पार्टी की उम्मीदवार इंदु को सिर्फ 31 वोट मिले। इसका मतलब साफ है कि कांग्रेस के छह वोट भाजपा को चले गए। इस बात की जांच की जा रही है कि किस पार्षद ने पार्टी के खिलाफ जाकर वोट किया है।