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ओह! नादान परिंदे कैसे पहुंचेंगे अपने ठौर

अभिनव उपाध्याय, नई दिल्ली दीपावली के दिन आकाश में तेज रोशनी और आवाज के साथ होने वाली आतिशबाजी न के

By Edited By: Published: Thu, 23 Oct 2014 01:05 AM (IST)Updated: Thu, 23 Oct 2014 01:05 AM (IST)
ओह! नादान परिंदे कैसे पहुंचेंगे अपने ठौर

अभिनव उपाध्याय, नई दिल्ली

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दीपावली के दिन आकाश में तेज रोशनी और आवाज के साथ होने वाली आतिशबाजी न केवल पर्यावरण के लिए घातक साबित होती है बल्कि इन दिनों आने वाले मेहमान परिदों के लिए मौत का भी सबब बन जाती है। साइबेरिया सहित अन्य देशों से आने वाले प्रवासी पक्षी आकाश में तेज रोशनी और आवाज के कारण रास्ता भटक जाते हैं और दूसरी दिशा में चले जाते हैं। सही ठिकाने पर नहीं पहुंच पाने कारण कई बार यह मेहमान परिंदे दम तोड़ देते हैं।

पक्षी विशेषज्ञों का कहना है कि साइबेरिया, उत्तरी अमेरिका सहित अन्य जगहों से आने वाले पक्षी लंबी उड़ान भरकर यहां आते हैं। दिन-रात यात्रा करते हुए यहां आने के बाद जब रात को तेज आवाज और रोशनी में आकाश में आतिशबाजी होती है तब वह अपने निर्धारित रास्ते से भटक जाते हैं और दूसरी दिशा में उड़ान भरने लगते हैं। इससे उनकी ऊर्जा खर्च हो जाती है।

कई बार तो पटाखों की तेज आवाज से पक्षियों की हृदय गति रुक जाती है। जिससे उनकी मौत हो जाती है। यहीं नहीं, दीपावली के दिन या उससे पूर्व भी बहुत से जानवर पटाखों के कारण जख्मी हो जाते हैं। श्री नित्यानंद सुरेश चैरिटेबल पक्षी अस्पताल नवीन शाहदरा के वरिष्ठ डॉक्टर रामेश्वर यादव का कहना है कि पशु-पक्षियों का ख्याल किए बिना लोग पटाखे जला रहे हैं जो न केवल पर्यावरण के लिए बल्कि पशु-पक्षियों के लिए भी बहुत घातक है। यमुना बायोडायवर्सिटी पार्क में जैव विज्ञानी फैय्याज-ए-खुदसर का कहना है कि पशु-पक्षियों की आंख और कान अति संवेदनशील होते हैं। पटाखों के कारण उनके कान, आंख और पंख प्रभावित होते हैं। तेज आवाज के कारण उनमें भावनात्मक और मानसिक तनाव पैदा हो जाता है। जमीन पर अंडे देने वाले पक्षी तीतर, मोर डर के इधर-उधर भाग जाते हैं। पटाखों की आवाज 190 डेसिबल से अधिक है जबकि पक्षियों में तेज आवाज सुनने की क्षमता नहीं है। अधिकांश पक्षियां घबराकर अपने घोसलों से गिरकर घायल हो जाती हैं। समय पर इलाज न होने के कारण उनकी मृत्यु हो जाती है। नील गाय और तितलियां भी इससे प्रभावित होती हैं। दीपावली के अगले दिन बड़ी संख्या में पशु-पक्षियों को अस्पतालों में घायल अवस्था में लाया जाता है।


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