दामाद के मोह में फिक्सिंग पर कड़े कदम नहीं उठा सके श्रीनिवासन: बिंद्रा
आइसीसी के मुख्य सलाहकार रह चुके बिंद्रा ने दैनिक जागरण से बातचीत की। पेश हैं मुख्य अंश.
अभिषेक त्रिपाठी, मोहाली। लोढ़ा समिति ने सुप्रीम कोर्ट से सिफारिश की है कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआइ) के सभी अधिकारियों को हटाया जाए और पूर्व केंद्रीय गृहसचिव जीके पिल्लई को बोर्ड का पर्यवेक्षक नियुक्त किया जाए। सुप्रीम कोर्ट में इस पर सुनवाई पांच दिसंबर को होनी है। बीसीसीआइ को शनिवार तक अनुपालन रिपोर्ट भी भेजनी है। इससे पहले बोर्ड ने शुक्रवार को अपनी विशेष आम बैठक (एसजीएम) बुलाई है। कुल मिलाकर सबकी निगाहें इस एसजीएम पर हैं। 1978 से 2014 तक पंजाब क्रिकेट संघ के अध्यक्ष और वर्तमान में चेयरमैन के साथ पूर्व बीसीसीआइ अध्यक्ष रहे वरिष्ठ खेल प्रशासक आइएस बिंद्रा क्रिकेट जगत के हालिया घटनाक्रम से खुश नहीं हैं। उन्हें लगता है कि बोर्ड देश की जनता और मीडिया को यह समझाने में असफल रहा कि बोर्ड वैसा नहीं है जैसी उसकी छवि पेश की जा रही है। आइसीसी के मुख्य सलाहकार रह चुके बिंद्रा ने दैनिक जागरण से बातचीत की। पेश हैं मुख्य अंश.
बीसीसीआइ और लोढ़ा समिति के बीच चल रही खींचतान पर क्या कहेंगे? क्या यह क्रिकेट के लिए सही है?
यहां तक मामला पहुंचना ही नहीं चाहिए था। हम जनता और मीडिया को यह समझाने में असफल रहे कि जो चीजें दिख रही हैं, वैसी हैं नही। बीसीसीआइ भारत का सबसे बेहतर खेल संघ है। इसका दुनिया में नाम है। हमने खेल के लिए बहुत कुछ किया है। देखा जाए तो ये दुनिया के बड़े खेल संघों से मुकाबला करता है, लेकिन हमारी छवि ऐसी बनाई जा रही है जैसे यहां सब गलत हो रहा है। जबकि ऐसा नहीं है। बोर्ड के अधिकतर अधिकारियों ने खेल का बहुत भला किया है। इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
क्या बीसीसीआइ के वर्तमान अधिकारी इन समस्याओं का हल ठीक से कर पा रहे हैं?
मैं अब बोर्ड के कामकाज से बहुत दूर हूं। तीन साल से मैं बोर्ड की बैठक में भी नहीं गया हूं, लेकिन जो मैं अखबारों और चैनलों में बोर्ड के बारे में पढ़ता और सुनता हूं उससे देश में इस तरह का संदेश जा रहा है कि बोर्ड में सब गलत हो रहा है और लोढ़ा समिति सब सही कर रही है। हालांकि यह सही नहीं है। अगर बीसीसीआइ नहीं होता तो आज देश में क्रिकेट इस मुकाम पर नहीं होता।
लोढ़ा समिति ने पिल्लई को बीसीसीआइ का पर्यवेक्षक बनाने को कहा है। इससे कितना सहमत हैं?
देखिये पिल्लई को पर्यवेक्षक बनाने में कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन सारे अधिकारियों को हटा दिया जाएगा तो काम कैसे होगा? पिल्लई ऊपर बैठकर काम देख सकते हैं, लेकिन रोजमर्रा का बीसीसीआइ का काम तो उसके अधिकारी ही करेंगे। उन्हें इसका अनुभव है।
अगर आप बीसीसीआइ अध्यक्ष होते तो इस समस्या से कैसे निपटते?
जिस समय आइपीएल में फिक्सिंग का मामला सामने आया था मैंने उसी समय तत्कालीन अध्यक्ष एन श्रीनिवासन ने कहा था कि चेन्नई सुपर किंग्स पर 20 करोड़ रुपये का जुर्माना लगा दो, लेकिन उन्होंने नहीं किया। अगर उस समय कड़ा फैसला ले लिया जाता तो आज ये दिन नहीं देखना पड़ता, लेकिन वह अपनी टीम और दामाद के मोह में ऐसा नहीं कर सके। अगर मैं अध्यक्ष होता तो इतना कड़ा फैसला लेता कि जनता और मीडिया में संदेश जाता कि बोर्ड गलत नहीं सही के साथ है। इसके बाद जनता का नजरिया बोर्ड के प्रति बदलता तो फिर लोढ़ा समिति की सिफारिशों की जरूरत ही नहीं पड़ती।
क्या आप लोढ़ा समिति की सिफारिशों से सहमत हैं?
उनकी कुछ सिफारिशें ठीक हैं, लेकिन कुछ गड़बड़ हैं। जैसे ओवर ब्रेक के बीच में विज्ञापन बंद करने की सिफारिश। अगर सिर्फ लंच और टी ब्रेक के दौरान ही विज्ञापन दिखाया जाएगा तो कोई प्रायोजक क्यों चैनल को धन देगा और फिर चैनल क्यों बीसीसीआइ को बड़ी रकम देगा। इस तरह तो बीसीसीआइ ठप हो जाएगा और इसका नुकसान क्रिकेटरों और क्रिकेट को होगा।
क्या पीसीए लोढ़ा समिति की सिफारिशों को मानेगा?
माननीय सुप्रीम कोर्ट का जो भी फैसला आएगा, हम उसे मानने के लिए बाध्य हैं।
आपने कहा था कि शशांक मनोहर के अध्यक्ष बनने से बोर्ड की छवि सुधरेगी, लेकिन वह तो बीसीसीआइ को मझधार में छोड़कर आइसीसी चले गए?
हां, मैंने पिछले साल आपसे कहा था कि मनोहर के आने से काफी चीजें सुधरेंगी, लेकिन आइसीसी में भी किसी भारतीय का रहना जरूरी है। ये उनका फैसला है कि वह बीसीसीआइ और आइसीसी दोनों में नहीं रहना चाहते थे और उन्होंने आइसीसी में रहने का फैसला किया।
क्या आपको भी लगता है कि उन्होंने आइसीसी में जाने के लिए बीसीसीआइ का इस्तेमाल किया?
मैंने कहा कि ये उनका फैसला था। वह आइसीसी में रहें या बीसीसीआइ में, भारत के लिए दोनों ही महत्वपूर्ण हैं।