हर किसी के जीवन में आता है खराब दौर: रवि शास्त्री
भारतीय टीम सीरीज गंवा चुकी है। कल अब नया दिन होगा। हम सभी को इसका विश्वास होना चाहिए। हालांकि कुछ बातों से मदद मिल सकती
(शास्त्री का कॉलम)
भारतीय टीम सीरीज गंवा चुकी है। कल अब नया दिन होगा। हम सभी को इसका विश्वास होना चाहिए। हालांकि कुछ बातों से मदद मिल सकती है। राहुल द्रविड़ ने 1999 के ऑस्ट्रेलियाई दौरे पर बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं किया था। तब वह करीब 32 टेस्ट खेल चुके थे और उनका औसत भी लगभग 52 था। साथ ही छह शानदार शतक भी उनके खाते में थे। विव रिचड्र्स ने करीब तीन सीरीज ऐसी खेलीं, जिसमें उनका औसत 20 से भी कम रहा। रिकी पोंटिंग ने 2001 के भारत दौरे पर तीन टेस्ट में महज 17 रन बनाए। आप सुनील गावस्कर और ब्रायन लारा के बारे में आंकड़े तलाशेंगे तो आपको इसी तरह के तथ्य मिल जाएंगे।
अब बात गेंदबाजों की करते हैं। कम से कम चार सीरीज में मुरलीधरन का औसत 100 से अधिक रहा। शेन वार्न और अनिल कुंबले को भी ऐसे ही हालात से रूबरू होना पड़ा। अगर आप यह सोचते हैं कि मैकग्रा और वाल्श कभी असफल नहीं हुए तो दिमाग पर दोबारा जोर डालिए।
उसी तरह से पुजारा और कोहली भी रातों रात खराब खिलाड़ी नहीं बन सकते। वे भले ही खराब दौर से गुजर रहे हैं, लेकिन यह दौर हर किसी के जीवन में आता है। उन्हें खुद पर भरोसा बनाए रखना होगा। साथ ही धवन और रहाणे को भी।
हालांकि इसका यह मतलब नहीं है कि भारत को इस सीरीज में बुरी तरह हार नहीं मिली। प्रशंसकों का नाराज होना भी लाजिमी है। वास्तव में टीम आम हिंदी फिल्मों जितने लंबे समय तक भी अपनी पारी नहीं खींच सकी। पांच दिन तो दूर की बात है भारतीय टीम तो पांच सत्र में घुटने टेक बैठी। मगर निश्चित रूप से हमें आगे बढऩे की जरूरत है। हमें बैठकर सोचना होगा कि क्या यह युवा खिलाड़ी मजबूती से वापसी करने के लिए तपस्या करने को तैयार हैं।