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आपको 6 तरह के मामलों में नोटिस भेज सकता है आयकर विभाग, जानिए इसके बारे में

क्या आप जानते हैं कि आयकर विभाग आपको कितने तरह की नोटिस भेज सकता है। दैनिक जागरण की बिजनेस टीम ने ई-मुंशी के टैक्स एक्सपर्ट अंकित गुप्ता से इस बारे में बातचीत की है।

By Praveen DwivediEdited By: Published: Thu, 01 Dec 2016 10:13 PM (IST)Updated: Thu, 01 Dec 2016 10:17 PM (IST)
आपको 6 तरह के मामलों में नोटिस भेज सकता है आयकर विभाग, जानिए इसके बारे में

नई दिल्ली: 9 नवंबर से देशभर में बैन हुए 500 और 1000 रुपए के पुराने नोट बैन होने के बाद आयकर विभाग ने देश के कई राज्यों में छापेमारी की। विभाग ने जिन जगहों पर छापेमारी की उनमें से कुछ जगह पर उसने जांच भी शुरू कर दी है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आयकर विभाग आपको कितने तरह की नोटिस भेज सकता है। दैनिक जागरण की बिजनेस टीम ने ई-मुंशी के टैक्स एक्सपर्ट अंकित गुप्ता से इस बारे में बातचीत की है। जानिए आपको आयकर विभाग कितने तरह की नोटिस भेज सकता है.......

आयकर विभाग आपको 6 तरह की नोटिस भेज सकता है।

सेक्शन 133 (4) के तहत: आयकर विभाग की ओर से इस सेक्शन के अंतर्गत अगर आपको नोटिस भेजा जाता है तो करदाता को उन सभी लोगों के नाम और पतों का ब्यौरा देना होता है जिन्हें करदाता की ओर से ब्याज, रेंट, कमीशन और ब्रोकरेज के माध्यम से 1000 रुपए से ऊपर भुगतान किया गया है। नोटबंदी के इस माहौल में आपको सलाह दी जाती है कि आप अपने खाते से इस तरह के किसी भी लेन-देन से बचें ताकि आप आयकर विभाग की ओर से की जाने वाली कार्यवाहियों से बच सकें।

सेक्शन 133 (6) के तहत: आयकर विभाग की ओर से इस सेक्शन के अंतर्गत अगर आपको नोटिस भेजा जाता है तो करदाता को नोटिस में निर्दिष्ट मसले पर पूरी जानकारी प्रस्तुत करनी होती है। ऐसे मामले में करदाता बाध्य होता है कि वो एक निश्चित समय में मांगी गईं जानकारियां उपलब्ध करवाए। (यह अवधि 10 या फिर 14 दिन हो सकती है।) उदाहरण के तौर पर करदाता ये यह पूछा जा सकता है कि उसने बैंक में जो राशि जमा करवाई है उसका स्रोत क्या है?

सेक्शन 142 (1) के तहत: आयकर विभाग की ओर से इस सेक्शन के अंतर्गत अगर आपको नोटिस भेजा जाता है तो करदाता को आयकर रिटर्न फाइल करना होता है (अगर उसने पूर्व में उसे दाखिल नहीं किया है तो) और आयकर विभाग आपसे तीन साल पुराने रिकॉर्ड नहीं मांग सकता है।

सेक्शन 143 (2) के तहत: आयकर विभाग की ओर से इस सेक्शन के अंतर्गत भेजे गए नोटिस को स्क्रुटनी नोटिस कहा जाता है, इसके अंतर्गत करदाता को वो दस्तावेज प्रस्तुत करने होते हैं जिससे साबित किया जा सके कि.....
करदाता ने आईटीआर फाइलिंग के दौरान अपनी आय को कम करके नहीं बताया है।
करदाता ने जरूरत से ज्यादा नुकसान और खर्चों का दावा नहीं किया है।
करदाता ने किसी भी सूरत में कम कर का भुगतान नहीं किया है।

इस तरह का नोटिस वित्त वर्ष के खत्म होने के 6 महीने के भीतर करदाता को भेजा जा सकता है।

उदाहरण के तौर पर अगर मिस्टर राम ने 31 जुलाई 2016 को आईटीआर फाइलिंग की है, तो उन्हें आयकर विभाग इस धारा के अंतर्गत 30 सितंबर 2017 तक नोटिस भेज सकता है। अगर आपको यह नोटिस तय समय के भीतर मिले तभी यह वैध माना जाता है।

सेक्शन 144 के तहत: आयकर विभाग की ओर से इस सेक्शन के अंतर्गत करदाता को नोटिस उस सूरत में भेजा जाता है जब करदाता रिटर्न दाखिल करने और नोटिस के तहत मांगी गईं सूचनाओं को प्रस्तुत करने में विफल रहता है। इस तरह के मामलों में कार्यवाही आमतौर पर अन्य मामलों की तुलना में थोड़ी सख्त होती हैं।

सेक्शन 148 के तहत: अगर आयकर विभाग पाता है कि करदाता ने बीते कुछ सालों में कर के भुगतान से बचने की कोशिश की है तो वो इस तरह के मामले में नोटिस भेजकर आय का पुर्नमूल्यांकन कर सकते हैं। इस सेक्शन के अंतर्गत आपको 6 साल के भीतर नोटिस भेजी जा सकती है, लेकिन अगर करदाता के पास देश के बाहर कोई संपत्ति है तो यह सीमा 16 साल तक खिंच सकती है। करदाताओं को यह सलाह दी जाती है कि वो आयकर विभाग की ओर से भेजी जाने वाली हर नोटिस का सकारात्मकता के साथ जवाब दें, अगर आप ऐसा नहीं करते हैं तो आप अपनी समस्या को और बढ़ा सकते हैं, जो आपकी सजा, जुर्माने और भुगतान में इजाफा कर सकता है। वहीं अगर आप इमानदार हैं तो आयकर विभाग आपसे एक पैसा नहीं वसूल सकता है।

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