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आपके बच्चों को कभी नहीं सताएगी पैसों की चिंता, ऐसे करें प्लानिंग

इस बाल दिवस बच्चे की पढ़ाई और शादी के लिए कॉर्पस जमा करने के लिए जानिए किन बातों का रखें ध्यान

By Surbhi JainEdited By: Published: Tue, 14 Nov 2017 05:05 PM (IST)Updated: Tue, 14 Nov 2017 07:13 PM (IST)
आपके बच्चों को कभी नहीं सताएगी पैसों की चिंता, ऐसे करें प्लानिंग

नई दिल्ली (जेएनएन)। हर कोई चाहता है कि उनके बच्चों को जीवन में कभी भी पैसों से जुड़ी तकलीफ न सताए। इसलिए मां-बाप आमतौर पर अपने बच्चों के फ्यूचर को उनके बचपन में ही सिक्योर कर लेते हैं। अगर आप भी अपने बच्चों के भविष्य को खुशहाल बनाना चाहते हैं और उसके लिए फिक्रमंद हैं तो हमारी यह खबर आपके काम की है। इस बाल दिवस हम आपको बताने जा रहे हैं कि बच्चों के भविष्य को सिक्योर करने के लिए किस तरह से योजना बनाई जा सकती है।

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क्या कहना है एक्सपर्ट का-

फाइनेंशियल एक्सपर्ट जितेंद्र सोलंकी का मानना है कि बच्चों के लिए फाइनेंशियल प्लानिंग करते समय उनके एजुकेशन बजट के लिए अलग से कॉर्पस बना लेना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि स्कूल फीस के अलावा भी कई खर्चे होते हैं जो माता पिता को उठाने पड़ते हैं। जैसे कोचिंग, स्कूल बदलते समय, कॉलेज में एडमिशन के समय आदि। दूसरी अहम चीज यह है कि निवेश और बचत की प्लानिंग बच्चे के पैदा होते ही शुरू कर देनी चाहिए। इससे कॉर्पस बनाने के लिए पर्याप्त समय मिल जाएगा। तीसरा अपने इमरजेंसी फंड का निर्माण करें। यह बुरे वक्त में आर्थिक संकट से सुरक्षा प्रदान करता है। बच्चे की पढ़ाई और शादी के लिए कॉर्पस बनाने के लिए इक्विटी में निवेश करना सबसे अहम है। यह बढ़ती महंगाई के अनुरूप रिटर्न देता है। साथ ही लंबे समय (10 से 15 वर्षों) के निवेश के लिए पीपीएफ भी अच्छा विकल्प है। यह एक सुरक्षित निवेश विकल्प है। वहीं बेटी के लिए सुकन्या समृद्धि योजना सबसे अच्छा विकल्प है। यह बिटिया की उच्च शिक्षा और शादी के समय तक एक अच्छी खासी राशि जमा करने में मददगार होता है। वहीं, चाइल्ड इंश्योरेंस प्लान लेने बचें क्योंकि यह महंगे होते हैं। इसकी बजाय टर्म इंश्योरेंस का चयन किया जा सकता है।

किन बातों का रखें ध्यान-

अपनी जरूरतों को पहचाने-
सबसे पहला स्टेप यह है कि अपने बच्चों की जरूरतों को समझें। बच्चे की स्कूल फीस के अलावा भी कई चीजें होती हैं जैसे कि एक्सट्रा क्लास, एक्सट्रा करिकुलर एक्टिविटीज इत्यादि। यह चीजें बच्चों के लिए जरूरी होती है। जैसे जैसे ये खर्चे बढ़ते हैं उसी तरह बच्चे की पढ़ाई का खर्चा भी बढ़ता है। बच्चे की पढ़ाई का खर्चा घर के कुल बजट का 60 फीसद से ज्यादा होता है। इसके अलावा पढ़ाई का खर्चा महंगाई दर से ज्यादा तेजी से बढ़ता रहता है। इसलिए आप पहले बच्चों की असल जरूरतों को पहचाने ताकि अपने लक्ष्य को हासिल किया जा सके।

बच्चों की आर्थिक सुरक्षा करें सुनिश्चित-
हर माता-पिता की सबसे बड़ी चिंता यह होती है कि उनके जाने के बाद उनके बच्चों का क्या होगा। हालांकि चाइल्ड इंश्योरेंस प्लान किसी आकस्मिक घटना से सुरक्षा प्रदान करता है, लेकिन ये इंश्योरेंस कवरेज काफी महंगी होती है। समझदारी इसी में है कि आप अपनी इंश्योरेंस की जरूरतों का आकलन करें और उसके बाद कवरेज खरीदें। ऊंचे बीमा कवर के लिए प्योर टर्म पॉलिसी बेहतर विकल्प साबित हो सकती है। साथ ही सुनिश्चित करें कि आपके पास हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी है ताकि खुद को आपातकालीन स्थिति में मोटे खर्चों से बचाया जा सकें।

बच्चे के पैदा होते ही शुरू करें प्लानिंग-
बच्चे के जन्म लेते ही प्लानिंग शुरू कर दें। इक्विटी में निवेश और पीपीएफ अच्छा रिटर्न देते हैं। यह लंबे समय के निवेश विकल्प हैं। शुरुआत में बचत करने से आप जीवन के अन्य लक्ष्यों को भी पूरा कर सकते हैं।

एसेट एलोकेशन-
बाजार में कई निवेश विकल्प मौजूद हैं। लेकिन हर विकल्प का अपना रिस्क फैक्टर है। अधिकांश लोग निवेश में कई गलतियां कर देते हैं। बच्चों के बड़े होने के दौरान इक्विटीज, डेट, म्युचुअल फंड्स, पीपीएफ,गोल्ड और फिक्स्ड डिपॉजिट अहम भूमिका निभाते हैं। एसेट एलोकेशन एक ऐसी स्ट्रैटेजी है जिसके जरिए आप न सिर्फ सही एसेट क्लास का चुनाव करते हैं बल्कि यह आपके निवेश को भी उचित तरह से मैनेज करता है।

अपनी वसीयत करें तैयार-
आपके न रहने की स्थिति में आपकी संपत्ति बिना किसी दिक्कत के आपके बच्चों को मिल जाए इसके लिए समय रहते अपनी संपत्ति तैयार कर लें। वसीयत बनवाते समय ध्यान रखें कि इसमें सब कुछ सरल और स्पष्ट लिखवाएं ताकि आपके जाने के बाद भविष्य में कोई झगड़ा न हो।

अपने बच्चों को पैसों की अहमियत समझाएं-
अपने बच्चों को पैसों की बचत की अहमियत समझाएं। इससे जब वो अपनी पहली नौकरी ज्वाइन करेंगे तो वह भविष्य के लिए प्लानिंग शुरू कर देंगे। इन सब के अलावा भी कई चीजें चाइल्ड प्लानिंग के लिए जरूरी हो सकती है, लेकिन फाइनेंशियल प्लानिंग का पहला स्टेप यह है कि आप अपनी जरूरतों को पहचाने और आकस्मिक व्यय के लिए योजना बनाते रहें।


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