हैंडिक्राफ्ट सेक्टर ने किया जीएसटी का स्वागत, कुछ मुश्किलें दूर हुईं तो कुछ अब भी बरकरार
हस्तशिल्प उद्योग वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) का स्वागत करता है
नई दिल्ली (ओ. पी. प्रहलादका)। हस्तशिल्प क्षेत्र 70 लाख से अधिक कारीगरों को रोजगार देता है और निर्यात की बदौलत देश के लिए करीब 24,392.39 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा अर्जित करता है। हस्तशिल्प उद्योग वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) का स्वागत करता है। पहले कई केंद्र और राज्यों में अलग-अलग कई परोक्ष कर थे, अब एक ही परोक्ष कर रहेगा। वैसे तो सरकार ने जीएसटी से संबंधित जो अधिसूचनाएं जारी की हैं, उनमें कहीं भी हस्तशिल्प शब्द का जिक्र नहीं है।
अब तक हस्तशिल्प केंद्रीय उत्पाद शुल्क से छूट प्राप्त था। जहां तक वैट का सवाल है तो कई राज्यों में हस्तशिल्प को वैट से छूट प्राप्त थी जबकि कुछ राज्यों में इस पर पांच प्रतिशत वैट लगता था। हालांकि अब जीएसटी की स्लैब देखने पर पता चलता है कि अधिकतर हस्तशिल्प उत्पादों पर जीएसटी की दर 12 प्रतिशत, 18 प्रतिशत और 28 प्रतिशत रखी गयी है। उदाहरण के लिए हाथ से बने केन फर्नीचर 28 प्रतिशत जीएसटी लगाया गया है जबकि ये उत्पाद 11 राज्यों में वैट से छूट प्राप्त थे। इन राज्यों में पूवरेत्तर के आठ राज्य तथा पश्चिम बंगाल, केरल और अंडमान निकोबार शामिल हैं। वहीं बांस के फर्नीचर पर जीएसटी की दर 28 से घटाकर 18 प्रतिशत कर दी गयी है। हालांकि हमारा सुझाव यह था कि 5000 रुपये से मूल्य से कम के हस्तशिल्प उत्पादों पर जीएसटी की दर तीन प्रतिशत रखी जाती तो ज्यादा बेहतर रहता।
दरअसल यह श्रम प्रधान क्षेत्र है और इसमें काम करने वाली ज्यादातर महिलाएं हैं। बहुत सा काम जॉब वर्क पर होता है। एक उत्पाद मैन्यूफैक्चरिंग के दौरान सात से 15 अवस्थाओं से गुजरता है। ऐसे में अगर इसके जॉब वर्क को जीएसटी से अलग रखा जाता तो शायद बेहतर रहता। बहरहाल जब इसके जॉब वर्क पर 18 प्रतिशत जीएसटी लगेगा। वहीं सरकार ने टैक्सटाइल के जॉब वर्क पर जीएसटी की दर घटाकर पांच प्रतिशत कर दी गयी है। बेहतर होता यह सुविधा अगर हस्तशिल्प के क्षेत्र में जॉब वर्क के लिए मिलती।
हस्तशिल्प क्षेत्र की एक और विशेषता है। इसमें जो 70 लाख कारीगर लगे हैं वे अलग-अलग राज्यों के ग्रामीण इलाकों में केंद्रित हैं जबकि इस क्षेत्र के निर्यातक महानगरों और दूसरे राज्यों में हैं। ऐसे में अगर ये कारीगर निर्यातक को दूसरे राज्य में आपूर्ति करेंगे तो उन्हें जीएसटी के लिए पंजीकरण करना होगा। इस तरह इन कारीगरों को सालाना 20 लाख रुपये तक के कारोबार की छूट का लाभ भी पूरी तरह नहीं मिल सकेगा। हस्तशिल्प के उत्पादों को काफी समय तक स्टोर करके रखा जा सकता है। इसलिए जो जीएसटी से पहले का स्टॉक है, उसके संबंध में निर्यातकों को इनपुट टैक्स क्रेडिट (आइटीसी) लेने की मौजूदा एक वर्ष की समय सीमा में विस्तार किया जाता तो बेहतर होता।
बहरहाल जीएसटी लागू हो चुका है। फिर भी इसमें कई ऐसे मुद्दे हैं, जिन्हें आगे चलकर और उदार बनाए जाने की आवश्यकता है। इसी तरह हस्तशिल्प मेलों के आयोजन पर भी लगने वाले जीएसटी में छूट मिलनी चाहिए। दरअसल यहां आने वाले हस्तशिल्प डीलर सेल करने के बजाय सिर्फ ऑर्डर लेते हैं। ऐसे में इस पर टैक्स की देयता से छूट होनी चाहिए। जीएसटी लागू होने के बाद जो विदेशी पर्यटक भारत से हस्तशिल्प उत्पाद खरीद कर ले जाएंगे, उन्हें निर्यात माना जाएगा। यह बात सिद्धांतत: जीएसटी में स्वीकार की गयी है। हालांकि अभी इसकी कोई रूपरेखा तय नहीं की गयी है। ऐसे में बेहतर होगा कि जल्द ही इस दिशा में भी कदम उठाए जाएं। कुल मिलाकर जीएसटी एक स्वागतयोग्य सुधार और हस्तशिल्प क्षेत्र इस नयी व्यवस्था के अनुरूप ढलने की तैयारी कर रहा है।
(यह लेख ओ. पी. प्रहलादका, अध्यक्ष, एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल फॉर हैंडीक्राफ्ट ने लिखा है।)