लाभ पर भारी पड़ेगी एनपीए को घटाने की मुहिम
एनपीए को काबू में लाने की कोशिश सरकारी बैंकों के मुनाफे पर भारी पड़ सकती है
नई दिल्ली (जेएनएन)। फंसे कर्जे यानी एनपीए को कम करने की सरकार की नई कोशिश सरकारी बैंकों के मुनाफे को भारी चूना लगा सकती है। वित्त मंत्रलय के अधिकारी भी इसे मानने लगे हैं कि यदि नई कोशिश के तहत बड़े बकायेदारों पर बकाया कर्ज का समायोजन नए तरीके से किया गया तो इन बैंकों के लिए कम से कम दो वर्षो तक मोटा मुनाफा कमाना असंभव हो जाएगा। ऐसा इसलिए होगा कि बैंकों को बकाया कर्ज के बदले एक निश्चित राशि अपने मुनाफे से समायोजित करनी पड़ेगी। दरअसल, यह मुद्दा सरकारी बैंकों की तरफ से ही मंत्रलय के सामने पिछले दिनों उठाया गया है।
वित्त मंत्रलय में पिछले एक पखवाड़े से सरकारी बैंकों को दी जाने वाली राशि को लेकर बैठकों का सिलसिला चल रहा है। यह राशि बैंकों को इसलिए दी जानी है कि सरकार मानती है कि मौजूदा हालात में उन्हें अपने संचालन के लिए ज्यादा राशि चाहिए। बैठक में कई बैंकों ने साफ तौर पर कहा है कि जिस तरह से कुछ ही महीनों में हजारों करोड़ रुपये के फंसे कर्जे का मामला निपटारे की प्रक्रिया शुरू की गई है, उससे उनका मुनाफा बहुत घट जाएगा।
दरअसल, रिजर्व बैंक के नियमों के मुताबिक एनपीए की जितनी राशि बट्टे खाते में डाली जाती है, उसके एक हिस्से को बैंक मुनाफे से समायोजित करते हैं। इस आधार पर सरकारी बैंकों ने कहा है कि उन्हें अतिरिक्त राशि आवंटित करने में सरकार को ज्यादा दरियादिली दिखानी चाहिए। मंत्रालय की तरफ से बैंकों को आश्वस्त किया गया है कि पूरे हालात को देखकर ही फैसला किया जाएगा।
वित्त मंत्रालय ने तीन वर्ष पहले सरकारी बैंकों के लिए 75,000 करोड़ रुपये की मदद देने का ऐलान किया था। पहले दो वित्त वर्षो तक 25-25 हजार करोड़ रुपये दिए गए। चालू वित्त वर्ष में 10,000 करोड़ रुपये दिए गए हैं। लेकिन अब नए आकलन के मुताबिक सरकारी बैंकों को इससे बहुत ज्यादा राशि की जरूरत होगी। रिजर्व बैंक (आरबीआइ) के साथ मिलकर केंद्र सरकार ने एक दर्जन बड़े बकायेदारों से 2.50 लाख करोड़ रुपये के एनपीए को वसूलने की प्रक्रिया शुरू की है।
माना जा रहा है कि नई प्रक्रिया के तहत बैंकों को सिर्फ इन दर्जन भर कंपनियों पर बकाया कर्ज की राशि का 80,000 करोड़ रुपये बट्टे खाते में डालने पड़ सकते हैं। एक दिन पहले ही देश की प्रमुख रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि शीर्ष के 50 बड़े कंपनियों पर बकाये तकरीबन 2.4 लाख करोड़ रुपये की राशि से बैंकों को हाथ धोना पड़ सकता है। क्रिसिल ने इन 50 कंपनियों से कर्ज वसूली के सरकारी प्रक्रिया शुरू होने के संदर्भ में यह रिपोर्ट तैयार की है।