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SEBI और RBI ने NSE के अल्गो ट्रेडिंग सिस्टम में खामियों की जांच तेज की

RBI और SEBI ने नैशनल स्टॉक एक्सचेंज के अल्गो ट्रेडिंग सिस्टम मामले में कई बड़े अफसर जांच के दायरे में है

By Surbhi JainEdited By: Published: Mon, 29 May 2017 12:00 PM (IST)Updated: Mon, 29 May 2017 12:00 PM (IST)
SEBI और RBI ने NSE के अल्गो ट्रेडिंग सिस्टम में खामियों की जांच तेज की
SEBI और RBI ने NSE के अल्गो ट्रेडिंग सिस्टम में खामियों की जांच तेज की

नई दिल्ली (जेएनएन)। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) और बाजार नियामक सेबी ने एनएसई के अल्गो ट्रेडिंग सिस्टम में खामियों की जांच तेज कर दी है। ये गड़बड़ियां नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) के को-लोकेशन फैसिलिटी के जरिये उपलब्ध कराई जाने वाली कंप्यूटर जनित हाई फ्रीक्वेंसी ट्रेडिंग के जरिये अंजाम दी गईं। इस मामले में एनएसई के बोर्ड सदस्यों और पूर्व प्रमुख रवि नारायण समेत कई बड़े अफसर की भूमिका भी जांच के दायरे में है। नारायण 2010-13 के बीच एक्सचेंज के एमडी व सीईओ थे।

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वित्त मंत्रलय भी इस मामले पर नजर रखे हुए है। मंत्रलय चाहता है कि भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) तेजी से इस जांच को निपटाए, क्योंकि इसमें कारोबार के हिसाब से देश का सबसे बड़ा स्टॉक एक्सचेंज शामिल है। यह पूरे बाजार के रुख पर असर डाल सकता है। एक शीर्ष अधिकारी ने बताया कि सेबी ने इस संबंध में एक्सचेंज व नारायण समेत कई शीर्ष अफसरों को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। इनमें शीर्ष प्रबंधन से जुड़े कुछ पूर्व आला अफसर भी शामिल हैं। बाद में इन सभी को समन भी जारी किए जाएंगे। बाजार नियामक को सीबीआइ जैसी एजेसियों और कुछ सांसदों से भी इस मामले में रेफरेंस मिले हैं। इन पर सेबी ने 2015 में ही जांच शुरू कर दी थी, मगर अब तक कोई ऐसा कदम नहीं उठाया गया है जो किसी निष्कर्ष पर ले जाए।

जहां तक रिजर्व बैंक का सवाल है, तो वह एनएसई पर होने वाले करेंसी और ब्याज दर से जुड़े डेरिवेटिव मार्केट पर अल्गो ट्रेडिंग गड़बड़ियों के प्रभाव की छानबीन कर रहा है। इससे पहले केंद्रीय बैंक ने सेबी से पूछा था कि क्या बाजार के इन सेगमेंट पर एनएसई के सिस्टम में खामी का असर पड़ा है या नहीं। एक्सचेंज ट्रेडेड करेंसी व इंटरेस्ट रेट डेरिवेटिव मार्केट सेबी और आरबीआइ के दोहरे नियंत्रण में आते हैं।

बोर्ड के भीतर ही पद छोड़ने का दबाव
सूत्रों की मानें तो एक्सचेंज के बोर्ड के भीतर ही दबाव बन रहा है। इसके कुछ शेयरधारक और अन्य हितधारक चाहते हैं कि एक्सचेंज के कई शीर्ष और मध्यम दर्जे के अधिकारियों को बाहर का रास्ता दिखाया जाना चाहिए।
हालांकि एक्सचेंज ने नारायण और अन्य को बाहर किए जाने के किसी भी कदम का जोरदार विरोध किया है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने इसे उलझन वाली स्थिति बताया। उसने कहा कि संदेश देने के लिए कड़ा कदम उठाया जाना जरूरी है। दुनिया को यह बताना जरूरी है कि एक्सचेंज अपनी साफ-सुथरी छवि को लेकर गंभीर है। एनएसई किसी भी तरह की कमी पर पर्दा डालने के बजाय उस पर कार्रवाई करने में सक्षम है। एक्सचेंज के प्रवक्ता ने इस संबंध में प्रतिक्रिया देने से इन्कार कर दिया। उसने कहा कि यह मामला अभी नियामक और एनएसई के बीच वार्ता का है।

यह है मामला
यह मसला एनएसई की को लोकेशन फैसिलिटी में कुछ ब्रोकरों को मिली तरजीह का है। इस कंप्यूटरजनित खरीद-बिक्री प्रणाली में उन्हें पहले लॉगिन की सुविधा तक दे दी गई थी। इस सिस्टम में बाजार से जुड़ी जानकारियां बाकी ब्रोकरों से पहले मिल जाती थीं। कंप्यूटरजनित खरीद-बिक्री प्रणाली में अल्गोरिदम के फॉमरूले यानी अल्गो के आधार पर कंप्यूटर खुद ही खरीद-फरोख्त के ऑर्डर पेश करते हैं। ऐसे में अगर कुछ ब्रोकरों को सेकंड के एक हिस्से के बराबर भी पहले जानकारी या लॉगिन सुविधा मिल गई तो वे करोड़ों रुपये के वारे-न्यारे कर सकते हैं। इन ब्रोकरों ने सिस्टम में तरजीही पहुंच का पूरा लाभ उठाया।

अफसरों की सलाह पर होता था काम
एक्सचेंज के कुछ कर्मचारियों ने फोरेंसिक ऑडिटरों को बताया कि वे अपने वरिष्ठ अफसरों की सलाह पर को-लोकेशन फैसिलिटी में कुछ ब्रोकरों को प्राथमिकता के आधार पर एक्सेस प्रदान करते थे। सेबी कर्मचारियों के इन आरोपों की भी जांच कर रहा है। इसके अलावा कई ईमेलों के मिसिंग ट्रेल (गायब कड़ियां) भी मामले की तह तक पहुंचने में मददगार साबित होंगी, क्योंकि अब इन्हें फिर से प्राप्त यानी रिट्रीव किया जा सकता है।

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