राष्ट्रीय जलमार्गों पर निवेश बढ़ाएगी सरकार, खर्च होगा सड़क का पैसा
सड़क निधि के लिए पेट्रोल और डीजल पर उपकर से जुटाई जाने वाले कोष की ढाई फीसद राशि जलमार्गो के विकास पर खर्च करने का प्रस्ताव है।
नई दिल्ली (जेएनएन)। राष्ट्रीय जलमार्गो के विकास के लिए सरकार केंद्रीय सड़क निधि से सालाना 2000 करोड़ रुपये से अधिक की राशि खर्च करेगी। इसके लिए लोकसभा में विधेयक पेश किया जा चुका है जो विचाराधीन है। विधेयक में सड़क निधि के लिए पेट्रोल और डीजल पर उपकर से जुटाई जाने वाले कोष की ढाई फीसद राशि जलमार्गो के विकास पर खर्च करने का प्रस्ताव है। इसी के साथ ग्रामीण सड़कों, राष्ट्रीय राजमार्गो, राज्य राजमार्गो तथा रेलवे को निधि से मिलने वाली राशि का अनुपात भी बदल जाएगा।
अभी तक केंद्रीय सड़क निधि का उपयोग केवल ग्रामीण सड़कों, राष्ट्रीय राजमार्गो, राज्य राजमार्गो, रेलवे लाइनों व ओवरब्रिजों तथा सीमावर्ती सड़कों के निर्माण में होता है। इसके लिए अलग-अलग अनुपात तय हैं। मसलन, डीजल व पेट्रोल पर लगने वाले सेस की 33.5 फीसद राशि ग्रामीण सड़कों के लिए दी जाती है। जबकि 41.5 फीसद राशि का आवंटन राष्ट्रीय राजमार्गो के लिए होता है। पेट्रोल-डीजल सेस की 14 फीसद राशि रेलवे को, 10 फीसद राज्य राजमार्गो के विकास लिए राज्यों को तथा एक फीसद सीमावर्ती सड़कों का निर्माण करने वाले केंद्रीय संगठनों को जाती है। परंतु संशोधित विधेयक के तहत इन अनुपातों में परिवर्तन का प्रस्ताव है। अब ग्रामीण सड़कों, राज्य राजमार्गो, रेलवे तथा सीमावर्ती सड़कों को तो पहले जितनी राशि मिलेगी। परंतु राष्ट्रीय राजमार्गो के विकास के लिए केवल 39 फीसद राशि मिलेगी। इसका ढाई फीसद हिस्सा राष्ट्रीय जलमार्गो के विकास एवं अनुरक्षण की मद में चला जाएगा।
केंद्रीय सड़क निधि की स्थापना मुख्यत: सड़कों के निर्माण के लिए धन जुटाने के लिए की गई थी। इस संबंध में वर्ष 2000 में संसद ने कानून पास किया था। निधि के लिए धन का इंतजाम पेट्रोल और डीजल पर उपकर लगाकर किया जाता है। शुरू में यह सेस प्रति लीटर दो रुपये लगता था, जिसे 2015 में बढ़ाकर छह रुपये कर दिया गया था। सेस में बढ़ोतरी के परिणामस्वरूप सड़क निधि के तहत जुटने वाली राशि बढ़कर तीन गुना हो गई है। वर्ष 2014-15 में निधि के तहत जुटाई गई राशि मात्र 26108 करोड़ रुपये थी। परंतु सेस में बढ़ोतरी के फलस्वरूप 2015-16 में निधि का आकार बढ़कर 69,809 करोड़ रुपये और 2016-17 में 80,800 करोड़ रुपये हो गया।