टाटा के लिए गवर्नेंस फ्रेमवर्क पर काम कर रहे थे मिस्त्री, हलफनामे में हुआ खुलासा
मिस्त्री ने बताया कि जब उन्हें चेयरमैन पद से हटाया गया था तब वो टाटा ट्रस्ट की भूमिका को स्पष्ट करने के लिए शासन रूपरेखा को अंतिम रूप देने के बेहद करीब थे
नई दिल्ली। राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) में दायर अपने ताजा हलफनामे में साइरस मिस्त्री ने कहा कि जब उन्हें ग्रुप के चेयरमैन पद से हटाया गया था तब वो टाटा संस के मामलों में टाटा ट्रस्ट की भूमिका को स्पष्ट करने के लिए शासन रूपरेखा को अंतिम रूप देने के बेहद करीब थे। अपने हलफनामे में उन्होंने मेल की प्रतियां (कॉपी) और दस्तावेज पेश किए जिससे की स्पष्ट हो सके कि रतन टाटा टाटा संस से जुड़े मामलों पर रिमोट कंट्रोलिंग कर रहे थे और तमाम ग्रुप कंपनियों के फैसलों को प्रभावित कर रहे थे।
इस हलफनामें में कहा गया, “रतन टाटा खुद को सबसे ऊपर रखते थे और बड़ा मानते थे। वो चीजों को पहले से ही तय कर लेते थे और बाद में बोर्ड से उसका अप्रूवल ले लेते थे। वो खुद की अवकाश प्राप्त चेयरमैन की भूमिका से खुश नहीं थो वो खुद को कभी रिटायर न होने वाला चेयरमैन मानते थे।”
गैर कार्यकारी चेयरमैन के पद को छोड़ने के बाद दिसंबर 2012 में टाटा संस के अवकाश प्राप्त चेयरमैन बन गए थे। मिस्त्री के हलफनामे में यह भी कहा गया है कि नितिन नोहरिया, जो कि टाटा संस बोर्ड में टाटा ट्रस्ट के नॉमिनी डायरेक्टर थे टाटा ट्रस्ट की ओर से होने वाले इस हस्तक्षेप से परिचित थे। इसलिए टाटा संस के मामलों में टाटा ट्रस्ट की भूमिका को स्पष्ट करने के लिए एक गवर्नेंस कोड का मसौदा स्वेच्छा से तैयार किया गया।
गौरतलब है कि साइरस मिस्त्री को बीते 24 अक्टूबर को टाटा संस के चेयरमैन पद से हटा दिया गया था। इसके बाद बढ़ते बोर्डरूम विवाद के बीच मिस्त्री ने खुद ही टाटा की छह कंपनियों से इस्तीफा दे दिया था।