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GST के गेमचेंजर साबित होने की राह नहीं है उतनी आसान, जानिए क्यों

एक जुलाई से लागू होने वाले जीएसटी कानून के सामने कई तरह की चुनौतियां अब भी दिखाई दे रही है

By Praveen DwivediEdited By: Published: Wed, 21 Jun 2017 06:10 PM (IST)Updated: Wed, 21 Jun 2017 06:10 PM (IST)
GST के गेमचेंजर साबित होने की राह नहीं है उतनी आसान, जानिए क्यों
GST के गेमचेंजर साबित होने की राह नहीं है उतनी आसान, जानिए क्यों

नई दिल्ली (जेएनएन)। देश के एक राज्य गुजरात में अगर सब्जियों के भरे ट्रक का इस्तेमाल सप्लाई के लिए किया जाता है तो उसे 500 रुपए से लेकर 2,000 रुपए तक की रिश्वत देनी होती है, भले ही ट्रक ड्राइवर के पास सभी जरूरी कागजात हों। यह बात चारवान रोडवेज लिमिटेड के वाइस प्रेसिडेंट राकेश कौल ने बताई है। इस कंपनी के करीब 400 ट्रक सामान की आवाजाही के लिए इस्तेमाल में लाए जाते हैं। यह खबर ब्लूमबर्ग में प्रकाशित हुई है।

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वहीं देश की सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश के टैक्स कलेक्टर आपको ज्यादा महंगे जान पड़ेंगे। कौल के मुताबिक यह रकम करीब 20,000 रुपए के आसपास बैठेगी। ऐसे में सही व्यक्ति को जुर्माना न देने का खामियाजा वो कारखाने उठाते हैं, जिनका कच्चा माल राज्य की सीमाओं पर कभी-कभी रोक दिया जाता है। यह समयसीमा कभी-कभी 5 दिनों तक खिंच जाती है।

यही कारण है कि अन्य कंपनियां 1 जुलाई से जीएसटी के कार्यान्वयन को लेकर उत्साहित हैं जिसे आजाद भारत का (1947 के बाद) सबसे बड़ा कर सुधार बताया जा रहा है। इस कानून के लागू होने के बाद वस्तु एवं सेवाओं पर उन तमाम तरह की कर अदायगी से मुक्ति मिल जाएगी, जो वर्तमान समय में प्रचलित हैं।

यह कानून उन बिचौलियों की संख्या को सीमित करने में मददगार होगा जो राज्य की सीमाओं पर मौजूदा होते हैं। साथ ही यह मुक्त आंतरिक व्यापार के लिहाज से बिजनेस को आसान बनाएगा और यह टैक्स आधार में भी इजाफा करेगा।

कौल ने कहा, “भले ही आपके सारे कागजात सही और दुरुस्त हों, वो कोई न कोई छोटी खामी निकाल ही लेंगे और आपके वाहन को रोक लेंगे।” कौल ने यह बात अपने नई दिल्ली कार्यालय से कही जो एक ट्रकिंग डिपो में स्थित है। उन्होंने कहा कि यहां पर 42 डिग्री सेल्सियस तापमान पर भी ट्रक ड्राइवर अपने ट्रकों के पास दिखाई देते हैं। कौल ने कहा, “एक बार जीएसटी के आने पर यह सब खत्म हो जाएगा।”

कॉमन मार्केट:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साल 2014 में सत्ता में आने के बाद जीएसटी को अब तक का सबसे अहम इकोनॉमिक रिफॉर्म माना जा रहा है। ऐसे में जब इसके लागू होने में सिर्फ 9 दिन का समय बचा है, सरकार अब भी इसके नियमों को परिष्कृत कर रही है। सरकार ने बीते रविवार को घोषणा की थी कि बिजनेस सेक्टर की चिंताओ को देखते हुए जुलाई और अगस्त में टैक्स फाइलिंग में थोड़ी रियायत दी है। वहीं तमाम संभावनाओं के बीच केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने स्पष्ट किया है कि जीएसटी को एक जुलाई से ही लागू किया जाएगा।

बॉर्डर क्रॉसिंग पर:
रोड ब्लॉक, टोल और स्टापेज जैसी दिक्कतों के चलते देश के लॉरी ड्राइवरों के ट्रांजिट टाइम का 60 फीसद हिस्सा बरबाद हो जाता है, जिसका मतलब रसद लागत (लॉजिस्टिक कॉस्ट) का अंतरराष्ट्रीय मानकों से तीन गुना अधिक होना है। वर्ल्ड बैंक की साल 2014 की एक रिपोर्ट के मुताबिक ट्रक ड्राइवरों को अपनी वस्तुओं की चेकिंग करवाने की जरूरत होती है, जो कि समय को आधा कर देती है और लॉजिस्टिक कॉस्ट 40 फीसद तक गिर सकती है।

लेकिन जब बात जीएसटी परिवर्तनों को समझाने और समझने की आती है तो वहां पर किसी तरह की अतिश्योक्तियों की कोई कमी नहीं है। आपको बता दें कि इस कानून को संसद तक आने में एक दशक का समय लगा है। सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणियन ने इसे ट्रांसफार्मेशनल करार दिया है।
उन्होंने अप्रैल में दिए एक साक्षात्कार में कहा था कि जीएसटी बेहद अहम है। उन्होंने कहा, “यह एक हिम्मतभरा और साहसिक कदम है जिसे मैं सहकारी संघवाद का अच्छे प्रशासन कहता हूं।”

चार टैक्स ब्रैकेट:
जीएसटी काउंसिल ने देश में उत्पादित होने वाली वस्तुओं एवं सेवाओं को चार टैक्स ब्रैकेट 5,12,18 और 28 फीसद में बांटा है। वहीं कुछ वस्तुओं एवं सेवाओं को टैक्स छूट के दायरे में रखा गया है। जैसे कि एयर कंडीशनर्स, रेफ्रिजरेटर्स और मेकअप के सामान को 28 फीसद के टैक्स ब्रेकेट में रखा गया है जबकि टूथपेस्ट पर 18 फीसद का जीएसटी लगेगा। वहीं प्लेन टिकट पर 5 फीसद का टैक्स लगाया जाएगा जबकि बिजनेस क्लास की टिकट पर 12 फीसद की दर से टैक्स लगाया जाएगा। फूड ग्रेन और फ्रेश वेजिटेबल को टैक्स के दायरे में नहीं रखा गया है। इसके अलावा एजुकेशनल और हेल्थ सर्विस पर भी कोई टैक्स नहीं लगाया जाएगा।

इनेविटेबल डिसरप्शन:
मैन्युफैक्चरिंग राज्यों को शुरुआत में थोड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि क्योंकि अतिरिक्त राजस्व अधिक आबादी वाला उपभोक्ता राज्यों में ही जुटाया जाता है। कुछ ऐसे सेक्टर्स भी हैं जिनपर जीएसटी के अंतर्गत बात ही नहीं हुई है। मसलन शराब और रियल एस्टेट। हजारों कर कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने और जटिल नई आईटी सिस्टम को अपनाने की भी जरूरत होगी।


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