जीएसटी की पाठशालाः जानिए टाइम ऑफ सप्लाई से जुड़े पहलू
जीएसटी में हर महीने रिटर्न और टैक्स भरना होगा
नई दिल्ली (सीए मनोज पी गुप्ता)। मेहल शाह भारतीय इंजीनियरिंग फर्म के प्रोपराइटर हैं। उनकी फर्म मशीनों के निर्माण और फ्रेब्रिकेशन के व्यवसायों से जुड़ी हुई है। हालांकि वो मशीनें खरीददार की आवश्यकता और डिजाइन के हिसाब से बनाते हैं। इसलिए अधिकांशतः वो विक्रय की जाने वाली मशीन की पूरी रकम एडवांस में ही ले लेते हैं। मेहल शाह को 10 लाख की एक मशीन के ऑर्डर मिलने की उम्मीद है। ऑर्डर स्वीकारने के पहले इससे जुड़े जीएसटी के कर प्रावधान समझना चाहते हैं। उनका प्रश्न यह है कि इस मशीन का ऑर्डर उन्हें यदि जून माह में मिले जुलाई में उन्हें मशीन का पूरा पैसा 10 लाख एडवांस में मिल जाए, अगस्त माह में वो मशीन की डिलीवरी दे और मशीन चलने की संतोषजनक रिपोर्ट आने के बाद वो मशीन का बिक्री बिल सितंबर महीने में जारी करें तो जीएसटी चुकाने का दायित्व कब आएगा। चूंकि जीएसटी में हर महीने रिटर्न और टैक्स भरना होगा इसलिए उन्हें ब्याज और पेनल्टी से बचने के लिए टैक्स कौन से महीने में भरना होगा यह उनके लिए जानना जरूरी है।
टाइम ऑफ सप्लाई के मुताबिक लगेगा टैक्स
जीएसटी एक्ट की धारा 12 के मुताबिक किसी भी प्रकार की बिक्री पर टैक्स टाइम ऑफ सप्लाई के मुताबिक ही लगेगा। इस नियम के हिसाब से बिक्री मूल्य की प्राप्ति, माल क्रेता को भेजने की दिनांक या फिर बिल जारी करने की दिनांक इन सब में जो पहले हो, उस दिनांक पर कर का दायित्व आ जाएगा। इससे मेहल शाह को टैक्स भरने की जिम्मेदारी जुलाई महीने में ही आ जाएगी। जिस दिन उन्होंने विक्रय की रकम एडवांस के रूप में ले ली है। इससे कर चुकाने की दिनांक पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि मशीन की डिलेवरी उन्होंने अगस्त माह में दी हो या फिर विक्रय बिल सितंबर माह में जारी किया हो। जीएसटी में कर हर महीने भरना होगा। इसलिए टाइम ऑफ सप्लाई के नियम को ध्यान रखकर यदि टैक्स भरा जाए तो देरी से टैक्स भरने पर देय ब्याज और पेनल्टी से बचा जा सकेगा।