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जीएसटी दरों में कटौती को चुनाव से जोड़ना बचकानी राजनीति: जेटली

शुरुआती दिनों में लोगों को नियमित तौर पर रिटर्न फाइल करने की आदत डालने के लिए काउंसिल ने 31 मार्च तक प्रक्रिया आसान बनाने का फैसला किया है

By Surbhi JainEdited By: Published: Tue, 14 Nov 2017 12:08 PM (IST)Updated: Tue, 14 Nov 2017 12:08 PM (IST)
जीएसटी दरों में कटौती को चुनाव से जोड़ना बचकानी राजनीति: जेटली
जीएसटी दरों में कटौती को चुनाव से जोड़ना बचकानी राजनीति: जेटली

नई दिल्ली (जेएनएन)। जीएसटी काउंसिल ने 215 वस्तुओं पर टैक्स घटाकर आम लोगों को राहत दी है। हालांकि, विपक्ष इसे गुजरात विधानसभा चुनाव से जोड़ रहा है, लेकिन वित्त मंत्री अरुण जेटली का कहना है कि इस तरह से आरोप लगाना बचकानी राजनीति है। हाल के दिनों में विपक्ष ने जीएसटी को लेकर भी मोदी सरकार पर हमला किया है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इन मुद्दों पर हमारे विशेष संवाददाता हरिकिशन शर्मा से बातचीत की।

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पौने दो सौ वस्तुओं को 28 फीसद की स्लैब से निकालकर 18 फीसद में किया गया है। क्या 28 फीसद की दर तय करना उचित था?
देश में एक जुलाई से जीएसटी लागू होने से पहले जीएसटी काउंसिल ने जब दरें तय कीं तो उस समय दो सिद्धांतों के आधार पर निर्णय किया गया था। पहला जो सिद्धांत अपनाया गया, वह ‘राजस्व निरपेक्षता’ का था ताकि जीएसटी लागू होने के बाद भी उतना ही राजस्व प्राप्त हो जितना कि पहले आ रहा था। दूसरा सिद्धांत समानता का था। इसका मतलब यह है कि किसी उत्पाद पर जीएसटी से पहले जितना टैक्स था, लगभग उतना ही बाद में भी रहे। इस आधार पर दरें तय की गईं।

मतलब, जीएसटी की 28 फीसद दर भी इसी आधार पर तय हुई?
जीएसटी से पहले केंद्रीय उत्पाद शुल्क की स्टैंडर्ड दर 12.5 प्रतिशत तथा वैट की 14.5 प्रतिशत थी। इसमें दो प्रतिशत सीएसटी तथा टैक्स पर टैक्स का प्रभाव भी जोड़ लें तो जीएसटी से पहले टैक्स की स्टैंडर्ड रेट करीब-करीब 31 फीसद थी। यही वजह थी कि ऐसी सभी वस्तुओं को 28 फीसद की स्लैब में रखा गया। हालांकि, जीएसटी लागू होने के बाद से ही काउंसिल का प्रयास रहा कि धीरे-धीरे कर इस स्लैब से आइटम को बाहर निकाला जाए। यही वजह है कि हर बैठक में 30 से 40 वस्तुओं को 28 से निकालकर 18 फीसद की स्लैब में डाला गया।

आपका कहना है कि जीएसटी की दरें घटाने का विचार शुरू से ही था?
बिल्कुल। दो महीने पहले जीएसटी काउंसिल की हैदराबाद में हुई बैठक में एक अप्रोच पेपर रखा गया था कि टैक्स की दरें किस आधार पर तय की जाएं। काउंसिल ने 6 अक्टूबर को दिल्ली में हुई बैठक में इसे मंजूरी दी थी। लेकिन राज्य अगस्त और सितंबर से इस पर विचार कर रहे थे। इसी अप्रोच पेपर के आधार पर फिटमेंट कमिटी ने 15 दिन पहले यह सिफारिश दी कि 62 वस्तुओं को छोड़कर बाकी सभी वस्तुओं को 28 फीसद स्लैब से हटाकर 18 फीसद की स्लैब में कर दिया जाए। इसी के आधार पर काउंसिल ने लग्जरी, व्हाइट गुड्स और सिन गुड्स को छोड़कर बाकी चीजों को 28 फीसद के स्लैब से निकाल 18 में लाने का फैसला किया। इस तरह जीएसटी की दरों को तर्कसंगत बनाने की प्रक्रिया काफी पहले शुरू हो गई थी।

लेकिन विपक्ष का कहना है कि जीएसटी की दरों में कटौती गुजरात चुनाव की वजह से की गई?
जीएसटी की दरों को चुनाव से जोड़ना बचकानी राजनीति है। वास्तव में यह जीएसटी की दरों को तर्कसंगत बनाने की प्रक्रिया थी, जिसे पूरा किया गया है।

कांग्रेस ने जीएसटी की सिंगल टैक्स रखने की मांग की है?
जो लोग जीएसटी की सिंगल टैक्स की मांग कर रहे हैं, उन्हें कर संरचना की कोई समझ नहीं है। खाद्य वस्तुओं पर टैक्स जीरो होना चाहिए। आम लोगों के उपभोग की चीजों पर टैक्स कम होना चाहिए। लेकिन, अमीरों की आरामदायक चीजों और पर्यावरण तथा स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालने वाली चीजों पर भी टैक्स की दर अधिक होनी चाहिए। क्या गेहूं, चावल और चीनी पर मर्सिडीज कार, हवाई जहाज और तंबाकू के बराबर जीएसटी की दर रखी जा सकती है? इसलिए जो लोग आज एक दर ही बात कर रहे हैं, उन्हें जीएसटी की बुनियादी समझ नहीं है।

क्या आगे चलकर कुछ और वस्तुओं या सेवाओं पर भी जीएसटी की दर कम होने की उम्मीद है?
यह राजस्व में वृद्धि पर निर्भर करेगा। राजस्व में अपेक्षित वृद्धि होने पर इस संबंध में फैसला किया जाएगा। पहले चार महीने में 28 प्रतिशत की दर को तर्कसंगत बनाया है। भविष्य में यह इस बात पर निर्भर करेगा कि राजस्व में किस तरह वृद्धि होती है।

जीएसटी की दरें घटने से क्या महंगाई कम होगी?
हमें उम्मीद है कि जीएसटी की दरों में कमी से टैक्स का बोझ कम होगा और इसका लाभ उपभोक्ताओं को मिलेगा। इससे महंगाई दर भी थमेगी। यह अच्छी कर व्यवस्था का फायदा है।

रेस्टोरेंट में खाने पर जीएसटी घटाया, लेकिन इनपुट टैक्स क्रेडिट की सुविधा खत्म कर दी। इसकी क्या वजह है?
हां, हमें रेस्टोरेंट के संबंध में कठोर कदम उठाना पड़ा है, क्योंकि ग्राहकों के प्रति उनका व्यवहार उचित नहीं था। वे जीएसटी इनपुट टैक्स क्रेडिट का फायदा ग्राहकों को न देकर अपनी जेब में रख रहे थे। इसलिए हमने उन्हें इनपुट टैक्स क्रेडिट की सुविधा न देने का फैसला किया है।

रिटर्न फाइल करने में लोगों को दिक्कत आ रही है, इसके लिए क्या किया गया है?
शुरुआती दिनों में लोगों को नियमित तौर पर रिटर्न फाइल करने की आदत डालने के लिए काउंसिल ने 31 मार्च तक प्रक्रिया आसान बनाने का फैसला किया है। सालाना डेढ़ करोड़ रुपये से कम टर्नओवर वाले व्यापारी हर महीने जीएसटी का भुगतान कर तीन महीने में एक बार अपना रिटर्न दाखिल कर सकते हैं। वहीं डेढ़ करोड़ रुपये से अधिक के टर्नओवर वाले व्यापारियों को महीने में सिर्फ एक रिटर्न दाखिल करना होगा। इसलिए काउंसिल ने व्यापारियों को सुविधा देने के लिए यह कदम उठाया है।


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