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श्रीलंका में भारत बनाएगा तेल भंडार, मोदी और विक्रमसिंघे के बीच द्विपक्षीय वार्ता में बनी सहमति

बुधवार को श्रीलंका ने भारत को कच्चे तेल का भंडार बनाने की अनुमति दे दी है

By Surbhi JainEdited By: Published: Thu, 27 Apr 2017 11:57 AM (IST)Updated: Thu, 27 Apr 2017 11:57 AM (IST)
श्रीलंका में भारत बनाएगा तेल भंडार, मोदी और विक्रमसिंघे के बीच द्विपक्षीय वार्ता में बनी सहमति
श्रीलंका में भारत बनाएगा तेल भंडार, मोदी और विक्रमसिंघे के बीच द्विपक्षीय वार्ता में बनी सहमति

नई दिल्ली (जेएनएन)। श्रीलंका ने भारत को अपने पश्चिमी तट पर कच्चे तेल का भंडार बनाने की अनुमति दे दी है। इसके लिए बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और श्रीलंका के प्रधानमंत्री रॉनिल विक्रमसिंघे के बीच हुई द्विपक्षीय वार्ता के दौरान सहमति बन गई है। इस संबंध में व्यापक समझौता प्रधानमंत्री मोदी की आगामी श्रीलंका यात्र के दौरान होगा। जानकारों की नजर में हिंदू महासागर में चीनी नौसेना के बढ़ते प्रभाव से चिंतित भारत की तरफ से अपनी ताकत बढ़ाने की दिशा में उठाया गया यह कदम होगा।

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विक्रमसिंघे और मोदी की मुलाकात को लेकर विदेश मंत्रलय की तरफ से कोई विस्तृत जानकारी नहीं दी गई है। विदेश मंत्रलय के प्रवक्ता गोपाल बागले ने ट्वीट कर कहा है, ‘भारत और श्रीलंका आर्थिक सहयोग बढ़ाने को तैयार हो गए हैं। दोनों देशों के बीच आर्थिक परियोजनाओं को लागू करने को लेकर समझौते भी हुए हैं।’ विदेश मंत्रलय की तरफ से बहुत ज्यादा जानकारी नहीं देने के पीछे वजह यह बताया जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी दो हफ्ते बाद ही श्रीलंका की यात्र पर जाएंगे जहां पर अहम समझौतों पर हस्ताक्षर किए जाएंगे। उल्लेखनीय है कि भारत को तेल भंडारण सुविधा का श्रीलंका की तेल कंपनी के कर्मचारी विरोध कर रहे हैं और उन्होंने इसके खिलाफ हड़ताल भी की थी। उन्होंने इसके लिए भारत के साथ समझौते पर हस्ताक्षर नहीं करने के श्रीलंकाई प्रधानमंत्री के कथित आश्वासन के बाद हड़ताल खत्म की थी।

पेट्रोलियम मंत्रलय के सूत्रों के मुताबिक सरकारी तेल कंपनी इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन के माध्यम से भारत श्रीलंका के त्रिंकोमाली बंदरगाह पर कच्चे तेल का एक बड़ा रणनीतिक भंडार बनाना चाहता है। इसमें एक साथ तकरीबन 80-100 बड़े टैंकर के बराबर कच्चे तेल की भंडारण की सुविधा होगी। इस पर 2300-2500 करोड़ रुपये की शुरुआती लागत आएगी।

जानकारों के मुताबिक भारत की मंशा सिर्फ तेल भंडारण व्यवस्था स्थापित करने की नहीं है बल्कि वह इसे एक रणनीतिक योजना के हिस्से के तौर पर देख रहा है। चीन की भावी चुनौती को देखते हुए भारत हिंदू महासागर में अपनी नौसैनिक शक्ति बढ़ाने में जुटा है। इसके लिए यह भंडारण व्यवस्था अहम साबित होगी। उल्लेखनीय है कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन ने त्रिंकोमाली में पोर्ट के साथ ही तेल भंडार बनवाए थे लेकिन समय के साथ उनकी उपयोगिता जाती रही। पूर्व राजग सरकार के कार्यकाल में वर्ष 2003 में इसके लिए भारत ने श्रीलंका के साथ बातचीत की थी, लेकिन बाद में संप्रग सरकार ने इसे खास बढ़ावा नहीं दिया। इस बीच चीन ने श्रीलंका के हमबनतोला में न सिर्फ नया पोर्ट बना डाला बल्कि वहां एक आर्थिक क्षेत्र भी बना लिया है। इससे हिंदू महासागर में चीन की ताकत काफी बढ़ गई है। बहरहाल, अब भारत ने हिंदू महासागर में श्रीलंका के महत्व को पहचाना है।


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