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कारोबार में अड़ंगा डालने वाले देशों को उन्हीं की भाषा में मिलेगा जवाब

भारतीय उद्यमियों या कंपनियों के साथ सौतेला व्यवहार करने वाले सभी देशों के साथ भारत ने जैसे को तैसा की तर्ज पर व्यवहार करने का फैसला किया है।

By Praveen DwivediEdited By: Published: Sat, 13 May 2017 12:44 PM (IST)Updated: Sat, 13 May 2017 12:44 PM (IST)
कारोबार में अड़ंगा डालने वाले देशों को उन्हीं की भाषा में मिलेगा जवाब
कारोबार में अड़ंगा डालने वाले देशों को उन्हीं की भाषा में मिलेगा जवाब

नई दिल्ली (जयप्रकाश रंजन)। चीन के साथ सीमा व कूटनीतिक स्तर पर तनाव का असर लगता है अब इन दोनों देशों के व्यापारिक रिश्तों पर भी पड़ेगा। भारत ने उन सभी देशों के साथ जैसे को तैसा की तर्ज पर व्यवहार करने का फैसला किया है जो भारतीय उद्यमियों या कंपनियों के साथ सौतेला व्यवहार करते हैं। भारत के इस नए तेवर का सबसे पहला असर चीन की बिजली क्षेत्र से जुड़ी कंपनियों पर पड़ सकता है।

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चीन की ट्रांसमिशन कंपनियों ने हाल ही में भारत के ट्रांसमिशन क्षेत्र में निवेश करने की रुचि दिखाई है, जबकि वह खुद भारतीय कंपनियों को इस क्षेत्र में उतरने की इजाजत नहीं देता। लिहाजा अब भारत एक समग्र नीति बनाने जा रहा है ताकि इस तरह के सभी देशों की कंपनियों को भारत में आजादी से निवेश करने की इजाजत न हो। केंद्रीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल ने भारत के इस नए तेवर के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि भारत अब अपार संभावनाओं और मजबूत इच्छाशक्ति वाला देश है और यह बात हमारी नीतियों से महसूस होनी चाहिए। उच्चस्तर पर बातचीत के बाद हम एक समग्र नीति बनाएंगे। खासतौर पर वैसे उद्योग जहां बड़ी संख्या में रोजगार उत्पन्न होता है और भारी भरकम निवेश होता है। वहां हम उसी तरह की नीति बनाएंगे, जैसा दूसरे देश हमारे देश के लिए लागू कर रहे हैं।

गोयल नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे मंत्री हैं जिन्होंने दूसरे देशों में बढ़ रहे संरक्षणवाद की नीति के खिलाफ भारत की तैयारी के बारे में बात कही है। उनसे पहले वाणिज्य व उद्योग मंत्री निर्मला सीतारमण ने भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियों के खिलाफ अमेरिका में कदम उठाने को संरक्षणवाद की नीति कहा था। भारतीय आइटी कंपनियों पर अमेरिकी नागरिकों को नौकरी पर रखे जाने के मामले का मुद्दा दोनों देशों के बीच उलझा हुआ है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की तरफ से अभी तक इसमें नरमी के संकेत नहीं दिए गए हैं। अमेरिका के अलावा ऑस्ट्रेलिया, चीन, न्यूजीलैंड, ब्रिटेन जैसे देशो ने ऐसे कदम उठाए हैं जिनकी वजह से भारत के आर्थिक हितों पर असर पड़ने की संभावना जताई जा रही है। सनद रहे कि हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि विकसित देशों में संरक्षणवाद की बढ़ रही सोच से भारत, चीन जैसे देशों की आर्थिक विकास पर असर पड़ेगा। यही बात उद्योग चैंबर फिक्की ने भी कहा है कि भारत के निर्यात पर इस तरह की नीतियों का बुरा असर पड़ेगा।

जहां तक चीन की बिजली कंपनियों का सवाल है तो यह सनद रहे कि एक समय भारत के बिजली क्षेत्र में सबसे ज्यादा विदेशी निवेश इन्हीं कंपनियों के माध्यम से आ रहा था, लेकिन चीन के बिजली क्षेत्र में भारतीय कंपनियों के लिए बहुत कम संभावनाएं है। अब जबकि भारतीय कंपनियां आकार में बड़ी हो गई हैं और वे दूसरे देशों में संभावनाएं तलाश रही हैं तो उन्हें हकीकत से रूबरू होना पड़ रहा है। भारत के नए तेवर का दोनों देशों के द्विपक्षीय कारोबार पर असर पड़ सकता है। तीन चार वर्ष पहले तक भारत व चीन के बीच कारोबारी रिश्ते काफी तेजी से आगे बढ़ रहे थे, लेकिन पिछले दो साल से इसकी रफ्तार कम हुई है।

भारत अपार संभावनाओं व मजबूत इच्छाशक्ति वाला देश है। यह बात हमारी नीतियों से भी महसूस होनी चाहिए। हम उसी तरह की नीति बनाएंगे, जैसी दूसरे देश हमारे देश के लिए लागू कर रहे हैं।


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