आरबीआई ने क्यों नहीं घटाई रेपो रेट, जानिए पांच बड़े कारण...
भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से आज नीतिगत दरों में कोई बदलाव न करना निश्चित तौर पर चौकाने वाला फैसला था। जानिए आरबीआई ने क्यों नहीं घटाईं नीतिगत दरें....
नई दिल्ली: भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से आज नीतिगत दरों में कोई बदलाव न करना निश्चित तौर पर चौकाने वाला फैसला था। शेयर बाजार विशेषज्ञों के साथ साथ तमाम अर्थशास्त्री भी यह अनुमान लगा रहे थे कि आरबीआई की ओर से ब्याज दरों में कटौती का सिलसिला जारी रखा जाएगा। गौरतलब है कि अक्टूबर में हुई मौद्रिक पॉलिसी समीक्षा में आरबीआई की ओर से 25 बेसिस प्वाइंट की कटौती की गई थी। लेकिन आरबीआई ने इसके विपरीत रेपो रेट को पिछले स्तर पर बरकरार रखते हुए चौका दिया, इसी की प्रतिक्रिया में शेयर बाजार में एकाएक गिरावट देखने को मिली और ब्याज दरों से प्रभावित होने वाले शेयरों में मुनाफावसूली हावी हो गई।
हमने बाजार के विशेषज्ञों से बात करके यह पता लगाने का प्रयास किया कि बाजार की उम्मीद के विपरीत
आरबीआई ने ब्याज दरों को होल्ड करने का निर्णय क्यों लिया?
एस्कोर्ट सिक्योरिटीज के रिसर्च हेड आसिफ इकबाल का मानना है कि नोटबंदी के बाद बैकों में ग्राहकों की ओर से भारी मात्रा में नकदी जमा कराई गई है। ऐसे में कर्ज बांटने के लिए बैंकों को नकदी की कमी से नहीं जूझना पड़ेगा। रेपो रेट में कटौती मौजूदा स्थिती में तब प्रासंगिक होती यदि बाजार में नकदी की कमी के चलते बैंक ब्याज दरों को नहीं घटा पाते। साथ ही आने वाले दिनों में महंगाई बढ़ने का खतरा, अमेरिका में ब्याज दरों का असमंजस समेत तमाम ऐसे पहलु हैं जिनके मद्देनजर आरबीआई ने रेपो रेट को 6.25 फीसदी की दर पर बरकरार रखने का फैसला लिया।
इन कारणों से आरबीआई ने नहीं घटाईं नीतिगत दरें (रेपो रेट)
नोटबंदी के बाद बैंकों में भारी नकदी:
सरकार की ओर से लिए गए नोटबंदी के फैसले के बाद बैंकों में ग्राहकों की ओर से भारी मात्रा में नकदी जमा की गई है। ऐसे में बैंकों के सामने किसी तरह का नकदी का संकट नहीं है। बैंक अपनी जमाओं में से आसानी से कर्ज बांट सकते हैं। ऐसे में रेपो रेट में कमी करना या न करना नकदी की उपलब्धता पर कोई विशेष फर्क नहीं डालता।
जमाओं पर ब्याज घटने का खतरा:
रिजर्व बैंक अगर ब्याज दरों में कटौती करता है तो बैंकों के ऊपर कर्ज की दर घटाने का दवाब बढ़ता है। साथ ही कर्ज की दर घटने पर अपने मुनाफे को बचाने के लिए बैंक जमाओं पर दर को घटाते हैं। गौरतलब है कि तमाम बैंकों ने हाल में आई भारी नकदी के बाद छोटी अवधि की एफडी पर ब्याज दरें घटाई थी। ऐसे में आरबीआई ने जमाकर्ताओं की जमाओं पर ब्याज न घटने के मद्देनजर रेपो रेट में कोई कटौती नहीं की।
बढ़ी हुई सीआरआर घटाने से सिस्टम में बढ़ेगी नकदी:
आरबीआई ने रेपो रेट में भले कटौती न की हो लेकिन एक अहम फैसला लेते हुए बैंकों के लिए 100 फीसदी इन्क्री मेंटल (बढ़ी हुई) सीआरआर की लिमिट को हटा दिया है। अब बैंकों को अपने यहां होने वाले डिपॉजिट के अनुपात में पूरी रकम सीआरआर के रूप में रिजर्व नहीं रखनी पड़ेगी। आरबीआई का यह कदम बैंकों में नकदी को बढ़ाएगा। इससे पहले आरबीआई ने 26 नवंबर को बैंकों में बढ़ती लिक्विडिटी को नियंत्रित करने के लिए 100 फीसदी इन्क्री मेंटल सीआरआर की लिमिट तय की थी।
कमजोर होते रुपए की चिंता:
अमेरिका में अगले हफ्ते ब्याज दरों पर अहम फैसला हो सकता है। राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद यह माना जा रहा है कि ज्यादातर नीतियां महंगाई को बढ़ावा देने वाली होंगी। ऐसे में ब्याज दरों के बढ़ने की उम्मीद काफी पुख्ता है। अमेरिका में ब्याज दरें बढ़ने पर भारत जैसे इमर्जिंग मार्केट से पूंजी का जाना तय है। जिससे रुपए में दवाब देखने को मिलेगा। डॉलर के मुकाबले रुपया बीते एक महीने में काफी कमजोर हुआ है। आरबीआई की ओर से ब्याज दरों में कटौती रुपए की कमजोरी को बढ़ा सकती थी। ऐसे में रुपए को सपोर्ट देने के लिए आरबीआई ने रेपो रेट में कटौती नहीं की।
महंगाई बढ़ने का खतरा:
क्रिसिल की ओर से हाल में जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि पेट्रोल के दाम 5 से 8 फीसदी तक बढ़ सकते हैं तो वहीं अगले तीन से चार महीनों में डीजल के दामों में 6 से 8 फीसदी तक का इजाफा हो सकता है। यह ओपेक देशों की ओर से अगले महीने से होने वाली क्रूड ऑयल उत्पादन में कटौती का परिणाम है। ऐसे में आने वाले महीनों में महंगाई बढ़ने की आशंका गहरी है। आरबीआई की ओर से रेपो रेट को बरकरार रखने के पीछे एक बड़ी वजह यह भी हो सकती है।