उम्मीदों और आशंकाओं के बीच बजट 2017, वित्त मंत्री के सामने होंगी ये बड़ी चुनौतियां
केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली को 1 फरवरी को आगामी बजट पेश करना है लेकिन उससे पहले उनके सामने कई बड़ी चुनौतियां हैं।
नई दिल्ली। नोटबंदी के असर से मंद पड़ी अर्थव्यवस्था और विलंबित जीएसटी के बीच 1 फरवरी को बजट 2017 पेश किया जाएगा। बजट पेश करते समय वित्त मंत्री अरुण जेटली के सामने एक ओर मंद पड़ी अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए भारी सरकारी खर्चों की घोषणा का दवाब होगा तो दूसरी ओर वित्तीय घाटे को काबू रखने की चुनौती। वहीं नोटबंदी के बाद नकदी की किल्लत से परेशान हुई जनता भी इस बीच वित्त मंत्री से कुछ राहत की उम्मीद जरूर करेगी। ऐसे में उम्मीदों और आशंकाओं के बीच बने इस बजट को पेश करते हुए वित्त मंत्री को तमाम चुनौतियां का सामना करना होगा।
यह भी पढ़ें- बजट 2017: टैक्सपेयर्स से लेकर युवा कर्मचारी और स्टूडेंट्स से लेकर हाउसवाइफ, हर किसी को है बजट से खास उम्मीद
राष्ट्रीय लोक वित्त एवं नीति संस्थान की सलाहकार राधिका पांडे ने jagran.com के साथ खास बातचीत में कहा कि वित्त मंत्री के सामने बजट पेश करते हुए सबसे बड़ी चुनौती नोटबंदी के बाद सुस्त पड़ी अर्थव्यस्था को पटरी पर लाना होगा। इसके लिए निश्चित तौर पर भारी सरकारी खर्चों वाली घोषणाएं संभावित हैं। लेकिन इस घोषणाओं के बीच वित्त मंत्री के ऊपर दवाब राजकोषीय घाटे पर काबू रखने का भी होगा। बेहतर राजकोषीय प्रबंधन पर भारत की रेटिंग निर्भर करेगी।
वित्त मंत्री के सामने होंगी ये पांच बड़ी चुनौतियां:
अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की चुनौती:-
नोटबंदी के असर देश की जीडीपी ग्रोथ रेट में गिरावट आएगी यह आशंका सरकार, भारतीय रिजर्व बैंक और तमाम रिसर्च फर्म जता चुकी हैं। अर्थव्यवस्था को पटरी पर वापस लाने के लिए सरकार को मशक्कत करनी पड़ेगी, जिसके रोडमैप की झलक दिखाने की चुनौती वित्त मंत्री पर बजट के दौरान होगी। ऐसे में अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए सरकार बजट में पब्लिक स्पेंडिग (सरकारी खर्च) पर सरकार का फोकस रह सकता है। बजट में इंफ्रास्ट्रक्चर, मैन्युफैक्चरिंग, कृषि आदि सेक्टर्स के लिए सरकार घोषणाएं कर सकती है।
वित्तीय अनुशासन का दवाब:
वित्त मंत्री अरुण जेटली के सामने दूसरी बड़ी चुनौती भारी सरकारी खर्च के बीच फिस्कल डेफेसिट (राजकोषीय घाटे) को काबू करने की होगी। सरकार का राजकोषीय प्रबंधन और रिफॉर्म की दिशा में उठे कदमों पर ही भारत की रेटिंग निर्भर करेगी। तीनों प्रमुख रेटिंग एजेंसियों एस एंड पी, मूडीज और फिच में केवल मूडीज की रेटिंग सकारात्मक आउटलुक के साथ है। बाकी दोनों की रेटिंग स्थिर आउटलुक वाली हैं। एस एंड पी और फिच दोनों की रेटिंग स्टेबल आउटलुक के साथ बीबीबी- है। मूडीज की रेटिंग एक स्तर ऊपर पॉजिटिव आउटलुक के साथ बीएए है।
उपभोग बढ़ाने पर जोर:
नोटबंदी के बाद प्रभावित हुई खपत को वापस दुरुस्त करना वित्त मंत्री की अगली बड़ी चुनौती होगी। यूनिवर्सल इंकम स्कीम, मनरेगा का बजट बढ़ाना, इंकम टैक्स स्लैब में बदलाव आदि रास्तों से वित्त मंत्री सीधे जनता के खाते में पैसा पहुंचाने का प्रयास करेंगे, जिससे उपभोग को बढाया जा सके। उपभोग में इजाफे के रास्ते वित्त मंत्री अर्थव्यवस्था में मांग उत्पन्न करने का प्रयास करेंगे।
सोशल सर्विस और जॉब्स बढ़ाने की चुनौती:
बजट में सरकार का फोकल शिक्षा, स्वास्थ्य के साथ साथ नौकरी बढ़ाने पर होगा। यह वित्त मंत्री के लिए दोहरी चुनौती होगी। एक ओर सरकार को खर्चों पर नियंत्रण रखना होगा वहीं दूसरी ओर बजट के तुरंत बाद उत्तर प्रदेश, पंजाब और उत्तराखंड समेत देश के पांच राज्यों में चुनाव होंगे। ऐसे में बजट में अप्रत्यक्ष रूप से वित्त मंत्री पर जनता को लुभाने की कोशिश भी इस रास्ते कर सकते हैं। जिससे चुनाव नतीजें में फायदा हो सके। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव खुद प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर बजट को चुनावों के बाद पेश करने की अपील कर चुके हैं। जबकि इससे पहले तमाम राजनीतिक पार्टिंयों ने भी चुनाव आयोग से बजट की तारीख को लेकर आपत्ति जताई थी। चुनाव आयोग ने भी सरकार को नसीहत दी है कि चुनाव वाले राज्यों से जुड़ी घोषणाएं बजट में न की जाएं। ऐसे में वित्त मंत्री की यह चुनौती और बड़ी हो जाती है।
जीएसटी से पहले का बजट:
देशभर में जीएसटी लागू करने की नई डेडलाइन 1 जुलाई तय की गई है। यदि 1 जुलाई से नया टैक्स कानून लागू हो जाता है तो बजट के दौरान अप्रत्यक्ष करों से जुड़ी घोषणाओं का असर महज 3 महीने होगा। ऐसे में अप्रत्यक्ष कर संग्रह से सरकार को वित्त वर्ष के दौरान कितना राजस्व मिलेगा इसका अनुमान लगाना वित्त मंत्री के लिए बड़ी चुनौती होगी।