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दिवालिया कानून का मकसद कंपनी प्रमोटरों की तबाही नहीं बल्कि उन्हें बचाना है

इनसॉल्वेंसी एंड बैंक्रप्सी कोड (आइबीसी) से निवेशकों का भरोसा बढ़ेगा। इससे कॉरपोरेट बांड मार्केट में निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा।

By Praveen DwivediEdited By: Published: Sun, 20 Aug 2017 11:38 AM (IST)Updated: Sun, 20 Aug 2017 11:38 AM (IST)
दिवालिया कानून का मकसद कंपनी प्रमोटरों की तबाही नहीं बल्कि उन्हें बचाना है

नई दिल्ली (पीटीआई)। नए दिवालिया कानून को लेकर वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कर्ज में फंसी कंपनियों के प्रमोटरों को आश्वस्त किया है। उन्होंने कहा कि नए इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कानून का मकसद प्रमोटरों का खात्मा नहीं, बल्कि कर्ज वसूली सुनिश्चित करने के साथ-साथ उनका बचाव भी है। जेटली भारतीय उद्योग चैंबर सीआइआइ की ओर से इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी पर आयोजित सम्मेलन में बैंकरों व उद्यमियों को संबोधित कर रहे थे।

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केंद्रीय वित्त मंत्री ने कर्ज लेने वालों के बीच बेहतर ऋण संस्कृति विकसित करने पर जोर दिया। उन्होंने कहा, ‘वह पुरानी व्यवस्था जिसमें लोन देने वाला कर्जदार का पीछा करते करते थक जाता था और अंत में उसके हाथ कुछ नहीं लगता था, अब समाप्त हो चुकी है। अगर कर्जदाता को कारोबार में बने रहना है, तो उसे अपना कर्ज समय पर चुकाना होगा अन्यथा उसे दूसरे के लिए रास्ता छोड़ना पड़ेगा।’ ऋण वसूली सुनिश्चित करने वाले इनसॉल्वेंसी एंड बैंक्रप्सी कोड (आइबीसी) को कर्जदाताओं के हाथ मजबूत करने वाला माना जा रहा है। बैंक व वित्तीय संस्थान आठ लाख करोड़ रुपये के फंसे कर्ज यानी एनपीए से जूझ रहे हैं। कुल एनपीए में अकेले सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की ही 75 फीसद हिस्सेदारी है।

जेटली ने कहा, ‘एनपीए की समस्या के समाधान के पीछे असल मकसद संपत्तियों को समाप्त करना नहीं, बल्कि व्यवसायों को बचाना है। यह काम चाहे इन कंपनियों के मौजूदा प्रमोटर खुद अथवा अपने साथ नया साझेदार जोड़कर करें या फिर नए उद्यमी आएं और यह सुनिश्चित हो कि इन मूल्यवान संपत्तियों को संरक्षित रखा जा सके।

वित्त मंत्री के मुताबिक सरकार ने केवल एक कानून में बदलाव नहीं किया है। केंद्र ने ऋण वसूली ट्रिब्यूनलों (डीआरटी) की प्रक्रियाओं को बदला है। साथ ही सरफेसी कानून के प्रावधान भी संशोधित किए गए हैं। कदमों का सीधा और स्पष्ट संदेश है कि कर्जदारों को कर्ज का नियमित भुगतान सुनिश्चित करना होगा।


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