नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पानगढ़िया का इस्तीफा, 31 अगस्त तक देंगे सेवाएं
अरविंद पानगढ़िया ने नीति आयोग के उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है
नई दिल्ली (जेएनएन)। नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पानगढ़िया ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। अभी एक महीने पानगढ़िया अपनी सेवाएं देते रहेंगे। 31 अगस्त पानगढ़िया का आखिरी कार्यकारी दिन होगा, इसके बाद वे एकेडमिक्स का रुख करेंगे। आपको बता दें अरविंद पानगढ़िया नीति आयोग के पहले उपाध्यक्ष बने थे। पानगढ़िया भारतीय मूल के अमेरिकी अर्थशास्त्री हैं और कोलंबिया विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं।
इस्तीफे की वजह नहीं हुई साफ: पानगढ़िया ने अपने पद से इस्तीफा क्यों दिया है इसकी कोई ठोस वजह सामने नहीं आ पाई है। हालांकि इस्तीफे के बाद उन्होंने कहा कि वो नीति आयोग से इस्तीफा देने के बाद वो पठन-पाठन के काम में व्यस्त रहेंगे। पनगढ़िया ने अपने इस फैसले की जानकारी पीएमओ को दे दी है। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फिलहाल असम के बाढ़ ग्रस्त इलाकों के दौरे पर हैं। जिस वजह से पानगढ़िया के इस्तीफे पर आखिरी फैसला नहीं हुआ है।
प्रोफेसर हैं पानगढ़िया: अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर अरविंद पानगढ़िया का नाम दुनिया के सबसे अनुभवी अर्थशास्त्रियों में लिया जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने जब योजना आयोग को खत्म कर नीति आयोग गठन किया था, तब पानगढ़िया को बड़ी जिम्मेदारी देते हुए उपाध्यक्ष चुना गया था। सूत्रों के अनुसार, पानगढ़िया वापस कोलंबिया यूनिवर्सिटी में पढ़ाना शुरू कर सकते हैं। बताया जाता है कि कोलंबिया यूनिवर्सिटी में कोई भी व्यक्ति रिटायर नहीं होता है। वह जीवनभर अपनी स्वास्थ्य क्षमता के अनुसार अध्यापन कार्य कर सकता है। कोलंबिया यूनिवर्सिटी से अरविंद पानगढ़िया को दो बार पहले भी वापस लौटने के लिए नोटिस भेजा गया था।
अरविंद पानगढ़िया कई पुस्तक भी लिख चुके हैं। उनकी पुस्तक इंडिया द इमरजिंग ज्वाइंट 2008 में इकोनॉमिस्ट की ओर से सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली पुस्तक में शामिल हो चुकी है। मार्च 2012 में उन्हें देश के तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से नवाजा जा चुका है।
अपनी बात तार्किक अंदाज में कहने वाले अर्थशास्त्री के रूप में पहचान बनाने वाले पानगढ़िया की सलाह पर ही सरकार ने एयर इंडिया को बेचने का निर्णय किया था। इससे पहले तमाम अर्थशास्त्री एयर इंडिया को लेकर इस तरह की इच्छा तो रखते थे लेकिन सरकार के सामने कहने की पहल किसी ने नहीं की।