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खड़ी हिन्दी के पहले कवि थे बगहा के चन्द्रशेखर

By Edited By: Published: Thu, 15 Dec 2011 07:25 PM (IST)Updated: Thu, 15 Dec 2011 07:25 PM (IST)
खड़ी हिन्दी के पहले कवि थे बगहा के चन्द्रशेखर

पं.चन्द्रशेखर धर मिश्र

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की जन्म तिथि पर विशेष

रामनगर(प.च.)संसू: .. चम्पारण के प्रसिद्ध विद्वान और बैद्य पं. चन्द्रशेखर मिश्र जो भारतेन्दु जी के मित्रों में थे, संस्कृत के अतिरिक्त हिन्दी में भी बड़ी सुंदर और आशु कविता करते थे। मैं समझता हूं कि हिन्दी साहित्य के आधुनिक काल में संस्कृत वृती में खड़ी बोली के कुछ पहले पहल मिश्रजी ने ही लिखे। आचार्य पं. रामचन्द्र शुक्ल हिंदी भाषाएवं साहित्य के सुप्रसिद्ध इतिहासकार आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने हिन्दी साहित्य का इतिहास नामक अपनी पुस्तक के पृष्ठ संख्या 407 में उक्त तथ्य का उल्लेख करते हुए पं चंद्रशेखरधर मिश्र को हिन्दी की खड़ी बोली कविता का प्रथम कवि करार दिया है। पं. चन्द्रशेखर धर मिश्र का जन्म 22 दिसम्बर 1858 ई को बगहा के रतनमाला गांव में हुआ था। इनके पिता पं कमलाधर मिश्र की कवि और विद्वान थे। बगहा के रतनमाला गांव में आज भी पं. चन्द्रशेखरधर मिश्र के वंशज मौजूद हैं, जिन्होंने उनकी यादों को संजो कर रखा है। पं. चन्द्रशेखरधर मिश्र के प्रपौत्र रतनमाला गांव के निवासी और साहित्य सेवी विछुधर मिश्र बताते हैं कि उनके पास आज भी पं. चन्द्रशेखर धर मिश्र की जन्मकुडली मौजूद है। विधुधर मिश्र से मिली जानकारी के अनुसार पं. चन्द्रशेखरधर मिश्र की कुल सात पुत्रियां और तीन पुत्र थे। उनके एक पुत्र तो अल्पवय में ही काल के गाल में समा गये। चन्द्रमिश्र उर्फ बुकानन मिश्र बगहा के नामवर गांधीवादी स्वतंत्रता सेनानी विद्वान और साहित्य सेवी थे।

उल्लेखनीय है कि पं. चन्द्रशेखर धर मिश्र संस्कृत और हिन्दी के उदभट विद्वान और नामवर बैद्य थे। रतनमाला गांव में उनके द्वारा स्थापित संस्कृत विद्यालय आज भी बदहाल स्थिति में मौजूद है। रतनमाला में उन्होंने एक औषधालय की भी स्थापना की थी, जो काफी पहले बंद हो चुका है। पं. चन्द्रशेखर धर मिश्र बहुमुखी प्रतिमा के व्यक्ति थे। उन्होंने संस्कृत के कठिन छंदो में खड़ी बोली हिन्दी की कविताएं लिखी थी। उन्होंने पर्याप्त गद्य भी लिखा और पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। हिन्दी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के ये परम मित्र बताए जाते हैं। इस तथ्य का उल्लेख आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने भी किया है। परंपरा के कीर्तिस्तंभ नामक पुस्तक में चम्पारण के हिन्दी के नामवर विद्वान डा. सतीश कुमार राय ने लिखा है- मिश्रजी की विलक्षण प्रतिभा को हिन्दी के पुराने विद्वानों ने मुक्त कंठ से सराहा है। मिश्र बंधुओं ने उन्हें सुलेखक की संज्ञादी है, जबकि डा. श्यामसुंदर दास ने इनकी साहित्यिक जीवनी प्रकाशित की है। आचार्य शिवपूजन सहाय ने भी इन्हें प्राचीन साहित्य सेवी और पीयूष पाणि बैद्य माना है। डा. सतीश कुमार राय ने अपने शोधपरक लेख सिद्ध रचनाकार पं. चन्द्रशेखरधर मिश्र में लिखा है, मिश्र जी वस्तुत: आशु कवि थे और एक घंटे में सौ अनुपुय

छंदो की रचना कर लेते थे। इ नकी आरंभिक शिक्षा घर पर ही संस्कृत माध्यम से हुई। बांद में पढने अयोध्या गए। भारतेन्दु हरश्चिन्द्र प्रेधन पं. मदन मोहन मालवीय, प्रतापनारायण मिश्र जैसे लेखकों के सम्पर्क में आने पर इनकी रचनात्मक प्रतिभा का निरंतर विकास होता रहा। कहा जाता है कि मिश्र जी ने पचास से अधिक ग्रंथों की रचना की थी। लेकिन इनका गद्य व पद्य साहित्य पत्र पत्रिकाओं में ही उपलब्ध है। इनके ग्रंथ अनुपलब्ध बताए जाते हैं। इन ग्रंथों की खोज नहीं हो पाई। मूल रुप में आयुर्वेद से संबंधित इनकी दो पुस्तकें गुलर गुण विकास और आरोग्य प्रकाश गद्य ही उपलब्ध बतायी जाती है। मिश्र जी ने अपनी आत्मकथा भी लिखी थी, जो प्रकाशित नहीं हो सकी।

उल्लेखनीय है कि 1923 ई में पटना में बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के पंचम अधिवेशण की अध्यक्षता में मिश्र ने की थी। 1889 में विद्या धर्मव‌िर्द्धनी सभा द्वारा विद्या धर्मदीपिका नामक मासिक पत्रिका का प्रकाशन मझगांवा बरही, जिला गोरखपुर से आरंभ हुआ तो इस पत्रिका के संपादक पं. चन्द्रशेखर धर मिश्र हुए और मझगांवा निवासी पंडित यमुनाप्रसाद शुक्ल इसके कार्यकारी सम्पादक बने। एक वर्ष बाद विद्याधर्म दीपिका का प्रकाशन रामनगर पश्चिमी चम्पारण से होने लगा। रामनगर से बिद्याधर्म दीपिका के प्रकाशन में रामनगर के राजा प्रिंस मोहन विक्रम साह और राज के मैनेजर एवं साहित्यकार पं. देवी प्रसाद उपाध्याय का महत्वपूर्ण योगदान था। साहित्य समीक्षकों का मानना है कि विद्या धर्म दीपिका भारतेन्दु युग की प्रतिनिधि पत्रिका थी। पं. चन्द्रशेखर मिश्र ने चम्पारण चन्द्रिका नामक पत्रिका का भी संपादन किया। रामनगर और अन्य जगहों के साहित्य सेवियों के सहयोग से इस वर्ष नव चम्पारणचंद्रिका नामक त्रैमासिक साहित्य पत्रिका का प्रकाशन आरंभ किया है। इसके सम्पादक डा. रविकेश मिश्र, सहसम्पादक ज्ञानदेव मणि त्रिपाठी और विधुधर मिश्र हैं। पं. चन्द्रशेखर धर मिश्र के जन्म दिवस पर इस पत्रिका का नया अंक फिर से छप कर आ गया है। मिश्रजी का देहावसना 1949 ई में हुआ था। उन्होंने आजीवन समाज एवं साहित्य की सेवा की। बीमारों का इलाज किया और खड़ी बोली हिन्दी के प्रचार प्रसार में अपनी पूरी जिन्दगी लगादी। हिन्दी और संस्कृत के ये विद्यान और रचनाकार थे। साथ ही उर्दू और बंगला भाषा पर भी इनकी अच्छी पकड़ बतायी जाती है। ज्योतिष साहित्य व्याकरण औरआयुर्वेद के ये जादूगर थे। चम्पारण ही नहीं सीमावर्ती उत्तरप्रदेश के गोरखपुर बस्ती अयोध्या काशी प्रयाग जैसी जगहों पर भी इनकी साहित्यक गतिविधियां जारी रहती थी। विद्या धर्म वद्विनी सभा के माध्यम से इन्होंने धर्म और साहित्य का प्रचार प्रसार भी किया। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि आज तक पं.चन्द्रशेखर धर मिश्र के जीवन और साहित्य पर व्यापक स्तर पर ठोस शोध कार्य नहीं हो सका है। बगहा के आचार्य डा. रविकेश मिश्र, विधुधर मिश्र, रामनगर की रानी प्रेम शाह, रंजना उपाध्याय, संदीप मिश्र वगैरह ने सरकार से पं. चन्द्रशेखरधर मिश्र शोध संस्थान की स्थापना की मांग सरकार से की है।

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