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पिउनीबाग शिवमंदिर : यहां पीछे के दरवाजे से होता दर्शन

बेतिया। नगर के ऐतिहासिक पिउनीबाग मंदिर में विराजमान शिव की अनेक गाथाएं प्रचलित हैं। बाबा बड़े दयालू ह

By Edited By: Published: Sat, 01 Aug 2015 11:22 PM (IST)Updated: Sat, 01 Aug 2015 11:22 PM (IST)
पिउनीबाग शिवमंदिर : यहां पीछे के दरवाजे से होता दर्शन

बेतिया। नगर के ऐतिहासिक पिउनीबाग मंदिर में विराजमान शिव की अनेक गाथाएं प्रचलित हैं। बाबा बड़े दयालू हैं और इनके दर्शन मात्र से हर मानोकाना पूरी हो जाती है। यहां शिव बाबा अपने आप में अनोखे हैं। वे भक्तों को पिछले दराजे से दर्शन देते हैं। बाबा की सबसे बड़ी विशेषता है कि रूद्राभिषेक के बाद शिवलिंग पर स्वत: त्रिपूंड बन जाता है। जिस निराला रूप को देखने के लिए भक्त लालायित रहते हैं। दूर-दूर से लोग यहां रूद्राभिषेक को यहां आते है। इसके लिए कतार लगती है। महामंडलेश्वर अश्वमेध पीठाधीश्वर उपेन्द्र पराशर का कहना है कि यह शिवलिंग नर्मदा नदी के बागेश्वरी पर्वत से स्वयं प्रगट हुआ था। मस्तक के आकार का यह शिवलिंग अदभूत है। इसमें कोई शक नहीं कि शिवलिंग तांन्त्रिक उर्जा के स्रोत का प्रमाण है। गर्भ गृह में गणेश, विष्णु व पंच देव की प्रतिमा ऐसी है कि इसे देखने से लगता है कि ये शीघ्र बोलने वाली हैं। इन देवताओं के मध्य में स्थापित लिंग पर जलाभिषेक व रुद्राभिषेक बेहद फलदाई होता है। बाबा का विशेष दर्शन पिछले दरबाजे से होता है। मंदिर पूर्वाभिमुख है। मुख्य प्रवेश द्वार भी पूर्व से ही है। लेकिन विशेष द्वार पश्चिम से है। जिधर से भक्त पूजा को प्रवेश करते हें। मुख्य प्रवेश द्वार पर भगवान भैरव व वीर हनुमान की प्रतिमा होने के कारण इस मार्ग से प्रवेश करने में बाधा है। मंदिर के पीछे विशाल पोखरा भी है। इसमें स्नान कर भक्त पीछले दरवाजे भक्त प्रवेश करते हैं।

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तांत्रिक विधि से महारानियों के लिए राजा ने बनवाया था मंदिर

बेतिया : तांत्रिक विधि से स्थापित बेतिया राज का यह मंदिर राजा ने महारानियों के लिए बनवाया था। अठारहवी सदी में स्थापित इस मंदिर का साक्ष्य आज भी मौजूद है। जानकारी के अनुसार पोखरा दक्षिण की ओर इसिलए बनवाया गया था कि क्योंकि राजगृह पश्चिम की ओर था। रानी पोखरा के श्नान करने के बाद पिछले द्वार से मंदिर में प्रवेश करती थी।

नागर शैली में पत्थर की नक्काशी

बेतिया : पिउनीबाग मंदिर नागर पत्थर शिल्पकारी का उत्कृष्ट नमूना है। नागर शैली में विभिन्न पत्थरों से नक्काशी कर इसका निर्माण कराया गया है। मंदिर के पायों, सिढ़ी व गूंंबज का निर्माण पत्थरों की कटिंग कर की गई है। मंदिर देखने मे काफी आकर्षक है।


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