दुर्घटनाएं लाती हैं आंसू, खुशियां देती हैं सुरक्षा
सुपौल। दुर्घटना आंसू लाती है और सुरक्षा खुशियां देती है। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के इस स
सुपौल। दुर्घटना आंसू लाती है और सुरक्षा खुशियां देती है। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के इस स्लोगन का सीधा सम्बन्ध यातायात के दौरान सड़कों पर बरती जाने वाली सुरक्षा से है। वह सुरक्षा जो अपनी स्वयं की रक्षा करने का दूसरा नाम है और जो सड़कों पर नहीं के बराबर दिखती है। जिसका परिणाम सड़कों पर दुर्घटनाएं आम हो गई। ऐसी आम कि कई की मौतें भी हो चुकी है। बावजूद सड़कों पर वाहन वाले यातायात नियमों को पालन करना मुनासिब नहीं समझ रहे हैं। यातायात नियमों की धज्जियां खुले आम उड़ाई जा रही है।
लापरवाही के कारण होती हैं दुर्घटनाएं
विकास के बढ़ते पहिये के साथ चकाचक हो चली सड़कों पर दुर्घटनाएं खास हो चुकी हैं। कब, कौन और कहां यात्रा के दौरान दुर्घटना का शिकार हो जाय और किसकी लाश बीच सड़क पर देखने को मिल जाय कहना मुश्किल है। सुपौल जिले की विभिन्न सड़कों पर हाल के कुछ माह में हुई दुर्घटना इस बात का गवाह है कि अनियंत्रित रफ्तार से दौड़ती
गाड़ियां सड़कों पर मौत बांट रही है। न तो रफ्तार पर कोई लगाम है और न कोई प्रतिबंध। घटनाएं उदाहरण मात्र है। सत्यता यह है कि हर माह सड़क दुर्घटना में 10 मौतें औसतन हो ही जाती है। ऐसी घटनाओं की तह में जाएं तो सड़कों पर बरती जा रही लापरवाही ही कारण बनता दिखाई पड़ेगा।
नहीं होता यातायात नियमों का पालन
यातायात के मद्देनजर बनाए गए नियमों का पालन सड़कों पर न के बराबर हो रहा है। इसके लिए कोई टोकने वाला भी नहीं है। स्थिति यह है कि चालक नशे की हालत में भी वाहन चलाने से बाज नहीं आते। चार चक्के वाहन वालों के सीट बेल्ट का प्रयोग आवश्यक है। यह बेल्ट सुरक्षा की
दृष्टि से ब्लैक बेल्ट माना जाता है। बावजूद किसी भी चालक द्वारा इस बेल्ट का प्रयोग नहीं किया जाता। 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों का वाहन चलाना गैर कानूनी है। लेकिन आश्चर्य की बात है कि सरेआम निर्धारित उम्र से कम के किशोरों को दो चक्के वाहन चलाते शहर में देखा जा सकता है।इसके अलावा आटो पर भी नाबालिग फर्राटे भरते हैं। वाहन चलाते समय चालकों द्वारा मोबाईल फोन का प्रयोग भी धड़ल्ले से किया जाता है। अधिकांश चालकों को तो सड़क के किनारे लगे संकेतक की भी जानकारी नहीं है। इसके अतिरिक्त दो चक्के वाहन वालों के लिए यात्रा के दौरान हेलमेट अनिवार्य है। बावजूद अधिकांश चालक ऐसा नहीं करते। वाहन चलाते समय संगीत सुनना यहां एक फैशन सा हो गया है।
गलत दिशा में चलते वाहन
गलत दिशा में वाहनों का चलना भी जैसे फैशन सा हो गया है। भले ही दो लेन वाली अथवा ¨सगल लेन की ही सड़क क्यों न हो आप अगर चार चक्के की गाड़ी चला रहे हैं तो बायीं ओर से भी बेधड़क कोई गाड़ी निकल भागेगी। आप चूके तो फिर घटना होनी तो तय है। वहीं मोड़ पर भी किसी सावधानी का कोई ख्याल नहीं रखा जाता है। ऐसे चालकों को न तो कोई रोकने वाला है न टोकने वाला। वहीं छोटी सड़कों से बेधड़क तेज रफ्तार में बड़ी सड़कों पर प्रवेश करने से भी कई बार बड़ी दुर्घटना हुआ करती है। इसके लिये चालकों में कोई सजगता नहीं देखी जाती।
सड़कों पर रहती बेतरतीब गाड़ियां
गाड़ियों की बढ़ती रफ्तार के बीच लोग जहां-तहां बेतरतीब ढंग से गाड़ियां खड़ी कर देते हैं। जो दुर्घटना का एक बड़ा कारण बन जाता है। शहरों में समुचित पार्किंग का अभाव के कारण जहां-तहां गाड़ियां खड़ी कर दी जाती है। लेकिन हाइवे पर भी इस पर कोई खास प्रतिबंध दिखाई नहीं देता। होटलों के आसपास यत्र-तत्र गाड़ियां खड़ी कर दी जाती है। जो अमूमन दुर्घटना का कारण साबित होता है।
रफ्तार पर नहीं लगाम
एक ओर जहां सड़कें चिकनी हुई, लोगों की रफ्तार बढ़ गई। एक दूसरे से साईड लेने के चक्कर में रफ्तार पर नियंत्रण नहीं रह पाता और गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है। या फिर शाम के वक्त या कोहरे में भी चालकों की रफ्तार कम नहीं होती जो दुर्घटना का कारण बनता है। वहीं भले ही विकास के दौर में सड़कों का जाल बिछ रहा हो लेकिन कुंठित मानसिकता के कारण लोग अपने सामने की सड़क का अतिक्रमण कर बैठते हैं, सड़कें सिकुड़ती जा रही है। शहर की हालत है कि बाजार ने सड़कों को कब्जा लिया है। दुकान फैलते सड़क तक आ पहुंची है। बाजार के तो कई बिन्दु अथवा चौराहे ऐसे हैं जहां सड़क दिखती भी नहीं। पैदल चलना मुश्किल हो जाता है वाहनों का तो चलना दूर है। गांव के सड़कों की हालत भी ठीक नहीं। वहां तो सड़क का फ्लैंक भी लोगों के ही कब्जे में रहता है। हर कोई अपनी सीमा सड़क से सटा कर मानता है। नतीजा कि दूसरी गाड़ी का पास लेना भी मुश्किल हो जाता है।